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“चमन बहार देखकर मुझे भी बचपन में एक बेनाम लव लेटर की याद आ गई”

झारखंड के लातेहार ज़िले के एक ब्लॉक में मेरे पापा पोस्टेड थे। उनके हॉस्पिटल के बगल में हम किराये के घर में रहा करते थे। उस घर में हमारे जैसे कई किरायेदार थे। जिनके दो कमरों के घर थे, वे ऊपर वाले फ्लोर पर रहते थे और एक कमरे वाले ग्राउंड फ्लोर पर।

हम ऊपर वाले फ्लोर पर रहते थे, क्योंकि हमारा घर रोड के किनारे पड़ता था तो पापा हमें नीचे जाकर खेलने से मना करते थे। हम अपने छत पर ही खेलकूद किया करते थे। उस जगह की भाषा भी थोड़ी अजीब सी थी इसलिए पापा को डर होता था कि यहां के बच्चों के साथ खेलते-खेलते हम उनकी तरह भाषा ना बोलने लगें। मेरे पापा वहां 2000 से रहा करते थे।

दो साल बाद मम्मी भी दोनों बहनों के साथ वहां रहने लगी और मैंने वहां 2005 में रहना शुरू किया। हम लोकल स्कूल में भी नहीं पढ़ते थे। रोज़ लगभग 30 किलोमीटर दूर स्कूल जाते थे। इसलिए वहां आसपास के बच्चों से हमारी बातचीत काफी कम थी या यूं कहें कि ना के बराबर थी। 

एक लड़की का लड़कों से खुलकर बात करना

2005 में वहां रहने आए मकान मालिक के बेटे छत पर अपने मुहल्ले वाले दोस्तों के साथ खेलने आने लगे। वो मेरी ही उम्र के थे। उनसे मेरी थोड़ी दोस्ती हुई तो मुझे बहुत सी बातें उनकी अपने पुराने दोस्तों जैसी नहीं लगीं।

एक लड़की का लड़कों से खुलकर बात करना इस समाज के लिए काफी अलग होता है। भले ही वह लड़की दस साल की ही क्यों ना हो। 

मैंने पापा से उनकी शिकायत कर दी और उसके बाद से उनमें से कोई लड़का छत पर नहीं आता था मगर वहां डांट मुझे भी ज़्यादा पड़ी। क्या ज़रूरत थी उनके साथ बात करने की वगैरह-वगैरह।

जब भी हम छत पर खेलते तो बिल्डिंग के आसपास कॉमेंट करना, ज़ोर-ज़ोर से गाना चिल्लाना शुरू रहता था। 2008 में पापा का ट्रांसफर हो गया और पूरे बिल्डिंग में सबको खबर थी कि हमारे फाइनल रिज़ल्ट के बाद हम यह शहर छोड़कर चले जाएंगे। 

जब लव लेटर आया

एक दिन ऐसे ही शाम से थोड़ा पहले मैं अपनी बहन के साथ छत पर घूम रही थी। तभी कोयले में लिपटा हुआ एक पेपर हमारे छत पर आया। मेरी बहन ने उछलते हुए उसको जाकर उठाया और उस पर “I love You Puja” लिखा था। हम दोनों ने एक-दूसरे से कुछ नहीं कहा और कागज़ को फेंक दिया। मुझे पता था मेरी बहन के खुराफाती दिमाग में कई सवाल होंगे। 

सवाल तो मेरे दिमाग में भी बहुत थे। अगले दिन मैंने छत का कोना-कोना देखा और मुझे मिली वहां पर पड़ी हुई एक चिट्ठी जो कि कोयले में ही लिपटी थी। उस पर एक पूरा लव लेटर लिखा था, जो शायद किसी ऐसे ने लिखा था जिससे मैंने आज तक बात नहीं की। इतना पता था कि वह हमारी ही बिल्डिंग के नीचे फ्लोर पर रहता है। 

लेटर पढ़कर मुझे हंसी आई थी

मेरे पास इस वक्त कोई ऐसा दोस्त नहीं था जिससे मैं ये सारी बातें कर सकती थी। छोटी बहन उस वक्त यह सब समझने के लिए छोटी ही थी। मैंने किसी से कुछ नहीं कहा और वह चिट्ठी फेंक दी। मुझे आज भी नहीं पता वह चिट्ठी किसने लिखी थी मगर थोड़ा अंदाज़ा लगाया था एक लड़के पर। आपको यह कहानी क्यूट लग सकती है। उस लेटर को पढ़कर मुझे भी उस वक्त हंसी ही आई थी।

सोचने की बात यह है कि अगर वह चिट्ठी किसी और ने पढ़ी होती तो? क्या तब मैं आपसे इस तरह शायद ही शेयर कर पाती। वह बात मुझे याद नहीं रहती मगर कल रात जब मैंने “चमन बहार” नेटफ्लिक्स पर देखी तो वह घटना जैसे आंखों के सामने आ गई।

हर लड़की अपने जीवन में एक बार इस तरह की आशिकी का सामना करती ही है। चाहे पेरेन्ट्स ने कितनी भी सिक्योरिटी क्यों ना लगाई हो। मुझे लगता है कि ऐसी घटनाओं को लेकर घर में बात करने का एक खुला माहौल होना चाहिए, जहां पीछा करना, घूरना और कमेंट करने वाली बातों को हम घर पर बता सकें।

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