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क्या इस बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के खिलाफ काम करेंगे प्रशांत किशोर?

अक्टूबर में बिहार विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। नेता ज़ोर-शोर से चुनाव प्रचार में लग चुके हैं। क्या प्रशांत किशोर, नीतीश कुमार के विरुद्ध बिहार में नए विकल्प‌ बन सकते हैं?

आरोप-प्रत्यारोप के दौर में नेता और पार्टी जब ज़ोर-शोर से एक-दूसरे पर उंगली उठाने लगें, तो यह तय है कि चुनाव नज़दीक है। ऐसा ही कुछ नज़ारा अब बिहार में भी देखने को मिल रहा है। अक्टूबर में 243 सीटों पर बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।

बिहार की राजनीति कमज़ोर शासन और भ्रष्ट नेताओं से सराबोर है

वर्तमान बिहार में चार मुख्य राजनीतिक दल, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड), भारतीय जनता पार्टी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलावा राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा जैसे कुछ छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ सभी चार बिहार की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

जबकि लोक जनशक्ति पार्टी, बिहार की राजनीति में एक छोटी खिलाड़ी है। वर्तमान बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन है। किसी भी भारतीय राज्य की तुलना में बिहार में अधिक अनपढ़ लोग हैं। यद्यपि साल 2011 से एक दशक में साक्षरता 14.8 प्रतिशत बढ़ी है। बिहार को देश का सबसे पिछड़ा राज्य भी कहा जाता है।

यूपी-महाराष्ट्र के बाद अगर किसी राज्य को राजनीति के नज़रिए से बड़ा देखा जाता है, तो वह बिहार है। इसलिए नेता किसी भी हाल में बिहार की सीटों पर विजय पाने के लिए अपना जी जान लगा देते हैं।

प्रवासी श्रमिकों को राजनीतिक दल अपने वोट बैंक के रूप में देख रहे हैं

घर लौटते प्रवासी मज़दूर। फोटो साभार- Getty Images

इतनी बड़ी संख्या में लौटे प्रवासी परिवार बिहार विधानसभा चुनाव को प्रभावित करने के लिए काफी हैं। यही कारण है कि कामगारों की परेशानी और आक्रोश को विपक्ष भुनाने में लगा है। जबकि सत्ता पक्ष मरहम लगाने की कोशिश कर रहा है।

लॉकडाउन के दौरान घर लौटे प्रवासी श्रमिकों को अपना बनाने की होड़ उत्‍तर प्रदेश से होते हुए बिहार तक पहुंच गई। रोज़ी-रोटी छोड़कर लाखों की संख्या में लोग लौटे हैं, ऐसे में राजनीतिक दल उन्हें वोट बैंक के रूप में आंकने लगे हैं।

श्रमिकों पर सब में चारों तरफ से कृपा बरसाने की बेताबी है। राष्‍ट्रीय जनता दल समेत तमाम विपक्षी दल संवेदना जता रहे हैं। परेशान श्रमिकों को अपना बता रहे हैं। सत्तारूढ़ दल भी पीछे नहीं हैं। आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो चुका है।

जनता के आजमाए विकल्प हुए फैल

बिहार की जनता जदयू, आरजेडी, बीजेपी और काँग्रेस सबको मौका दे चुकी है लेकिन आज तक इंडस्ट्री, शिक्षा, हेल्थ, सुरक्षा, काम के लिए पलायन और भ्रष्टचार जैसे बड़े मुद्दे पर कोई खास काम नहीं हुआ। सारी पार्टियां अपने इन सब वादों पर कभी खड़ी ना हो सकीं।

जनता ने जिस विश्वास के साथ ऐसे ज़मीनी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए इन नेताओं को सत्ता पर बैठाया था, उसमें ये विफल रहें।

बिहार में प्रशांत किशोर हो सकते हैं नए विकल्प

प्रशांत किशोर। फोटो साभार- Getty Images

अपने अभियान “बात बिहार की” के ज़रिये प्रशांत किशोर अकेले ही राजनीति के अखाड़े में उतर चुके हैं। उनको अब नीतीश कुमार के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।

दिल्ली में केजरीवाल सरकार को प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी कराकर अपनी रणनीति का लोहा मनवा चुके प्रशांत किशोर अकेले ही राजनीति में अपने पैर रखने जा रहे हैं। नरेंद्र मोदी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक के चुनावी प्रचार अभियान के सारथी रहे प्रशांत किशोर अब खुद ही राजनीति के कुरुक्षेत्र में सीधे उतरेंगे और राजनीति की कमान खुद संभालेंगे।

दिलचस्प बात यह है कि 2015 में जिन नीतीश कुमार के लिए प्रशांत ने नारा गढ़ा था, “बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है।” अब प्रशांत उन्हीं नीतीश कुमार को चुनौती देने जा रहे हैं।

बताया जाता है कि पिछले कई महीनों से प्रशांत किशोर की टीम बिहार में एक नया विकल्प बनाने की संभावनाओं पर काम कर रही है। अब आने वाला समय ही बताएगा कि बिहार में किसकी जीत होगी और कौन मुंह के बल गिरेगा?

बिहार के चुनावी अखाड़े में कितनी उठक-पठक होगी और कितने रंग बदले जाएंगे, यह कुछ दिनों में पता चल ही जाएगा सबको।

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