हम, हमारे संस्कार इतने जटिल हो चले हैं कि हम कुछ भी सहज भाव से अपनाने से कतराते हैं। आपने एक शब्द तो सुना होगा ‘सेक्स’, जिसको सुनते ही हम में से कितने ही लोग नाक-भौंह सिकोड़ने लग जाते हैं और यदि यही शब्द किसी लड़की के मुंह पर आ जाए तब तो उसका चरित्र विश्लेषण भी इसी आधार पर किया जा सकता है।
जहां सेक्स शब्द को सुनने, बोलने में ही इतनी असहजता हो तो उस पर बात करना कितना सहज होगा, इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। हमने तो एक ऐसे समाज को बना रखा है जिसकी कई परतें हैं। जहां बोलने, चुप रहने के अपने-अपने दायरे तय हैं।
उसी समाज का एक अनकहा नियम यह है कि लड़के तो एक बारगी सेक्स जैसे विषयों पर दबी, छुपी जुबान, तो कभी फूहड़ मज़ाक के तौर पर ही सही बात कर भी लें लेकिन किसी लड़की के मुंह से निकली ऐसी कोई भी बात उस पर प्रश्नचिन्ह लगाती नज़र आती है।
हमारे समाज में लड़कों के लिए सेक्स शब्द प्लेज़र के समान है मगर लड़कियों के लिए यह वर्जित है। कोई लड़की यदि यह कहती है कि सेक्स उसके लिए भी आनन्द का विषय हो सकता है, तो सारा समाज एक लड़की को घृणा और अपराध की श्रेणी में ला खड़ा करता है।
जब किसी लड़की के शराब या सिगरेट पीने पर ही उसे बिगड़ैल मान लिया जाता है फिर यह तो बाहर का विषय है। पता नहीं हमने कैसे इस तरह के दायरे तय किए हैं, जहां लड़की के सभ्य, संस्कारी होने की परिभाषा थोड़ा कम बोलने और ज़्यादा सुनने वाली होती हैं।
यह सिर्फ किसी पुरुषवादी सोच का नतीजा नहीं है, बल्कि लड़कियां खुद भी एक-दूसरे को इसी बात पर परखती नज़र आती हैं। यूं तो आमतौर पर किसी भी लड़की को आपने सेक्स पर खुलकर बात करते नहीं देखा होगा, बेशक वो चाहकर भी कर नहीं कस सकतीं होंगी।
मुझे हॉस्टल का एक किस्सा याद है जब एक लड़की से दूर रहने की सबको हिदायत दी जाती थी और कहा जाता कि वो एक खराब लड़की है लेकिन कोई बताता नहीं उसमें आखिर खराबी है क्या? एक रोज़ मैंने उसी से पूछ लिया आपके पीठ-पीछे सब इतनी बातें क्यों करते हैं?
वो बोली, “मैंने बातों ही बातों में एक दिन सिर्फ यह समझकर कि सारी लड़कियां मुझ जैसी ही तो हैं, कह दिया मैंने अपने पार्टनर को छोड़ा, क्योंकि उसके साथ मुझे कोई खास मज़ा नहीं आता था तब से कहा जाता है कि मैं एक बुरी लड़की हूं।”
यह बात यहां ज़रूरी थी भी और नहीं भी क्योंकि यदि एक समाज जिसकी बनावट ऐसी है, जहां हमने खुद ही मान लिया है कि कौन से विषय हमारे हैं और कौन से नहीं, वहां आप उस समाज से क्या उम्मीद रख सकते हैं जो सड़कों, चाय के खोमचों पर खड़े होकर आदतन आपकी माँ-बहनों को हंस-हंसकर गालियां देते चले जाते हैं।
सबसे अजीब बात तो यह है कि आपको इन चीज़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता है, क्योंकि गाली देना उनका अधिकार है लेकिन यदि एक लड़की के तौर पर आप, अपने अधिकार की बात करें बेशक उसमें आपकी यौन इच्छा भी शामिल है, तो एक लड़की को असभ्य और बेशर्म कह दिया जाता है।
और तो और, लड़कियां सेक्स पर अपने पार्टनर से भी बात नहीं कर सकती हैं, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें एडवांस मान लिया जाता है लेकिन सवाल यह है कि ऐसा क्यों? जहां हर लड़के-लड़की को सेक्स जैसे विषय पर एक स्वस्थ्य जानकारी दी जाना चाहिए, वहां हम इस पर बात पर तो छोड़िए, सेक्स शब्द तक कहने में कभी सहज होते ही नहीं हैं।
दूसरी तरफ, यह एक मौन धारणा है कि इस विषय पर लड़कियों का बोलना ठीक नहीं! जबकि जहां तक सेक्स की बात है, लड़कियों को लड़को से कहीं ज़्यादा इस विषय को समझने की ज़रूरत है। कई दफा वे समझ ही नहीं पाती असल में सेक्स और क्रूरता में कितना फर्क होता है?