Site icon Youth Ki Awaaz

डैरेन सैमी ने किया भारत में अपने खिलाफ हुए नस्लभेदी टिप्पणी का खुलासा

हाल ही में अमेरिका के मिनियापोलिस में पुलिस अधिकारियों ने जॉर्ज फ्लॉयड को घुटनों के नीचे दबाकर मार डाला जो कि अफ्रीकी मूल के अमेरिकी नागरिक थे।

इसके बाद ही दुनियाभर में न्याय की मांग उठने लगी, जगह-जगह प्रदर्शन तेज़ हो गए। साथ ही #BlackLivesMatter हैशटैग चल रहा है। विश्वभर में नस्लीय हिंसा के खिलाफ आवाज़ उठाई जाने लगी है।

डैरेन सैमी भी हुए हैं नस्लभेदी टिप्पणी का शिकार

इन सब घटनाओं के बीच वेस्ट इंडीज के पूर्व कप्तान डैरेन सैमी ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो जारी करते हुए खुद पर हुए नस्लीय भेदभाव की बात स्वीकारी है। वे वीडियो में कह रहे हैं कि मैं देश-दुनिया में जहां भी गया मुझे प्यार मिला है, चाहे वो T-20 हों या आईपीएल लेकिन जब वे हसन मिन्हाज़ को सुन रहे थे कि कैसे उनके कल्चर में काले लोगों को पुकारा जाता है।

मिन्हाज़ को सुनते हुए उन्हें याद आया कि 2013-14 में जब वे सनराइज़र्स हैदराबाद टीम में थे, तब अक्सर उनके साथी खिलाड़ी उन्हें उसी शब्द से पुकारा करते थे मतलब उन पर नस्लभेदी टिप्पणी किया करते थे, उन्हें उस शब्द से बुलातें थे जो कि काले लोगों के लिए अपमानजनक था।

वे आगे कहते हैं, “जब कोई साथी खिलाड़ी मुझे इस तरह बुलाता, तब बाकि साथी खिलाड़ी हंसा करते थे। मैं सोचता शायद इसका मतलब मज़बूत होना होता होगा या ऐसा ही कुछ और जो मुझे आगे की तरफ ले जाए। मैं समझता सब हंस रहे हैं, ज़रुर इसका मतलब कुछ अच्छा होता होगा।”

डैरेन सैमी, क्रिकेटर, वेस्ट इंडीज

सच पता चलने पर मैं निराश हूं : सैमी

उनका कहना है, “जब मुझे सच पता चला, तब मैं बहुत दुखी और निराश हुआ। वो सभी लोग जिन्होंने मुझे ऐसे पुकारा मैं उन सभी को मैसेज करूंगा और पूछूंगा क्या वे लोग खुद को जानते हैं? उनके बार-बार मुझे इस तरह पुकारने के पीछे ऐसा क्या कारण था जिससे मैं उस टिप्पणी को अपना नाम ही समझ बैठा। मैंने एक कैप्टन, एक टीम लीडर के तौर पर हमेशा टीम को जोड़ने की कोशिश की, लेकिन जिन लोगों ने मुझे ऐसे पुकारा यदि उनका इरादा मुझ पर नस्लभेदीय टिपण्णी करने का था। तब मैं उन सब से बहुत निराश हूं।”

वे आगे कहते हैं, “मुझे सुनने वाले बहुत सारे खिलाड़ी मित्रों के पास मेरा नम्बर होंगा मुझसे बात कीजिए। जब ब्लैक मूवमेंट चल रहा है तब आवाज़ उठाना बहुत ज़रूरी है। मैं किसी भी तरह के अन्याय के खिलाफ हूं।”

खड़े हो रहे हैं कई सवाल

अब सोचने वाली बात यह है कि डैरेन सैमी का ये अनुभव क्या सिर्फ उन साथी खिलाड़ियों पर सवाल खड़ा करता है जो उनके साथ ड्रेसिंग रूम, स्टेडियम में रहे होंगे। नहीं! बिल्कुल नहीं, उन चंद खिलाड़ियों को ही नहीं सारे भारतीय कल्चर को इस सवाल का जबाब देना चाहिए।

जहां रंग, रूप, जाति, भाषा और नदियां हर 2-5 कोस पर बदल जाती हैं वहां रंग को तरज़ीह किस बात पर दी जाती है। हमारे कल्चर में सुंदरता का पैमाना कई युगों से तय और अनवरत चला आ रहा है। हम कहानियों, किरदारों, टीवी, सीरियल्स और विज्ञापनों में देखते-सुनते चले जा रहे हैं सुंदरता की की परिभाषा वो रंग है जो किसी झरने-सा सफेद है।

बस यही बैठा रखा है हमारे मन ने, एक सफेद चेहरे को जहां बार-बार जताया जाता है कि वो सुन्दर है। वहीं, एक सांवले रंग को जता दिया जाता है कि तुम गोरे होते तो शायद अच्छे दिखते। कैसे हम एक ही समुदाय में रहकर किसी एक को इतना उपेक्षित बना देते हैं?

काला-गोरा नहीं इंसान होना है ज़रूरी

यह लिखते वक्त डैरेन सैमी की तरह मुझे भी कुछ याद आ गया। मेरा अपना अनुभव रहा है जब कोई मित्र परिचित किसी विशेष मौके पर मेरी तारीफ करता है तब तारीफ के साथ यह जोड़ना नहीं भूलता कि तुम गोरी लग रही हो। मतलब मेरे अच्छा या बुरा दिखने में मेरा नहीं गोरे रंग की भूमिका है जो कि है भी नहीं।

फिर आप उन लोगों की हीनभावना का अंदाज़ा कैसे लगा सकते हैं जिन्हें पल-पल उनके रंग को लेकर नसीहतें ओर सलाह दी जाती हैं। यही भेदभाव किसी दिन इतना बढ़ जाता है कि अमेरिका से लेकर भारत तक किसी भी शहर में आसानी से किसी की जान ले सके।

काला, गोरा या कोई भी रंग इसलिए नहीं है कि किसी को बांटा जा सके। उम्मीद है डैरेन सैमी के वीडियो और जॉर्ज फ्लॉयड की दर्दनाक मौत से लोग सबक लेंगे कि रंग किसी का अपना चुनाव नहीं होता लेकिन आपका व्यक्तित्व आपका चुनाव है जिसकी ज़िम्मेदारी सिवाय आपके किसी और की नहीं है।

Exit mobile version