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क्या कर्ज़माफी से किसानों की समस्याएं दूर हो जाएंगी?

ज़्यादातर राज्यों में गेहूं और गन्ना किसानों को उचित मूल्य का भरोसा तो दिया जाता है मगर फसल को सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा तक नहीं मिलता है। 

गन्ना किसानों को भुगतान के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ता है। जबकि अन्य फसलों की कीमत बाज़ार की ताक़तों के अधीन होती हैं।

ये वही किसान हैं जो साल 2016 में नोटबंदी के करण सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए थे, क्योंकि बाज़ार में कीमतें गिर गईं थीं।

किसानों को कर्ज़ से मुक्ति कैसे मिल सकती है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

बिहार, झारखंड, असम जैसे कई राज्यों में यहां तक कि गेहूं और अनाज उत्पादक किसानों को भी न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त नहीं हुआ, क्योंकि खरीदार कमज़ोर थे। लिहाज़ा ऐसे किसान कर्ज़ माफी के लिए सबसे उपयुक्त हैं।

गन्ना सबसे फायदेमंद फसल है और 2015-16 में महाराष्ट्र के गन्ना किसानों को (राज्य से दो-तिहाई सिंचाई की सुविधा लेने वाले) और उत्तर प्रदेश के किसानों को कुल लागत पर क्रमश: 16% और 64% का फ़ायदा हुआ।

लिहाजा वह कर्ज़ माफी के दायरे में नहीं आते। चूंकि किसी राज्य में फसल के अनुसार कर्ज़ माफ़ी का आंकड़ा जारी नहीं किया गया है‌ तो कई तरह की फसल उगाने वाले किसानों को मिलने वाली माफी के बारे में भी जानकारी उपलब्ध नहीं है।

पंजाब और हरियाणा की सरकारें हर साल प्रभावी खरीद संचालित करती हैं

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपने 15 वर्षीय कार्यकाल में बीजेपी सरकार‌ ने गेहूं और अनाज उत्पादक किसानों के लिए प्रभावशाली खरीद व्यवस्था की थी, जिसकी तारीफ तटस्थ पर्यवेक्षकों ने भी की।

इन राज्यों में अनाज और गेहूं उगाने वाले किसानों को हर साल न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता है। लिहाज़ा वे भी कर्ज़ माफी के दायरे में नहीं आते।

कीमतों में मंदी से वे किसान प्रभावित हैं, जो मोटे अनाज, दाल और तिलहन की खेती करते हैं। ऐसे किसान कर्ज़ माफी के सबसे योग्य दावेदार हैं।

नोटबंदी के बाद से सब्जियां और फल उगाने वाले किसानों को कीमतों में गिरावट का भारी नुकसान झेलना पड़ा है लेकिन शायद उनके सिर पर कर्ज़ का भार ना हो, क्योंकि आमतौर पर वे बैंकों से कर्ज़ नहीं लेते हैं।

भारतीय कृषि की समस्या सिर्फ कर्ज़माफी से ही दूर नहीं होने वाली

नाबार्ड की अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण रिपोर्ट, 2018 भी इस बात की पुष्टि करती है कि छोटी ज़मीन वाले किसान गैर-संस्थागत स्रोतों से अधिक कर्ज़ लेते हैं। जबकि बड़े किसान संस्थागत स्रोतों से अधिक कर्ज़ लेने में सक्षम होते हैं।

बैंक और सरकारें फसलों के आधार पर कर्ज़ का ब्योरा जारी नहीं करती हैं। ऐसे में हम यह नहीं जानते कि हाल के सालों में कर्ज़ माफी का अधिकतम फायदा किसे मिला है?

अगर राज्य विस्तृत आंकड़े जारी करें तो शोधकर्ताओं के लिए विश्लेषण करना और किसानों की समस्याओं का हल खोजने में कर्ज़ माफी के प्रभाव के बारे में उपयुक्त सबक सीखना संभव हो सकता है।

फसलों के लिए विभिन्न जलवायु के मुताबिक समाधान अलग हो सकते हैं। कृषि कर्ज़ माफी की अंधाधुंध घोषणा के बजाय राजनीतिक दल यह वादा करें कि वे भारत के अधिकांश हिस्सों पर असर डालने वाले पानी की कमी की समस्या का हल करेंगे, तो यह ज़्यादा फायदेमंद होगा।

संदर्भ- बीबीसी

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