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यदि आप ‘ठेठ’ पूर्वांचली हैं तो रक्तांचल देखने से पहले जानें यह ज़रूरी बात

ध्यान दें: इस रिव्यु में स्पॉइलर्स हैं

पिछले कुछ सालों से भारत में वेब सीरीज़ का प्रचलन बढ़ा है जिसके इसके कई कारण हैं। जैसे- ओटीटी प्लेटफार्म यानी ‘ओवर द टॉप’ प्लेटफार्म मतलब इंटरनेट पर दिखाए जाने वाले कंटेंट में सेंसरशिप इत्यादि की बाध्यता का ना होना।

साथ ही कभी भी मोबाईल या लैपटॉप पर देख पाने की सुविधा का होना। यही नहीं, इनका आम जनजीवन से जुड़ी बातों पर ज़्यादा केंद्रित होना या ज़्यादा लंबा या उबाऊ होने के बजाय काफी संक्षेप में कहानी का दर्शाया जाना।

इन सभी कारणों में सबसे बड़ा कारण है किसी वेब सीरीज़ की कहानी का आम जनता से जुड़ा होना और साथ में कंटेंट का इतना रोचक होना कि दर्शक बंध जाएं।

28 मई को एमएक्स प्लेयर पर एक नई वेब सीरीज़ आई “रक्तांचल।” रक्तांचल में मुख्य भूमिका क्रांति प्रकाश झा, निकतीन धीर, रोंजिनि चक्रवर्ती, चितरंजन त्रिपाठी और विक्रम कोचर ने निभाई।

कहानी की बात

पूरी पटकथा 80 के दशक में पूर्वांचल के गाज़ीपुर और वाराणसी ज़िलों के आसपास घूमती है। रक्तांचल कहानी है विजय (क्रांति प्रकाश झा) नाम के एक लड़के की जो कलेक्टर बनना चाहता है।

विजय के पिता की हत्या पूर्वांचल के माफिया डॉन वसीम खान (निकतीन धीर) के गुंडे कर देते हैं। इसके बाद विजय अपने चाचा बेचन सिंह (चितरंजन त्रिपाठी) के साथ मिलकर इस हत्या का बदला वसीम खान के गुंडों की हत्या कर के लेता है।

बदले की आग के साथ शुरू होता है विजय का नया सफर जब वह वसीम खान के एकक्षत्र माफिया राज को उसी के तौर-तरीकों से चुनौती देता है। इसी सफर में दोनों तरफ से कई लोगों की हत्या होती हैं।

गैंगवार से पूर्वांचल बन जाता है रक्तांचल। कहानी में हिन्दू-मुस्लिम दंगे, अयोध्या एवं राम मंदिर जैसे ज्वलंत मुद्दों को भी उठाया गया है।

किरदार

विजय के रूप में क्रांति प्रकाश झा खूब जमे हैं। सनकी पांडेय के रूप में विक्रम कोचर का किरदार कहानी में नई जान डाल देता है।

त्रिपुरारी के रोल में प्रमोद पाठक का अभिनय ज़बरदस्त रहा है। वसीम खान के रोल में निकतीन धीर सहज नहीं नज़र आते और पुजारी सिंह के रोल में रवि खानविलकर भी फिट नहीं बैठते।

क्यों देखें?

अगर अस्सी के दशक के पूर्वांचल की गुंडई, राजनीति और ठेकेदारी समझना चाहते हैं तो ज़रूर देखिए रक्तांचल। “रंगबाज़” के बाद शायद यह दूसरी बार है जब इतने बेहतर ढंग से पूर्वांचल की किसी कहानी को पर्दे पर उतारा गया है।

गैंग्स ऑफ वासेपुर में कोयला माफिया की कहानी थी और मिर्ज़ापुर में हथियार माफिया की। यह शायद पहली वेब सीरीज़ है जिसमें देसी शराब, कोयला और ज़मीन, तीनों में लिप्त अपराधों के माफियाओं का चरित्र-चित्रण किया गया है।

क्यों ना देखें?

निकतीन धीर।

अगर पूरी तरह ठेठ पूर्वांचली हैं तो मत देखिए, क्योंकि आप कमी निकाल-निकालकर पूरी सीरीज़ देखेंगे। निकतीन धीर ने वसीम खान के किरदार के साथ न्याय नहीं किया है। पूरी सीरीज़ में ऐसा लग रहा है कि उनसे ज़बरदस्ती पूर्वांचली हिंदी बुलवाई गई है।

मेरे विचार से इस रोल के लिए पंकज त्रिपाठी या मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब में से किसी को चुना जा सकता था। यही बात पुजारी सिंह के भी किरदार पर लागू होती है। यदि रवि खानविलकर की जगह अनुपम श्याम को चुना जाता तो बेहतर होता।

अच्छी बात

सीरीज़ के अंतिम सीन में विजय को गोली लगती है और वह नदी में बहकर दूसरे किनारे पहुंचता है। वहां घाट पर उसके कॉलेज के दिनों की प्रेमिका जिसकी अब शादी हो चुकी है, अपने परिवार और अन्य गाँव वालों के साथ महापर्व छठ मना रही होती है।

मेरे हिसाब से अब विजय गंडक नदी पार कर के बिहार की सीमा में प्रवेश कर चुका है। अत: अगले सीज़न में सम्भवतः बिहार की पटकथा पर आगे की कहानी बनाई जाएगी।

स्पेशल मेंशन

क्रांति प्रकाश झा ने इतनी ज़्यादा नैचुरल एक्टिंग की है कि आप सीरीज़ देखने के बाद उन्हें विजय सिंह ही बोलना पसंद करेंगे। उनकी एक्टिंग इस कहानी को सेक्रेड गेम्स, असुर और पाताल लोक के टक्कर में लाकर खड़ी कर देती है।

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