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क्या वेब सीरीज़ में प्रयोग होने वाली गालियों का युवाओं पर बुरा असर पड़ रहा है?

जहां एक ओर हम सभी कोविड-19 को लेकर तरह-तरह से एहतियात बरत रहे हैं, वहीं लॉकडाउन की वजह से युवाओं का रुझान इंटरनेट पर आने वाली वेबसीरीज़ की ओर अधिक है।

वेब सीरीज़ में इस्तेमाल होने वाली अनोपचारिक शब्दों या भाषा का प्रचलन काफी देखने को मिल रहा है। इन शब्दों को स्लैंग कहते हैं।

जहां हमें बचपन में इन शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए माता-पिता मना करते थे, वहीं आज यह शब्द हर किसी की ज़ुबान पर बैठ गया है।

सोचने की बात है कि जहां एक ओर सरकार पॉर्न साइट्स को बंद करने की बात कर रही है, वहीं कई वेबसीरीज़ में इसे खुलेआम दिखाया जा रहा है।

अल्ट बालाजी पर आने वाली गंदी बात हो या फिर नेटफ्लिक्स पर एडल्ट से जुड़ी सीरीज़ हो, ऐसी कई एप्स और वेब सीरीज़ हैं, जिन पर आसानी से इस तरह के कंटेंट मिल जाते हैं। रक्तांचल, पाताल लोक, जामताड़ा आदि कई वेबसीरीज़ इसके उदाहरण हैं।

लॉकडाउन में वेब सीरीज़ का इस्तेमाल आम दिनों के मुकाबले ज़्यादा

लॉकडाउन में वेब सीरीज़ का इस्तेमाल लोग आम दिनों के मुकाबले लोग ज़्यादा कर रहे हैं। लोग इन वेब सीरीज़ से इस कदर प्रभावित हो रहे हैं कि अपने दोस्तों से बातचीत के दौरान इन स्लैंग शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं।

उनके हिसाब से ये शब्द उन्हें मॉडर्न बनाते हैं, जो आगे जाकर समाज और इसके कोड ऑफ कनडक्ट के लिए काफी हानिकारक होगा।

क्या कहते हैं फिल्म समीक्षक?

फिल्म समीक्षक विनोद अनुपम का कहना है कि सेंसर और बाज़ार के दबाव से फिल्मकारों की जो रचनात्मकता दबी रह जाती थी, उन्हें वेब सीरीज़ के रूप में एक प्लेटफॉर्म मिलेगा। बहुत जल्दी इस बात का भ्रम टूट गया। 

आज सेक्रेड गेम्स, रक्तांचल, मिर्ज़ापुर, जामताड़ा और रंगबाज़ जैसी कई वेब सीरीज़ हमारे सामने हैं। चूंकि वेब सीरीज़ के टार्गेट ऑडियंस युवा हैं, उन्हें यह खुलापन आकर्षित भी करता है और नकल के लिए प्रेरित भी लेकिन कहीं ना कहीं मनोरंजन का यह नया साधन हमें हमारे संस्कारों और सरोकारों से दूर भी करता है। 

सच तो यह है कि यथार्थ दिखाने की सराहना की जा सकती है लेकिन यह भी सच है कि यथार्थ के नाम पर हम अपने घर का कूड़ेदान तो नहीं दिखाते।

क्या कहते हैं समाज शास्त्री?

डीएम दिवाकर जो समाजशास्त्री हैं, वो कहते हैं, “समाज सोशल वैल्यूज़ पर काम करता है। जबकि सरकार गवर्नेंस पर। ऐसे में दोनों में तालमेल होने पर सभी का विकास होता है। आज युवा मॉडर्न बनने के लिए तकनीक की ओर अग्रसर हो रहे हैं। ऐसे में इस तरह की वेब सीरीज़ उनके ज़हन और लाइफ स्टाइल का हिस्सा बनती जा रही हैं।”

वो आगे कहते हैं, “आज युवा वेब सीरीज़ में इस्तेमाल होने वाले शब्दों को अपनी दिनचर्या में शामिल कर रहे हैं। जिसकी वजह से सोशल वैल्यूज़ पीछे छुट जाती हैं।  पुंजीवादी बस अपना प्रॉफिट देख रहे हैं। युवाओं को क्या परोसा जा रहा है, इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है। अन्यथा समाज से सोशल वैल्यूज़ ज़रूर समाप्त हो जाएगी, जो बेहद खतरनाक है।”

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