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#My Period Story: मेरी कश्मकश भरी कहानी

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परेशान लड़की का प्रतीकात्मक तस्वीर

जब में पहेली बार महावारी से हुई :-   जब मेरे पीरियड्स पहली बार आये थे तब मुझे पता भी नहीं था की ये क्या हें और यह क्या हुआ मुझे, घर वालों को बताने में भी शर्म आ रही थी की केसे बताउ मेरी योनी में से खून आ रहा है क्योकि उस समय  योनी या अपने गुप्त अंगो के बारे में बात करना अच्छा नही मानते थे | हम अपने घर वालों से या भाई बहन से महावारी या गुप्त अंगो को लेकर बात नहीं करते थे | कुछ घन्टे बीत गये जब मेरी दीदी ने देखा कि मेरे ब्लड आ रहा है और मेरे कपडे खून में हो रहे थे तो  उन्होंने मुझे समझाया कि तेरे महावारी आई  है और फिर उन्होंने मुझे कपड़ा लगाना बताया की इसको इस तरह से लगाते हैं | उस समय मुझे सेनेटरी नेपकिन की जानकारी नही थी और घर पर हम 5 बहने है तो  इतने पैसे भी नही थे की हम सब सेनेटरी नेपकिन का उपयोग कर  सके | मुझे दीदी ने समझाया की महावरी के समय  मंदिर में नहीं जाना, अचार के हाथ  नहीं  लगाना, चोराहे पर नहीं जाना और भी कई बातो का ध्यान रखने को कहा |

स्कूल और ऑफिस के अनुभव :- महावारी आने से पहले मुझे स्कूल में  किसी प्रकार की कोई दिक्कत नही होती थी | अच्छे से खेलती थी, पढाई करती थी, क्लास में बैठना अच्छा लगता था  परन्तु महावारी आने के बाद महावारी के वह 7 दिन स्कूल में काफी दिक्कत आती थी क्योकि कपडे ख़राब होने का डर, स्कूल में शोचालय में पानी की व्यवस्था नही होना, डस्टबिन भी नही होता था | कपडे के गिरने का डर, कही स्कूल में किसी को पता ना लग जाये आदि  का डर रहेता था | फिर मेने नेपकिन का उपयोग करना शुरू किया जिससे काफी दिक्कते कम हुई |

ऑफिस के शुरआती दोर में काफी दिक्कत आती थी गाड़ी चलाने में, ऑफिस जाने में, कुर्सी पर बेठने में, कही कोई दाग न लग जाये, नेपकिन चेंज करने में आदि | रूम टू रीड संस्था में आने के बाद महावरी को लेकर मेरे में काफी बदलाब आया और मेरी महावारी को लेकर सोच भी बदली |

 माहवारी के दौरान  धारणा को तोड़ने का अनुभव :- मेने अपने महावारी के दोरान कही धारणाओं को तोडा हें उन्हें तोड़ने में काफी दिक्कत आई क्योकि हमारे समाज में महावारी के समय मन्दिर जाना, अचार व पापड़ को बनाते समय  हाथ नही लगाना आदि कही तरीके की धारणा मानी जाती हें | पर मेने रूम टू रीड में आने के बाद इन धारणाओं को तोडा मेने महावारी के दोरान अचार बनाया पापड़ भी बनाये और साथ ही महावारी के दोरान  कई बार मन्दिर भी गई | जब में पहली बार मन्दिर गई थी तो मम्मी ने खूब चिलाया और कहा की बुधि भ्रष्ट हो जायेगी पागल हो जायेगी दिमाग नही चलेगा आदि, और मेरी छोटी बहन को मन्दिर जाने से मना कर दिया की ये तो पागल हें तू तो मत जइयो जो होगा इसे ही होगा | में अब मम्मी से कहती हु कुछ नही होता हें ये सब फालतू की बाते हें देखो मुझे भी आपने मना किया था पर में सही हु मुझे कुछ नही हुआ हें | जब मेने अचार डाला और पापड़ बनाये वो भी ख़राब नही हुआ ये सब बाते मेने अपनी मम्मी और छोटी बहन को समझाई और छोटी बहन की सोच भी बदली और मम्मी की भी, मुझे ये धारणा तोड़ने के बाद और अपने घर वालो की सोच बदले के बाद अच्छा लगा | में और लोगो को भी इसके लिए जागरूक करती हु ताकि वो भी इन धारणाओं को तोड़ सके और दुसरो को भी इन धारणाओं के प्रति जागरूक कर सके | माहवारी एक प्राक्रतिक चीज हें यह कोई समस्या नही हें और इससे निकलने  वाला खून भी गन्दा नही होता हें इन सब चीजो को लेकर भी में कई लोगे से बात करती हु और उनकी सोच बदलने का प्रयास करती हु |

चंचल चौहान, Room to Read

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