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तमिलनाडु ऑनर किलिंग: “कोर्ट का फैसला न्याय व्यवस्था के प्रति मेरी आस्था को कम करती है”

madras high court

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तमिलनाडु के तिरुपुर ज़िले में 2016 में हुई एक ऑनर किलिंग मामले में मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस एम सत्यनारायण और एम निर्मल कुमार की डिविज़न बेंच ने मुख्य आरोपी को बरी कर दिया।

साथ ही अन्य पांच आरोपियों की फांसी की सज़ा को उम्र कैद में बदल दिया है। यह आदेश भी दिया है कि यदि ज़रूरत ना हो तो आरोपियों को आरोपमुक्त कर दिया जाए।

क्या है मामला?

गौरतलब है कि यह मामला 13 अप्रैल 2016 का है, जब बी चिन्नस्वामी ने अपनी बेटी कौशल्या के 22 वर्षीय पति शंकर की उडुमलपेट बस स्टेंड पर दिन दहाड़े हत्या कर दी थी। यह वारदात एक सीसीटीवी कैमरे में कैद हुई थी। वीडियो वायरल होने पर लोगों ने इसके खिलाफ आंदोलन भी किया था। दरअसल, यह एक ऑनर किलिंग का मामला है।

बी चिन्नस्वामी की बेटी कौशल्या ने पोलाचि में प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में अपने साथ पढ़ने वाले दलित कुमार लिंगम निवासी शंकर से विवाह किया था। विवाह के ठीक आठ माह बाद वे दोनों शंकर के जन्मदिन के लिए कपड़े खरीदने बाज़ार जा रहे थे।

तभी उडुमलपेट बस स्टेंड पर कौशल्या के परिवार के लोगों ने मिलकर उसकी हत्या कर दी, जिसमें कुल 11 अभियुक्त पाए गये थे। कौशल्या की माँ भी इसमें शामिल थीं। 

कौशल्या भी गंभीर रूप से घायल हुई थी

इस हमले में कौशल्या भी गंभीर रूप से घायल हुई थी। उसने ही अपने माता-पिता के खिलाफ केस दर्ज़ किया था।  तिरुन्तपुरम की निचली अदालत ने 2017 में सीसीटीवी के आधार पर 6 लोगों को आरोपी मानते हुए फांसी की सज़ा सुनाई थी। जिसमें कौशल्या के पिता बी चिन्नस्वामी मुख्य आरोपी थे लेकिन इस फैसले के बाद उन्होंने उच्च अदालत में फैसले को चुनौती दी थी।

2016 में यह घटना विधानसभा चुनाव के ठीक दो महीने पहले हुई थी और उस वक्त ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी (AIADMK) और विपक्षीय पार्टी डीएमके ने थेवर समुदाय और ओबीसी के बीच ना पड़ते हुए इस पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया था।

सरकारी वकील ने कहा सर्वोच्च न्यायालय जाएंगे

मद्रास हाई कोर्ट। फोटो साभार- Getty Images

सोमवार को इस फैसले पर सरकारी वकील ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, “इस फैसले को पढ़कर यह जानने का प्रयास करेंगे आखिर उन्हें दोषमुक्त कैसे मान लिया गया? साथ ही सर्वोच्च न्यायालय में इस फैसले को चुनौती देंगे।”

विचारणीय यह है कि जब सीसीटीवी कैमरे से ज़ाहिर तौर पर हत्या नज़र आ रही है, तब इस तरह का फैसला किसको कटघरे में खड़ा करता नज़र आ रहा है? जहां हत्या और हत्या की वजह दोनों ही साफ हैं, वहां बेंच का कहना कि बरी किए गए आरोपी की ज़रूरत नe हो तो उन्हें आरोप मुक्त कर दिया जाए, दुर्भाग्यपूर्ण है।

इस बयान से और स्पष्ट हो गया है कि फैसला पूरी तरह एकपक्षीय है। जहां जात-बिरादरी के नाम पर अपने आत्मसम्मान और झूठी शान की दुहाई देते हुए प्रेमी जोड़ों को सरेराह मार दिया गया, न्याय देने की जगह अदालत कहे कि आरोपियों को बरी कर दिया जाना चाहिए, तब सवाल उठना लाज़मी है कि पट्टी किसकी आंखों पर बंधी मानी जाए?

ऐसे में सवाल यह भी उठता है कि चौक-चौराहे पर शंकर की तरह मारे जाते लोग और उनके परिवारों को न्याय के लिए किसकी तरफ देखना चाहिए? एक बात तो तय है कि कोर्ट के इस फैसले ने न्याय व्यवस्था के प्रति मेरी आस्था को कम कर दिया है।

जहां न्यायपालिका का यह दायित्व है कि वो सबको एक नज़रिये से देखे, वहां यदि पलड़ों के भारीपन को देखते हुए इस तरह के फैसले लिए जाएंगे तो प्रश्नचिन्ह सारी न्याय व्यवस्था पर लगाए जाएंगे। अब देखना यह है कि सर्वोच्च न्यायलय इस पर अपनी क्या टिप्पणी देता है?


संदर्भ- इंडियन एक्सप्रेस

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