असम के तिनसुकिया में कई दिनों से लगातार गैस रिसाव हो रहा है। स्थिति पर अब तक काबू नहीं पाई जा सकी। 27 मई को ऑयल इंडिया लिमिटेड के इस प्लांट के कुएं से गैस लीक होना शुरू हुआ। इसी दिन एक बड़ा विस्फोट भी हुआ इसके बाद इसने विशाल रूप धारण कर लिया। आज पंद्रह दिन बीत चुके हैं लेकिन अब तक इस पर नियंत्रण पाने में कोई सफलता हाथ नहीं लगी।
गैस रिसाव से हज़ारों की संख्या में स्थानीय लोग विस्थापित हुए हैं। इन्हें राहत कैंपों में लाया गया है। कोरोना के खतरे के बीच इन परिवारों को इन कैम्पों का रुख करना पड़ रहा है। गैस रिसाव के कारण पर्यावरण पर भी बहुत गहरा असर पड़ा है।
लुप्त प्राय गंगा डॉल्फिन सहित कई अन्य जलीय जीव मृत पाए गए हैं। इसके अलावा मृत पक्षियों की तस्वीरें भी सामने आ रही है। इंसान के साथ वन्य जीवों दोनों पर भी इसका खतरा मंडरा रहा है। नदियों और तालाबों का पानी प्रदूषित हो गया है। इन सब के बीच स्थानीय लोगों का विरोध प्रदर्शन भी जारी है।
क्या हादसे से बचा जा सकता था ?
असम टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, ऑयल इंडिया लिमिटेड ने इस मामले की अनदेखी की जिससे इस हादसे से बचा जा सकता था।
कंपनी को पर्यावरण मंत्रालय के तहत इस परियोजना को हरी झंडी मिली थी।
इनवारमेंट क्लियरेंस रिपोर्ट के आठवें अनुच्छेद के मुताबिक, कंपनी को ब्लो आउट प्रीवेंशन (BOP) सिस्टम इनस्टॉल करने के लिए निर्देशित किया गया था, जिससे खुदाई के दौरान हादसों से बचा जा सकता है।
BOP क्या है?
ब्लोआउट वह स्थिति होती है जब तेल और गैस क्षेत्र में कुए के अंदर दबाव अधिक हो जाता है और उसमें अचानक ऐसे विस्फोट के साथ रिसाव होना शुरू हो जाता है। कुएं के अंदर दबाव बनाए रखने वाली प्रणाली के सही से काम ना करने को ब्लो आउट प्रीवेंशन कहते हैं। अब इस रिपोर्ट के मुताबिक, असम के तिनसुकिया स्थित कंपनी ने इनवायरमेंट क्लीयरेंस रिपोर्ट के इन सारे शर्तों को नहीं माना था।
वहीं मीडिया को दिए गए प्रेस रिलीज़ में कंपनी कह रही है कि बीओपी इंस्टॉल किया गया था। अब सवाल यही उठता है कि अगर इसे इंस्टॉल किया गया था तो ऐसी स्थिति बनी क्यों? लगे हाथों ऑयल इंडिया लिमिटेड को मीडिया को पूरे साक्ष्यों के साथ पूर्व में ही इंस्टाल बीओपी सिस्टम के बारे जानकारी देना चाहिए, जिससे संदेश की स्थिति स्पष्ट हो।
आगे इसी रिपोर्ट के अनुसार, ऑयल इंडिया लिमिटेड ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (MoEF) के इनवायरमेंट क्लीयरेंस की अवहेलना करते हुए, Prevention Under Water ( Prevention and Control of Pollution) act, 1974; the air (Prevention and Control of Pollution) Act, 1981; the (Environment Protection) Act, 1986; the Hazardous Waste Management Rules,2016, the Public Liability act,1991 जैसै कानूनों का उललघंन की बात करता है।
हफ्तों का समय लग सकता है स्थिति को नियंत्रित करने में
घटना के बाद सरकार ने सिंगापुर की एक कंपनी अलर्ट डिजास्टर कंट्रोल के एक्सपर्ट्स को भारत बुलाया है। इनके मुताबिक, रिसाव पर काबू पाने में करीब चार हफ्ते लग सकते हैं।
इससे पहले भी साल 2005 में डिब्रूगढ़ में भी ठीक इसी तरह की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। जिसे सामान्य होने में तकरीब 45 दिन लग गए थे।