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महिलाओं को कब मिलेगा उनके श्रम का मान और सम्मान?

एक दोस्त ने सेक्स वर्कर्स को लेकर एक पोस्ट लिखी थी। इस पोस्ट में उसने ज़िक्र किया कि उनके उद्धार के नाम पर उन्हें इस काम से बाहर निकालने का फैसला लेने वाले हम कौन है? क्या समाज उन्हें इसके बाद अपनाएगा? उसी बात को थोड़ा आगे बढ़ा रही हूं।

महिलाओं के श्रम का मुल्यांकन आखिर कब होगा?

एक बात और भी है जिस पर विचार किया जाना चाहिए, वो है श्रम का मूल्यांकन। जब यही महिला आपके घर पर घरेलू-सहायिका का काम करती है, तब उसे पूरे महीने की कितनी पगार देते हो? और अक्सर घर का पुरुष पत्नी पर तंज भी कसता है कि पत्नी करती ही क्या है? सारा काम तो घरेलू-सहायिका ही करती है।

यह एक बात और दूसरी बात कि वह पत्नी को अहसास दिलाता रहता है कि इतना पैसा तो बाई को ही चला जाता है, क्योंकि समाज ने घर के काम करने का ज़िम्मा सिर्फ औरतों को दिया है। ऐसे में, अगर घर में कोई सहायिका आ रही है, तो इसे बड़े दिल वाले पुरुष द्वारा घर की स्त्री को एक अतिरिक्त सहूलियत दिया जाना समझा जाता है। इसमें उसका बड़प्पन समझा जाता है।

यही पुरुष महज कुछ देर के साथ के लिए उस सहायिका के पूरे महीने के वेतन के दुगने से भी अधिक सेक्स वर्कर को हंसी-खुशी दे आता है।  इस मुद्दे के अन्तर्सम्बन्धों को समझिए। समझिए कि रचनाकार कौन है और नियंत्रणकर्ता कौन है?

घर में काम करती हुई महिला

पूंजीवादी पितृसत्तातमक समाज महिलाओं को समझता है उपभोग की वस्तु

हमारा यह समाज जिसकी पूंजीवादी पितृसत्ता को मनोरंजन करने वाली स्त्रियां भी चाहिए, सेवा करने वाली स्त्रियां भी चाहिए, एकनिष्ठ भाव से घर के खूंटे से बंधी रहने वाली, पुत्र पैदा करने वाली स्त्रियां भी चाहिए। इसीलिए देवदासियां और नगरवधुएं तैयार की गईं लेकिन किसके काम का क्या मौद्रिक मोल होगा, क्या मान होगा और वह किस तरह के विलास को भोग सकेगी, यह सब पुरुष ने तय किया।

मेहनत करने वाली मज़दूर के काम का मूल्य, देह व्यापार की मज़दूर के काम से बहुत कम है और घर में काम करने वाली स्त्री, माँ, पत्नी, बहन के काम का तो कोई मौद्रिक मूल्य ही नहीं है। वे तो सालों से अनपेड वर्क कर ही रही हैं।

इसका मतलब यह समाज सबसे ज़्यादा मौद्रिक मूल्य देह व्यापार की मज़दूर को, उसके बाद परिवार के बाहर काम करने वाली मज़दूर को और पराए घर की आई रिश्तों के लेबल से सजी मज़दूर को शून्य मज़दूरी देता है। लेकिन जब हम इनके कामों को सम्मान यानी डिग्निटी ऑफ वर्क के तराजू में तौलें, तो सबसे ज़्यादा मान रिश्तों के लेबल में सजी शून्य मज़दूरी पाने वाले मज़दूर का है।

इसमें भी श्रेणियां हैं। सदा चुप रहने वाली, सबसे पहले उठने वाली, सबसे बाद में खाने वाली, पुत्र पैदा करने वाली आदि-आदि। उसके बाद आती है घर के बाहर की मज़दूर लेकिन सबसे ज़्यादा मौद्रिक मूल्य पाने वाली देह व्यापार की मज़दूर यहां सम्मान के मामले में शून्य पर है। इसी पितृसत्तात्मक समाज द्वारा गढ़ा गया उसका काम, सामाजिक नैतिकताओं के पायदान पर भी नहीं चढ़ पाता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

देह के व्यापार में आने से पहले सारे रास्तें हो चुके होते हैं बंद

मैंने सेक्स वर्कर्स के साथ काम किया है, उनकी रूह सुन्न कर देने वाली गाथाओं को सुना है। देह-व्यापार में अपना जिस्म बेचने वाली इन स्त्रियों में से ज़्यादातर ने अपना जिस्म तब बेचना शुरू किया जब उनके पास बेचने के लिए जिस्म के अलावा कुछ और नहीं था।

रूही (बदला हुआ नाम) के बच्चे के दिल में छेद था। जान बचने के लिए ऑपरेशन करवाना ज़रूरी था और ऑपरेशन करवाने के लिए पैसा ज़रूरी था। उनके मालिक पूरे महीने के कठिन श्रम के बदले उन्हें वो कीमत देने को तैयार नहीं थे जो उनके जिस्म के बदले देने को तैयार थे। उसे अपने बेटे की जान और अपने जिस्म में से किसी एक को चुनना था। ज़ाहिर है उसने बेटे की जान को चुना।

करुणा (बदला हुआ नाम) के शराबी पति पर ढ़ेर सारा कर्ज़ था, दो छोटे बच्चों के साथ गुज़ारा करना मुश्किल हो रहा था। इधर कर्ज़दार परेशान करते, तो पति दबाव बनाने लगा कि अगर कर्ज़दारों को ‘खुश कर दोगी’ तो कर्ज़ माफ हो जाएगा।

करुणा को यह मंज़ूर नहीं था, वह बच्चों का पेट भरने के लिए एक ब्यूटी-पार्लर की मालकिन के यहां काम करने लगी, उसे अपना दुखड़ा सुनाया तो उसने कहा, इस तरह झाड़ू-पोछे से कर्ज़ नहीं उतरने वाला कर्ज़दारों को मुफ्त में खुश करने से अच्छा अपनी मर्ज़ी से ‘इस काम’ में आ जाओ, कुछ ही दिनों में हालत सुधर जाएगी।

पति की रोज़ की मारपीट और कर्ज़दारों के रोज़ के अश्लील इशारों से तंग आकर उसने पार्लर की मालकिन के बताए रास्ते को ही चुन लिया।

समाज सेक्स वर्कर्स को नहीं देता है सम्मान

किसी भी कारण से देह व्यापार में आई स्त्री यह जानती है कि इस समाज में अब उसका कोई सम्मान नहीं है। उसकी वापसी का कोई रास्ता नहीं है, कहीं पर भी उसके लिए कोई स्वागत द्वारा नहीं है। ना ही उसके श्रम को वो कीमत अदा की जाएगी जिससे वो अपनी और परिवार की ज़रूरतें पूरी कर सके।

उनका एक तर्क यह भी है कि ज़्यादातर काम की जगहों पर, काम या नौकरी बनाए रखने, तरक्की पाने, बिना तनाव के काम करने के लिए वे और अन्य औरतें यौन-शोषण की शिकार होती हैं। इससे बेहतर घोषित रूप से यौन कर्म करना और उसकी वाजिब कीमत पाना होता है।

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