Site icon Youth Ki Awaaz

केरल के स्वास्थ्य मॉडल की क्यों हो रही है देशभर में तारीफ?

भारत में कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए 22 मार्च से 25 मार्च तक कुछ राज्यों के कोरोना प्रभावित ज़िलो को सील कर दिया गया। 25 मार्च से अभी तक पूरे देश में आंशिक बंदी है।

अगर सभी राज्यों में कोरोना संक्रमण को लेकर पूरा विश्लेषण किया जाए तो केरल में मृत्यु दर सबसे कम रही। जबकि शुरुआत में देखा जाए तो केरल में कोरोना संक्रमण के ज़्यादा मामले सामने आए।

किसी भी बीमारी से केरल मज़बूती से निपटता रहा है

अगर कोरोना को छोड़ भी दिया जाए तो भी केरल में बीमारी से ठीक होने की संभावना ज़्यादा होती है, क्योकि वहां की सरकार के केंद्र में शिक्षा और स्वास्थ्य रहा है जो भारत के अन्य राज्यों से बेहतर है।

जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों के केंद्र में पिछले लगभग 40 वर्षों से जाति-धर्म, हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद को ही प्राथमिकता मिली। अतः अन्य राज्यों में एक बार व्यक्ति किसी बीमारी की गिरफ्त में आने के बाद आसानी‌ से सेहतमंद नही हो पाता है।

नीति आयोग के स्वास्थ्य सूचकांक में क्या है?

केरल में स्वास्थ्य सुविधा पहले से ही भारत में प्रथम स्थान पर है। भारत के अलग-अलग राज्यों के हेल्थ केयर परफॉरमेंस को मापने के लिए नीति आयोग ने स्वास्थ्य सूचकांक  जारी किया है, जो स्वास्थ्य के कई अलग-2 संकेतक को मापता है।

नीति आयोग के 2019 के स्वास्थ्य सूचकांक के अनुसार, केरल का स्थान भारत में प्रथम है। ज़्यादातर भारतीय राज्य अपनी हेल्थ केयर को सुधारने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं खर्च करते हैं।

भारत ने अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1.29 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च किया है। जबकि केरल अपने सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत से ज़्यादा स्वास्थ्य पर खर्च किया है। ज़्यादातर विकसित देश अपनी सकल घरेलू उत्पाद का 4 से 9 प्रतिशत तक स्वास्थ्य पर खर्च करते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का क्या कहना है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, स्वास्थ्य व्यवस्था को सुचारू ढंग से चलाने के लिए 1000 नागरिकों पर  एक डॉक्टर होना चाहिए लेकिन भारत में 1445 नागरिकों पर एक डॉक्टर है। अगर नागरिकों और डॉक्टरों का यह अनुपात केरल में देखा जाए तो 535 नागरिकों पर एक डॉक्टर है।

केरल में कोरोना संक्रमण के कारण मृत्यु दर इसलिए कम रही क्योंकि जब विदेश से लोग केरल में आ रहे थे तो केरल ने सभी लोगों की पहले ही स्क्रीनिंग किया। मार्च से ही केरल ने बाहर से आने वाले लोगों की टेस्टिंग करके आइसोलेट किया।

वैसे आइसोलेट तो कई और राज्यों ने भी किया लेकिन केरल ने ज़्यादा सक्रियता दिखाई। एक एक्टिव केस के आने पर 100 से ज़्यादा लोगों को आइसोलेट किया गया। केरल में बड़े स्तर पर पंचायत को भी सहयोग करने के लिए शामिल किया गया।

आरोग्य सेतु ऐप के मायने

भारत में कोरोना वायरस से बचाव के लिए आरोग्य सेतु ऐप लाई गई। अगर कोई ट्रेन से यात्रा करेगा तो उसके लिए आरोग्य सेतु ऐप इन्स्टॉल करना अनिवार्य किया गया। अगर इतना दबाव बनाया जाएगा तो लोग खुद ही नहीं बताएंगे कि वे इन्फेक्टेड हैं।

यही कारण है कि लोग अपने आपको इन्फेक्टेड बताने में डर रहे हैं। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लोगों के अंदर से डर को निकालना होगा और भेदभाव समाप्त करना होगा। हाल ही में भारत के शहरों से जो मज़दूर गाँवों की तरफ आ रहे हैं. उनके साथ बड़े पैमाने पर भेदभाव किया जा रहा है।

उन सबको गाँव से बाहर भगाया जा रहा है। जबकि केरल में जो लोग बाहर से आए और आइसोलेट किए गए उनके साथ वहां के लोगों ने पूरा सहयोग किया। सहयोग के नाम पर लोगों द्वारा खाना पहुंचाना, दवा देना जारी रहा। यहां तक कि अकेला महसूस करने पर कॉल सेंटर से कॉल करके उनका ध्यान रखा जाना आदि शामिल‌ है केरल‌ में।

कमज़ोर पड़ता पब्लिक हेल्थ सेक्टर

वर्तमान समय में भारत में मौजूद प्राइवेट हेल्थ सेक्टर की तुलना में पब्लिक हेल्थ सेक्टर लगातार कमज़ोर पड़ता जा रहा है। जबकि प्राइवेट सेक्टर का मुख्य उद्देश्य कम लागत में ज़्यादा लाभ कमाना होता है। दूसरी तरफ पब्लिक सेक्टर का मुख्य उद्देश्य जनता को अच्छी सेवा उपलब्ध कराना है।

अगर कोरोना संक्रमण को देखा जाए तो भी भारत में प्राइवेट सिस्टम की तुलना में पब्लिक हेल्थ सिस्टम की भूमिका ज़्यादा है। अतः आने वाले समय में भारत को एक बेहतर हेल्थ सिस्टम के लिए प्राइवेट सेक्टर की निर्भरता को कम करना ही होगा।

अगर लोगो में आपसी सहयोग की भावना होगी तो कोई भी लड़ाई जीतना असंभव नहीं होगा जिसके लिए लोगों को जागरूक करना होगा और जागरूकता शिक्षा से आएगी।


संदर्भ- एनबीटी, अमर उजाला

Exit mobile version