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दुनिया के ऊपर है 90 सालों में सबसे बड़ी बेरोज़गारी का खतरा

भारत में आज़ादी के समय से ही रोज़गार की समस्या बनी हुई है लेकिन आज़ादी के बाद प्राम्भिक दो दशको में ऐसा माना जाने लगा कि आर्थिक संवृद्धि होगी तो रोज़गार अपने आप सृजित हो जाएगा।

भारत में पहली बार पांचवी पंचवर्षीय योजना में रोज़गार की समस्या को कम करने के लिए नीति अपनाई गई और तब से लेकर अभी तक सरकारें इस दिशा में लगातार प्रयास कर रही हैं।

फिर भी वर्तमान समय में रोज़गार की समस्या एक बड़ी दिक्कत बनी हुई है। इसी बीच कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने स्थिति और बिगाड़ दी है।

क्या है CMIE की ताजा रिपोर्ट

CMIE रिपोर्ट के अनुसार,  मई 2019 में भारत में बेरोज़गारी दर 7.03 प्रतिशत थी जो अप्रैल 2020 में बढ़कर 23.52 प्रतिशत हो गई। अगर भारत में अप्रैल 2020 में बेरोज़गारी का आंकड़ा देखें तो सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी दर पाण्डिचेरी (75.8%), तमिलनाडु (49.8%),झारखण्ड (47.2%), बिहार (46.6%) तथा हरियाणा (43.2%) में है।

अगर कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन के पहले का आंकड़ा देखें तो जनवरी 2020 से मार्च 2020 के बीच देश में मज़दूरों की सहभागिता 90 लाख तक घटी है। इसका कारण यह है की लॉकडउन के पहले से ही भारत में रोज़गार की कमी होने लगी थी।

भारत में लगातार बढ़ रही है बेरोज़गारी : प्रतीकात्मक तस्वीर

1930 के बाद दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी

अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार, कोरोना वायरस लॉकडाउन की वजह से जो आर्थिक मंदी आई है। यह 1930 की आर्थिक मंदी के बाद दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी होगी। 1930 की आर्थिक मंदी में ज़्यादातर देशों की बेरोज़गारी दर 25 से 30 प्रतिशत थी लेकिन 1930 की आर्थिक मंदी संरचनात्मक आर्थिक समस्या के कारण आई थी जबकि वर्तमान समय में सरकार ने  खुद उत्पादन कार्य बंद किया है।

ऐसे में, कुछ अर्थशात्रियों का मानना है कि कोरोना वायरस की वजह से आई आर्थिक मंदी ज़्यादा समय तक नहीं चलेगी। उत्पादन कार्य शुरू होने पर कम समय में ही यह रिकवर हो जाएगा। वहीं अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों के अनुसार, कुल विश्व श्रमिकों के 38 प्रतिशत श्रमिक के या तो वेतन में कटौती होगी या फिर उनको रोज़गार से बाहर कर दिया जाएगा। इसके अलावा लगभग 2.7 प्रतिशत श्रमिक प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कोरोना वायरस से प्रभावित होंगे।

जीडीपी का मात्र एक प्रतिशत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों में निवेश करता है भारत

कोरोना काल में सामाजिक दूरी के कारण मुख्य रूप से घरेलू क्षेत्र में जो श्रमिक काम करने वाले थे उनको काम नहीं मिल रहा है। इससे मांग में लगातार कमी होती जा रही है। वर्तमान समय में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के विकास को बढ़ावा देना भी रोज़गार सृजन तथा विकास के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन इस क्षेत्र में ज़्यादा निवेश की ज़रुरत है।

भारत अभी भी अपनी सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों में निवेश करता है जबकि अमेरिका में निवेश की यह दर सकल घरेलू उत्पाद का 10% है।

कोरोना वायरस के दौरान कृषि क्षेत्र में तो उत्पादन कार्य चल रहा है लेकिन औद्योगिक क्षेत्र और सेवा क्षेत्र में उत्पादन कार्य बंद हो गया। दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरो में काम करने वाले प्रवासी श्रमिक गाँव आ गए हैं। जबकि कृषि क्षेत्र में दीर्घकालीन समस्या पहले से बनी हुई है क्योंकि कृषि क्षेत्र में पहले से ही संसाधन सीमित हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

गाँव और शहर दोनों जगह बेरोज़गारी बढ़ेगी

जो भी मजदूर पहले से औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में काम कर रहे थे वहां वे अपने आमदनी से मांग का सृजन करते थे। इसके कारण शहरी बेरोज़गारी बढ़ेगी। इसके आलावा सभी श्रमिक कुछ पैसा बचाकर अपने घर भेजते थे। इससे ग्रामीण क्षेत्र में भी मांग का सृजन होता था।

अब कोरोना वायरस के कारण कृषि क्षेत्र में शहरों से काम करने वाले अतिरिक्त श्रमिक गाँव में आए उन सभी श्रमिकों की सीमान्त उत्पादकता शून्य होगी। इससे ग्रामीण क्षेत्र में भी बेरोज़गारी बढ़ेगी क्योंकि जब मज़दूर शहर से गाँव में आने लगे तो उन्हें बहुत-सी समस्याओं का सामना करना पड़ा। श्रमिकों के पास नकद पैसा नहीं था क्योंकि उनका रोज़गार पहले ही कोरोना वायरस की वजह से बंद हो चुका था।

सरकार का विश्वास हुआ है कम

ऐसे में सरकार को श्रमिकों को नि:शुल्क और सुरक्षित घर पहुचाना था लेकिन हमारी सरकार कहीं-न-कहीं ऐसा करने में फेल रही। अब जब फिर से उत्पादन कार्य शुरू होगा तो फिर ये सभी श्रमिक शहर जाना ही नहीं चाहेंगे। इस समय जब उत्पादन कार्य फिर से शुरू किया जा रहा है, तो सरकार को दोनों समस्याओं का ध्यान देना होगा जिसमें पहली समस्या कोरोना वायरस और दूसरी समस्या बेरोज़गारी है।

औद्योगिक इकाई को सुचारू रूप से चलाने के लिए श्रमिकों को पुनः सुरक्षित नकद राशि देकर नि:शुल्क शहर भेजा जाए और वहां औद्योगिक इकाई के आस-पास ही उनके रहने और खाने की सुरक्षित व्यवस्था की जाए। इस क्रम में सबसे पहले नवयुवक श्रमिकों को भेजा जाए उसके बाद बाकी अन्य श्रमिकों की भी व्यवस्था हो। जो बाकी श्रमिक बचे रहें, उनको तब तक कुछ नकद राशि दिया जाए।

दूसरी तरफ औद्योगिक क्षेत्र में भी उत्पादन कार्य शुरू करने में समस्या हो रही है क्योंकि औद्योगिक क्षेत्र की भी काम करने वाली पूंजी खत्म हो चुकी होगी। औद्योगिक क्षेत्र में निवेश के लिए बैंकिंग क्षेत्र को मज़बूत करना होगा। कोरोना वायरस के कारण पैदा हुई इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को मांग और पूर्ति दोनों पक्षों को ध्यान में रखना होगा। उत्पादन कार्य शुरू करने के लिए उद्योगों को सहयोग करना होगा और जो प्रवासी श्रमिक गाँव आ गए हैं उनका भी सहयोग करना होगा।

प्रतीकात्मक तस्वीर

गाँधीवादी आर्थिक व्यवस्था को अपनाना होगा

अर्थशास्त्री गुन्नार मिर्डल अपनी 1968 में प्रकाशित पुस्तक “एशियन ड्रामा” में लिखते हैं कि एशिया को आर्थिक विकास के लिए गांधीवादी आर्थिक व्यवस्था को अपनाना होगा। गांधीवादी आर्थिक व्यवस्था श्रम प्रधान तथा छोटे उद्योगों के पक्ष में थी।

गाँधी जी की दृष्टि में लघु उद्योगों के विकास से रोज़गार का सृजन होगा और बेरोज़गारी में कमी होगी लेकिन वर्तमान समय में आर्थिक विकास की गाँधीवादी अवधारणा सफल तभी होगी जब सभी व्यक्ति जागरूक होंगे। जबकि देश में अभी भी जागरूकता का अभाव है जो शिक्षा के माध्यम से लाई जा सकती है।


संदर्भ: CMIE रिपोर्ट, अन्तराष्ट्रीय  मुद्रा कोष, अन्तराष्ट्रीय श्रम संगठन, गुन्नार मिर्डल, एशियन ड्रामा, 1968

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