दुनियाभर में कोरोना वायरस की वजह से लोग एक बहुत बुरे हालातों से गुज़र रहे हैं। सभी देश अपनी क्षमता और रणनीतियों के तहत अलग-अलग तरीके से अपने देश को इस वायरस से बचाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत में इस वायरस को देखते हुए पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया गया फिर अनलॉक वन की शुरुआत की गई।
कोरोना वायरस ने विकसित कहे जाने वाले देशों की जड़ों को भी हिला कर रख दिया। ऐसे समय मे एक पुराने वायरस ने भी अपनी गति को और तेज़ कर लिया है। कोरोना वायरस को रोकने के लिए तो लॉकडाउन जैसे कदम उठाए गए हैं लेकिन इस पुराने वायरस को रोकने के लिए अब तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
लॉकडाउन में हिंसा और नफरत तेज़ी से बढ़ा है
जैसे-जैसे कोरोना की वजह से लॉकडाउन के नियम मजबूत होते गए, यह पुराना वायरस भी उतनी ही तेज़ी से सक्रिय रूप से विकराल रूप लेता गया। इस पुराने वायरस का नाम है हिंसा और नफरत। हिंसा जिसको हथियार बनाकर सदियों से दूसरों के अधिकारों का हनन होता आ रहा है।
लॉकडाउन की स्तिथि में हिंसा की क्रियता और ज़्यादा बढ़ गई है। इसकी आग में महिलाएं ,बच्चे, प्रवासी मज़दूर और कई समुदाय, जिसमें खासकर मुसलमान समुदाय, झुलस रहे हैं।
कोरोना वायरस का इलाज खोजने के लिए पूरे विश्व के डॉक्टर, वैज्ञानिक लगातार कोशिश कर रहे हैं लेकिन विडंबना की बात यह है कि इतने दिनों से चल आर रहे हिंसा और नफरत को खत्म करने के लिए कोई ज़रूरी और सफल कदम नहीं उठाया जा सका है। उठाया भी गया है तो समाज में हो रही हिंसा और नफरत बता रहे हैं कि उसकी क्या स्थिति है।
बच्चों के खिलाफ भी बढ़े हैं हिंसा के मामले
चाइल्ड लाइन के अनुसार, 20 मार्च से 31 मार्च के दौरान हेल्पलाइन 1098 पर 3.7 लाख कॉल्स आ चुके हैं। जिनमें से 90 हज़ार कॉल्स बच्चों के उत्पीड़न और हिंसा से जुडे हैं। किसी समाज के लिए यह एक चिन्ता का विषय है कि भारी संख्या में बच्चें असुरक्षित माहौल में उत्पीड़न करने वाले के साथ रह रहे हैं ।
यही वजह है कि इंडिया चाइल्ड लाइन की उपनिदेशक हरलीन वालिया ने जिले स्तर के अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस चिंतनीय विषय पर ध्यान देने का आग्रह किया। लेकिन यह सिर्फ चाइल्ड लाइन की ही ज़िम्मेदारी नहीं है, बल्कि प्रत्येक नागरिक की ज़िम्मेदारी है कि वह अपने आस-पास बच्चों की सुरक्षा को सुनिश्चित करे।
महिलाओं की सुरक्षा का खतरा और बढ़ा है
जिस तरह लॉकडाउन में बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतनीय विषय सामने आया है। इसी प्रकार महिलाओं के प्रति हो रही हिंसा में भी इज़ाफा हुआ है। राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार, महिलाओं के प्रति हिंसा में इस लॉकडाउन के दौरान 40% से 50% तक कि वृद्वि हुई है।
पुरुषों द्वारा पितृसत्ता से सीखी गई मर्दानगी की नुमाइश खुले तौर पर लॉकडाउन में की जा रही है। ऐसा नही है पहले ये नुमाइश नहीं होती थी लेकिन लॉकडाउन के दौरान महिलाओं को बाहर से सहयोग ना मिलने की वजह से स्तिथि ज़्यादा गम्भीर हो गई है।
प्रवासी मज़दूरों और मुस्लिम के खिलाफ भी फैलाई जा रही है नफरत
इसी संदर्भ में प्रवासी मज़दूरों और मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ भी हिंसा लगातार बढ़ रही है। प्रवासी मज़दूर काम ना होने की वजह से अपने घर लौटना चाहते हैं। लेकिन ज़्यादातर लोगों को ऐसा लगता है कि मानो ये लोग घर नहीं जा रहे, बल्कि वायरस फैलाने जा रहे हैं। इसके चलते उनके साथ खुले तौर पर हिंसा हो रही है। एक तरफ वो लोग भूख से मर रहे हैं दूसरी तरफ उनको अन्य लोगों द्वारा प्रताड़ित भी किया जा रहा हैं।
ऐसे ही आजकल मुस्लिम समुदाय को लेकर अलग-अलग तरीके से नफरत फैलाई जा रही है। व्हाट्सएप पर रोज़ाना उनके साथ हो रही हिंसा की घटनाएं सामने आ रही हैं। इस तरह की घटनाओं से मानव अधिकारों का हनन हो रहा है। इस बात पर विचार करने योग्य बात यह है कि क्यों मुश्किल की घड़ी में पुरुष सिर्फ हिंसा को ही हथियार बना लेता है।
बातचीत और समझदारी का इस्तेमाल करके मुश्किल समय का हल निकालने की कोशिश क्यों नहीं करता है? कोरोना वायरस से भी बड़ा वायरस हिंसा है। इन हिंसा और नफ़रतों के दौर को रोकने की सख्त ज़रूरत है। इसमें प्रत्येक नागरिक की अहम भूमिका है।
इसके साथ ही समाचार एजेंसियों को भी अपनी शब्दावली का बार-बार मूल्यांकन करना होगा ताकि किसी भी तरह की हिंसा या नफरत के संदेश को गलती से भी बढ़ावा ना मिलें। यह दुनिया तभी सुंदर बन सकती है जब इसमें हिंसा और नफरतों का सम्पूर्ण लॉकडाउन हो।