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एक्शन से भरपूर ‘रक्तांचल’ वेब सीरीज़ पूर्वांचली राजनीति की एक झलक है

review of Raktanchal Web Series

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“इंसान तो एक-ना-एक दिन मरता ही है, चाहे वह हॉस्पिटल में मरे, रोड पर मरे या खदान में क्या फर्क पड़ता है।” इसी लाइन से रक्तांचल वेब सीरीज़ में रक्तपात शुरू होता है।

हर बाप का एक सपना होता है कि उसका बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने। खासकर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के ज़्यादातर घरों में माता-पिता का एक ही सपना होता है कि मेरा बेटा कलेक्टर बन जाए। बस यही सपना वीरेंद्र सिंह यानी विजय सिंह के पिता का भी था लेकिन कहते हैं ना दिक्कतें जिंदगी का हिस्सा होती हैं, तो बस यही चीज़ विजय सिंह के साथ भी हुई।

रक्तांचल फिल्म का पोस्टर तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

पूर्वांचल की राजनीति की ओर इशारा करती है यह सीरीज़

एक कहावत है, “जो पूर्वांचल को जीतेगा वही सरकार बनाएगा।” राजनीति पूर्वांचल के कण कण में बसती है। राजनीति में बाहुबली होना उतना ही ज़रूरी है, जितना पानी में ऑक्सीजन का होना ज़रूरी है।

सीरीज़ में वसीम खान एक पूर्वी उत्तर प्रदेश का बाहुबली है, जिसे हर वह कॉन्ट्रैक्ट मिलता है जो उसे चाहिए। इन कॉन्ट्रैक्ट्स को हासिल करने में वसीम खान की मदद गाज़ीपुर के विधायक पुजारी सिंह करते हैं। वसीम खान कोयले से लेकर देशी शराब तक का धंधा करता है। धंधे की वजह से पूरे पूर्वांचल में वसीम खान का वर्चस्व है।

उधर विजय सिंह अपने पिता वीरेंद्र सिंह का बदला लेने के लिए तड़पड़ता रहता है। क्योंकि वसीम के आदमी ने उसके पिता की हत्या उसके सामने ही की थी। तब से कलेक्टर बनने का सपना छोड़ विजय सिंह का मकसद अब बस अपने पिता की मौत का बदला लेना रह जाता है। यह वेब सीरीज़ देखकर आपको कहीं-कहीं पर लगेगा कि आप ‘हैदर’ देख रहे हैं।

वेब सीरीज़ का एक दृश्य तस्वीर साभार: YKA यूज़र

एक्शन से भरपूर है यह सीरीज़

विजय सिंह गुल्ली सिंह को मारकर अपने पिता का बदला लेने की शुरुआत कर देता है लेकिन उसे मारने के बाद वह जेल भी चला जाता है। तभी जेल में उसकी मुलाकात तृपुरारी से होती है। तृपुरारी का मकसद भी वसीम खान को मारना ही होता है।

कहानी आगे बढ़ती है। विजय सिंह और तृपुरारी जेल से छुटने के बाद हर कदम पर वसीम खान पर भारी पड़ने लगते हैं। जिससे वसीम खान के हर धंधे में परेशानी पैदा होने लगती है।

धीरे-धीरे पूरे पूर्वांचल में वसीम खान का वर्चस्व खत्म करके विजय सिंह अपना दबदबा बनाने लगता है। अब विजय हर वह धंधा करना शुरू कर देता जो वसीम खान करता था लेकिन पूरे पूर्वांचल में ऐसे बहुत कम ही लोग होते हैं जो विजय सिंह को चेहरे से पहचानते हों।

विजय सिंह हमेशा चेहरा छुपा के कभी वकील तो कभी रावण बनकर हमला करता है। विजय सिंह का कैरेक्टर पाताल लोक के उस विशाल त्यागी से भी मिलता है जो किसी को मारने के लिए कुछ भी कर सकता है।

धंधे में नुकसान देखकर वासीम खान विजय सिंह को जान से मारने की कोई कसर नहीं छोड़ता है। उधर विजय सिंह के अंदर से उसके पिता की चिता की आग अभी तक नहीं बुझी थी।

वेब सीरीज़ का एक दृश्य तस्वीर साभार: YKA यूज़र

वेब सीरीज़ की कहानी लगती है रटी-रटाई

इस वेब सीरीज़ की कहानी रटी-रटाई लगती है। इसमें कहीं हैदर, तो कहीं मिर्ज़ापुर की झलक देखने को मिलती है। रक्तांचल के निदेशक रितम श्रीवास्तव को शायद यह नहीं पता कि वेब सीरीज़ का मतलब सिर्फ गाली की भरमार डाल देना नहीं होता है।

जब आदमी बिना मन के पिज़्ज़ा तक नहीं खाता तो हर दूसरी लाइन में फालतू की गाली क्यों सुनेगा? यहां हर दूसरी लाइन में गाली, होने से कहानी कमज़ोर हो जाती है और मज़ा भी नहीं आता। मज़ा तब आता है जब सीरीज़ या फिल्म के कंटेंट में दम हो।

कलाकारों की एक्टिंग सीरीज़ के कंटेंट से कहीं से ज़्यादा अच्छी है। वसीम खान से लेकर सनकी पांडे तक ने अपना किरदार बेहतरीन तरीके से निभाया।

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