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“डिप्रेशन के दौरान लोगों ने मुझे पागल करार दे दिया”

क्यों आखिर क्यों? हमारी संवेदना क्यों इतनी मर गई है कि एक बड़े चेहरे के गायब हो जाने के बाद ही हमें मेंटल हेल्थ का ख्याल आता है।

क्यों हम शुरू से ही अपने आसपास के लोगों में यह महसूस नहीं कर पाते कि वे शायद परेशान हैं। आप लोग बस हंसते हैं और इसी हंसी को आत्महत्या का रूप मिलता है।

अकेलापन किसी को भी गिरफ्त में ले सकती है

हमसे जब भी तनावग्रस्त इंसान बात करने आता है, तो हम उसे पागल का तमगा पहना देते हैं। हमारे समाज ने डिप्रेशन को पागलपन से जोड़ रखा है।

जबकि असल में यह सिर्फ एक एहसास है, जो किसी में भी आ सकती है। अकेलापन समाज की एक ऐसी बुराई है, जो आपको कब घेर ले, आप इसका हिसाब नहीं रख सकते।

आर्थिक रूप से संपन्न होना खुश होने का पैमाना नहीं है

सुशांत सिंह राजपूत। फोटो साभार- सोशल मीडिया

आज इस तरह किसी के जाने के बाद लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि सब कुछ था फिर भी चला गया? क्या कभी किसी ने पास जाकर यह जानने की कोशिश की कि क्या सब कुछ पाकर भी वो खुश था या नहीं?

क्या सिर्फ दौलत-शोहरत ही सब कुछ होने और खुश रहने की निशानी है? कहना शायद बहुत ही आसान है कि खुश रहो लोड मत लो। इतना आसान अगर सच में होता तो इस तरह के लोग क्यों अपनी जान से हाथ धोते?

डिप्रेस्ड लोग कुछ नहीं बस आपसे प्यार या साथ चाहते हैं। हां, यह सच है कि सब कुछ पाकर ज़िंदगी से हार जाना गलत है लेकिन क्या कभी उस कायरता के पीछे की वजह किसी ने जानने की कोशिश की?

हां, डिप्रेस्ड लोग हमेशा अपनी तरफ से सबको खुश रखने की कोशिश करते हैं, क्योंकि अकेलेपन का दर्द और किसी का साथ ना होने का दर्द वो आम इंसानों से ज़्यादा समझते हैं। इसलिए आप भ्रमित हो जाते हैं।

मेंटल हेल्थ ज़रूरी क्यों?

आज सब कह रहे हैं कि मेंटल हेल्थ ज़रूरी है और इस पर बात होनी चाहिए। बेंगलुरु या देश में कहीं का भी रिकॉर्ड उठाकर देख लीजिए। ना जाने कितने ही लोग हर रोज़ मेंटल हेल्थ का शिकार होते हैं मगर क्या कभी हम में से किसी ने भी ऐसे किसी इंसान के पास जाकर उससे पूछने की ज़ुर्रत की है? नहीं ना? फिर किस हक से आज हम मानसिक तनाव को परिभाषित कर रहे हैं?

चेहरे पर एक मुस्कान लेकर घुटन में जीने से अच्छा इंसान को मर जाना लगता है। हम सब इसे उसकी गलती तो कह देते हैं लेकिन गलती की गुंज़ाइश रखी किसने इसकी बात कोई नहीं करना चाहता है।

मर जाना गलत है लेकिन जीते जी झूठा जीना उससे भी ज़्यादा गलत है, क्योंकि यह झूठ-मूठ की हंसी लेकर जीना आपको अंदर से खोखला और आक्रामक बना देता है।

किसी के ना रहने के बाद सहानुभूति दिखाने का दौर

किसी के चेहरे की मुस्कान नहीं कहती वो खुश है। उसके मन में झांकने के लिए आपको उसे अपनेपन का एहसास दिलाना पड़ता है।

अफसोस हम वह एहसास उस व्यक्ति के मरने के बाद सोशल मीडिया पर दिखाते हैं कि काश उसने मुझसे कहा होता। मरने से पहले वो भी सोच रहा होगा कि काश आपने सुना होता!

अकेलेपन से निपटने के लिए कोशिश स्वयं करनी होगी

बहुत लोग कहते हैं कि अकेलेपन से बाहर निकलने के लिए हमें खुद संवाद बढ़ाना चाहिए लेकिन जब मैंने संवाद बढ़ाया तो क्या आपने सुना? नहीं ना! मैंने कोशिश की मगर आपने मुझे पागल कहकर नज़रअंदाज़ किया।

यह सच है कि अकेलेपन से निपटने के लिए कोशिश खुद करनी चाहिए लेकिन यब भी सच है कि सब कुछ होकर भी ऐसी खुशी किसी काम की नहीं होती जिसे बांटने वाला कोई ना हो।

इसलिए मर जाना ज़्यादा बेहतर है और इस तरह की कई और खबरें आएं तो हैरान मत होइएगा, क्योंकि ये लोग तो पागल हैं!

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