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“प्रकृति के बेहद करीब ले गया मुझे लॉकडाउन”

जब कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में अपने होने का एहसास कराया तो दुनिया के अलग अलग देशों ने लॉकडाउन को ही सबसे बेहतर रास्ता माना। उसके लागू होने के साथ पूरी दुनिया जैसे ठहर सी गई।

लोग घरों में कैद होकर रह गए और शायद पहली बार घरों में रहना कठिन हो गया, क्योंकि एक वायरस ने हम सबको हमारे घरों के अंदर कैद होने पर मजबूर कर दिया था।

खुद को बचाने के लिए हमारे पास इससे बेहतर रास्ता नहीं था और आज तक इस वायरस से लड़ने के लिए कोई वैक्सीन नहीं आई है।

70 दिनों से ज़्यादा का लॉकडाउन

लॉकडाउन के दौरान ली गई आसमान की तस्वीर। फोटो साभार- राज धीरज शर्मा

लगभग 70 दिनों से ज़्यादा घर में रहने के बाद हर व्यक्ति के अलग-अलग अनुभव हो सकते हैं। किसी के सकारात्मक अनुभव तो हो सकते हैं तो किसी के नकारात्मक। हालांकि अब कुछ जगहों पर लोग घरों से बाहर निकलने लगे हैं लेकिन हम सबके दिमाग से शायद यह लॉकडाउन निकलना या यूं कहें भुला पाना मुश्किल है।

लोगों के बाहर ना जाने के कारण प्रकृति कितनी खूबसूरत हो गई है, समुंदर का पानी कितना साफ हो गया है और नदियों में कहीं भी गंदगी नहीं नज़र आ रही है। आसमान नीला नज़र आने लगा है और जानवर सड़कों पर किसी से बिना डरे निकल पड़े हैं।

दुनिया अचानक खूबसूरत लगने लगी है और हमें अचानक से लागू हुए लॉकडाउन ने बता दिया कि प्रकृति के सबसे बड़े दुश्मन जैसे हम ही हैं। शायद इससे बड़ी बात यह है कि हमने कभी इतना वक्त निकालकर यह सोचने की कोशिश ही नहीं की थी कि हमारा जीवन सुन्दर हमारी वजह से नहीं, बल्कि प्रकृति की वजह से है।

प्रकृर्ति से मेरा रिश्ता नया नहीं है

मैंने गहराई से कभी समझने की कोशिश भी नहीं की थी। या यूं कह सकते हैं कि वक्त भी नहीं निकाला था हमने लेकिन लॉकडाउन ने हमें प्रकृति के और करीब लाकर समझा दिया कि अगर हम प्रकृति को समझें तो शायद हम जीवन को सरल, सुन्दर और सहज तरीके से जी सकते हैं।

यह सत्य है लेकिन हम सबके लिए उस बात पर चिंता करना बेकार है, जो चीज़ हमारे हाथ में है ही नहीं! इसलिए हर संघर्ष वाली परिस्थिति में हम क्या सकारात्मक दृढ़ कर सकते हैं, वह हमारे ऊपर है।

मालूम नहीं था कि घर के आसपास कितने पेड़ हैं और उनके पत्तों में क्या खसियत है? जब वे खशी से लहराते हैं तो हमें कितना सुकून देते हैं।

सुबह-सुबह चिड़ियों का आसमान में उड़ना जैसे आज़ाद होने का मतलब बताता है और पेड़ों में छुप-छुपकर गीतों के स्वर ऐसे बिखेरना जैसे कानों को मदहोश कर खुशहाली‌ की गवाही देती हो।

प्रकृति की नेमत को महसूस कीजिए मेरे साथ

राज धीरज शर्मा।

महसूस हुआ कि सूरज उदय होने की जगह भी कैसे धीरे-धीरे बदलता रहता है और किरणों का ताप कैसा बढ़ता रहता है। वह कभी बादलों के पीछे छिपकर तो कभी आंखों के सामने आकर अपने होने का एहसास करता है।

चांद की शरारतों और शैतानियों को देखकर मिलने वाले आनंद को तो शब्दों में कह पाना मुश्किल है। वह कभी अपना रूप बदलता है और कभी अपना रंग। कभी अधूरा होकर भी पूरा दिखता है और कभी पूरा होने के बावजूद बादलों के बीचोबीच छुप जाता है।

बादलों को भी आसमन के खुले मैदान में खेलते हुए देखना सुन्दर अनुभव है। वह कभी भी कोई आकार बना लेता है और कभी कभी ऐसा लगता है जैसे छिटकता हुआ बादल दूर से कोई कहानी बता रहा हो।

बारिश की बूंदों का पत्तों पर आकर टकराना फिर पत्तों का खिलखिलाना किसी भी प्रेम कहानी से ज़्यादा सुन्दर प्रतीत होता है। बिल्लियों का अपने बच्चों के लिए प्रेम इंसानों से ज़्याद लगता है और खुद की खाने की फिक्र ना करते हुए बस उनको देखते रहना त्याग और उनके अंदर की भावनाओं को दिखाता है।

शायद प्रकृति ना हो तो हमारा वजूद ही खत्म हो जाए और इस वक्त शायद इस खूबसूरत प्रकृति का दुश्मन इंसान हो चुका है।

हम सबको कुदरत के साथ मिलकर चलना है, तभी सुखद जीवन संभव है। अगर हम सबसे बड़े होने का अहम रखेंगे तो नेचर हम सबसे रुठ जाएगा।

वक्त रहते हमें समझना होगा कि इंसानों को प्रकृति का सम्मान करना ज़रूरी है, नहीं तो इंसानों द्वारा प्रकृति का किया गया अपमान हम सबको किसी ना किसी तरह से यह महसूस कराता रहेगा कि तुम गलत कर रहे हो।

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