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दिल्ली के अस्पतालों में सिर्फ दिल्लीवासियों के इलाज में बुराई क्या है?

भारत का ऐसा कौन सा हिस्सा है, जिस पर समस्त भारतवासियों का अधिकार नहीं है? भारत एक संवैधानिक राष्ट्र के तौर पर एकल नागरिकता पर आधारित राष्ट्रीयता प्रदान करता है और प्रशासनिक सुविधाओं को चार सूचियों के अनुसार राज्य और केंद्र के मध्य जवाबदेही और क्रियान्वयन के लिए आवंटित करता है।

तर्कों की तथ्य परक सुविधाओं से अलग संवैधानिक दर्शन के अनुसार जायज़ा लीजिए। राज्यों की नीति निर्देशक तत्व, नागरिकों के मौलिक अधिकार तथा मूल कर्त्तव्य हमारे संविधान का मुख्य और मौलिक आधार हैं। प्रत्येक राज्य का दायित्व है कि वह अपने नागरिकों के कल्याण के अनुसार योजनाओं को लागू करें।

जब आप ऐसा तर्क करते हैं, तो आप कितनी मासूमियत से उत्तर पूर्व के राज्यों की विशेष स्थिति के तर्क को नकारते हैं, यह आपको खुद मालूम नहीं चलता।

जम्मू कश्मीर, उत्तर पूर्व, झारखंड और उत्तराखंड जैसे विशेष सामाजिक और भौगोलिक राज्यों पर कई कानून केंद्र यह कहकर लागू करती है कि इनकी रणनीतिक भूगोलीय आवश्यकता है। वहीं, कई कानून इसलिए लागू नहीं कर सकती क्योंकि इनकी सांस्कृतिक सत्ता का सवाल है।

केंद्र सरकार के अस्पतालों में संपूर्ण भारतवासियों का हक है

एम्स, दिल्ली। फोटो साभार- सोशल मीडिया

यह ठीक वैसे ही है जैसे प्रधानमंत्री पूरे देश की संघ सूची और अवशिष्ट शक्तियों की सूची के कार्य के प्रति पूरे देश के प्रति जवाबदेही से घिरे हैं। गुजरात, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की जनता जिन्होंने मुख्यमंत्री को उस विशेष इलाके के प्रति जवाबदेह बनाया है।

साथ ही सुविधाओं का विस्तार या प्रबंधन करने के लिए चुना है। वह केवल उनके लिए योजनाओं को क्रियान्वित करने के हकदार हैं।

दिल्ली के संसद भवन का दायरा लोकसभा के अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में है। दिल्ली की जनता जिन्होंने दिल्ली में सरकार को चुना है, वह अपनी सुविधाओं के लिए यदि उत्तर प्रदेश सरकार से उम्मीद रखती है, तो यह जनता की कितनी मासूमियत है, इसका फैसला आप खुद कर सकते हैं।

यदि नमूनियत और बेहुदगी से अब भी मन नहीं भरा है और हर समय कुतर्क ही बोना है, तो कोई बात नहीं मगर कुछ सवाल हैं, जो पूछियेगा खुद से। केरल में मतदान करते समय केरल वासी दिल्ली की स्वास्थ्य सुविधाओं को ध्यान में रखकर अपना मुख्यमंत्री चुनता हैं क्या? उत्तर प्रदेश का किसान महाराष्ट्र के लोगों को ध्यान में रखकर अपनी किसानी करता है क्या?

देश में बीमारू और संपन्न राज्यों के बीच बड़ी खाई है

जिस देश में सहज आत्म मंथन की चेतना ना तो जगाई जाती है और ना ही उस दिशा में बात की जाती है, वहां के हालात कैसे होंगे? क्या लोग सही जगह सही सवाल करते हैं?

सत्ता के विकेंद्रीकरण का अर्थ इसी में था कि सुविधाओं का विकेंद्रीकरण हो। बिहार का नागरिक मजबूरी में नहीं, बल्कि शौक से बिहार से दिल्ली आए। इस विचार के साथ गाँधी के पंचायत शासन की अवस्था का विचार आया था।

सन् 2014 के चुनावों में एम्स और स्मार्ट सिटी की खूब घोषमा हुई थी। मीडिया ने भी बढ़ चढ़कर इन सबको दोहराया था। इन जुमलों को जिस तरह से दोहराया गया था, यदि दस प्रतिशत भी ज़मीनी स्तर पर काम किया गया होता, तो दिल्ली सरकार के इस फैसले से कुछ अंतर नहीं पड़ता।

बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्यप्रदेश, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के नागरिकों को अपने यहां की सरकार से पूछना चाहिए कि निकम्मेपन की प्रतियोगिता में ये राज्य सरकारें अव्वल क्यों हैं?

नेताओं से पूछना चाहिए कि क्या कारण है, जो लोगों को अपने गाँव में ही सभी स्वास्थ्य सुविधायएं नहीं मिल सकतीं? इतनी योजनाओं की घोषणा की जाती है, पैसे खर्च किए जाते हैं फिर भी सुविधाएं कहां चली जाती हैं?

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