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#My Period Story: माहवारी से अब क्यों हो शर्मशार

माहवारी जागरूकता कार्यक्रम

माहवारी जागरूकता कार्यक्रम

मैं उर्मिला ब्यावर शहर से 4 किलोमीटर दूर (मेडिया) पंचायत की रहने वाली हूँ|मै माहवारी से सम्बन्धित अपने जीवन का अनुभव आपके साथ साँझा करना चाहती हूँ जब मै पहली बार माहवारी पीरियड पे हुई तब अचानक डर गई थी कपडे खराब हो गए रोते हुए मम्मी के पास गई कि ये केसे हुआ तब मम्मी ने कहा कुछ नही ये अब हर महीने आएगा ये गन्दा खून है,सुबह उठते ही नहाना, इसके बारे में जोर से बात नही करना, पुरुषों को नही बताना, और अब 4 दिन स्कूल भी नही जाना, चोराहे, मंदिर आदि जगह पर भी नही जाना किचन में नही जाना, खाने पिने कि चीजो को नही छूना,आचार को हाथ नही लगाना, खराब हो जाएगा और भगवान पाप देंगे| मुझे इसके बारे में बताया कि इस टाइम पे सूती कपड़े का उपयोग करना और उस कपडे को छुपा के सुखाना क्यूंकि अगर पापा ने देख लिया तो उनकी नजर कमजोर हो जाएगी| उस समय मुझे एसा महसूस हुआ जेसे कोई आफत आ गई हो इतनी रोक टोक पर जो मम्मी ने बताया उसका पालन भी करना था नही तो भगवान बुरा मान जाते और माहवारी के टाइम स्कूल कि भी 4-5 दिन कि छुट्टियाँ हो जाती क्यूंकि सेनेटरी के बारे में भी जानकारी नही थी न ही रूपए थे बहुत बुरा लगता मम्मी को कहती मम्मी ये माहवारी को बंद करवा देते हे डॉक्टर के पास जाके तब मम्मी ने बताया कि नही इसे बंद करवाने से मर जाते है और पास में ब्राह्मण परिवार और रहता था उसके घर में तो माहवारी के टाइम बिस्तर ,खाने के बर्तन सब कुछ अलग होता था तो मम्मी वहा से और सीखकर आ जाती और हमारे घर पर भी वही नियम चालू कर देती सचमुच ऐसा लगता जेसे में इस घर में रहू ही नही पर धीरे-धीरे आदत हो गई और मैं खुद इन सब नियमो को मानने लग गई अपनी पढाई पूरी कि स्कूल में साइंस कि टीचर ने माहवारी के बारे में बात कि उन्होंने भी ज्यादा कुछ समझाया नही अपनी पढाई पूरी करके जॉब करने लगी और माहवारी से सम्बंधित सभी धारणाओ को घर में अपनी छोटी बहिनों पर थोपने लगी क्यूंकि जो शुरू से सिखाया गया वही में छोटी बहिनों के साथ रोक टोक करती थी परन्तु 2016 में मैंने रूम टू रीड संस्था बालिका शिक्षा कार्यक्रम को सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जॉइन किया और इसके इस संस्था के द्वारा दी गए प्रशिक्षण ने मेरी माहवारी के प्रति सोच को पूर्णतया बदल दिया इस संस्था में आकर मैंने माहवारी के बारे में खुलके बात करना सिखा पहले मैं माहवारी कि वजह से भी एक लडकी होना अपवित्र मानती थी पर अब मुझे अपने आप पर गर्व है कि में एक लड़की हूँ और माहवारी कोई गन्दा खून नही बल्कि ये एक सामान्य प्रक्रिया है इसका आना बहुत जरुरी है और अब मैं इसके बारे में अपने कार्यस्थल पर बालिकाओं को खुलकर जानकारी देती हूँ और माहवारी से सम्बंधित जो भी धारणाए है उनको मैंने तोडा है पहले में मंदिर नही जाती आचार नही छूती पर अब मंदिर भी जाती हूँ और खाने पिने कि सभी चीज़े छूती हूँ ये पहल मैंने अपने घर में अपने आप से कि है हालाँकि मम्मी को समझाना अभी भी मुश्किल होता है मेरे लिए पर मै इन धारणाओ को नही मानती और अब मैं माहवारी के समय असहज महसूस नही करती मैं जॉब भी करती हूँ इसके लिए कभी छुट्टी नही लेती और स्कूल में भी टीचर्स से इसके बारे में बात करती हूँ | और इसके बारे में नेट पे खुद सर्च करती हूँ कि इसके जो उत्पाद है जैसे सेनेटरी पेड,अन्य पेड, पीरियड कप आदि उसके बारे में जानकारी प्राप्त करके बालिकाओं को देती हूँ साथ ही पीरियड के समय पोष्टिक आहार लेना और अपने सवास्थ्य का ध्यान भी रखती हूँ| अब मुझे माहवारी के बारे में बात करने पर शर्मशार नही होना पड़ता इसके लिए मैं रूम टू रीड को धन्यवाद देती हूँ|

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