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‘लोग क्या कहेंगे’ यह सोचकर मैं डिप्रेशन में किसी से बात नहीं करती थी

आज हम सब अकेले हैं। सामने से भले ही चेहरे पर मुस्कुराहट है मगर अंदर घोर सन्नाटा है, क्योंकि हम अब ऐसे समय में जी रहे हैं, जहां आंसुओं की कीमत लगने में वक्त नहीं लगता।

आप सबने सुना होगा कि जो इंसान बहुत हंसता है और दूसरों को हंसाता है, वह सबसे दुःखी होता है क्योंकि उस इंसान को खुद को सबसे अलग-थलग करना आता है। 

कौन सुनेगा और किससे कहें?

उसके पास अनेक दोस्त होंगे मगर किसी के पास शायद ही उसके लिए वक्त होगा। सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की खबर के बाद सभी लोग सेटेट्स लगा रहे हैं कि अपनों से बात होनी चाहिए।

खुलकर बोलना चाहिए मगर मेरा सवाल यह है कि किससे बोलें और कौन सुनेगा? कौन यहां दूसरों के आंसुओं को पोंछने के लिए बैठा है? हर कोई इतना व्यस्त है कि वह कहता है, यार मेरे पास तो सांस तक लेने की फुरसत नहीं है।

भई वाह, सांस लेने तक कीे फुरसत अगर नहीं है फिर तो सबसे पहले शरीर का ही साथ छोड़ देना चाहिए था। यह कैसी बेतुकी बात है कि मेरे पास सांस लेने तक की फुरसत नहीं है।

आंसुओं की कीमत लग जाएगी 

सौम्या ज्योत्स्ना।

अब बात करते हैं कि लोग खुलकर नहीं बोलते। आप बताइए अगर आप किसी के सामने दिल खोलकर रोएंगे और अपनी परेशानी साझा करते हुए उसे बताएंगे कि आप कितने अकेले हैं, तब वह भले ही वो आपकी बातों को सुने मगर आपको यह डर सताता रहेगा कि वह आपके आंसुओं की कीमत लगा देगा।

सुशांत जिस मुकाम पर थे, उस वक्त अगर वो अपनी तकलीफ और अपना अकेलापन बांटते तो लोग कहते कि पब्लिसिटी बटोरने के लिए कर रहा है। खबरों के मुताबिक उनके घर से डिप्रेशन और हाइपर टेंशन की दवाएं मिली हैं।

मैं भी एक बार डिप्रेशन से गुज़री हूं, जहां मैं किसी से बात तो करना चाहती थी मगर यह सोचकर नहीं कर पा रही थी कि लोग क्या सोचेंगे। उस वक्त मैंने स्वयं को संभाला और अपनी लाइफ में आगे बढ़ने के बारे में सोचा।

सब पब्लिसिटी स्टंट नहीं होता

आपको याद है, जब नेहा कक्कड़ ने अपने ब्रेकअप के बार में सभी को बताया था, तो उस वक्त भी लोगों ने उसे पब्लिसिटी कहा था। इसके साथ ही जब दीपिका ने अपने अवसाद के बारे में सबको बताया था, तो उस वक्त भी लोगों ने पब्लिसिटी स्टंट कहा था मगर दीपिका ने सबके साथ अपनी हालत को साझा किया।

दीपिका ने डिप्रेशन और चिंता का सामना करने वालों की मदद करने के लिए ‘लाइव लव लाफ’ की स्थापना भी की। उन्होंने अपने डिप्रेशन से लड़कर सबसे खुलकर बात की ताकि लोगों को भी हंसते चेहरों के पीछे छुपी खामोशी का अंदाज़ा लगे।

हर कोई आज अंदर ही अंदर अवसाद का शिकार है, क्योंकि उसे घुटने की आदत हो गई है। फिल्म इंडस्ट्री का यह कड़वा सच रहा है कि यहां चमकते चेहरों के पीछे कालेपन का अंधेरा साया हावी रहता है।

आज के समय में ज़रूरत है कि लोग खुलकर बोलें। लोगों के बीच विश्वास हो कि उनकी बात सामने वाले के पास दफन है और वह उसका मोल नहीं लगाएगा मगर यह बात पहेली लगती है। बेहतर है कि लोग वक्त रहते संभल जाएं ओर अपनों को अपना होने का एहसास कराएं।

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