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“युवराज सिंह, भंगी कहकर हंसना, मज़ाक नहीं भेदभाव से भरी जातिगत सोच है”

yuvraj singh

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हाल ही में सोशल मीडिया पर टीम इंडिया के पूर्व हरफनमौला क्रिटेकर युवराज सिंह को लेकर #युवराजसिंहमाफीमांगो ट्रेंड कर रहा है। गौरतलब है कि यह मुद्दा उनकी जाति सूचक टिप्पणी को लेकर काफी गरमा गया है।

इंस्टा पर टीम इंडिया के सलामी बल्लेबाज़ रोहित शर्मा के साथ लाइव चैट के दौरान युवराज ने गेंदबाज़ युजवेंद्र चहल का मज़ाक उड़ाते हुए उनके लिए जाति सूचक शब्द का प्रयोग किया जिसके बाद समाज़ विशेष उनसे नाराज़ हो गया।

यह महज़ टिप्पणी है या मानसिकता?

युवराज सिंह। फोटो साभार- सोशल मीडिया

इंस्टाग्राम लाइव वीडियो में साफ नज़र आ रहा है कि रोहित शर्मा किसी वीडियो को टारगेट करते हुए कुलदीप नैयर और युजवेंद्र चहल के ऑनलाइन आकर डांस करने को लेकर कोई सहज बात या ठिठोली कर रहे हैं। तभी युवराज सिंह कहते हैं, “कोई काम नहीं क्या इन भंगियों को?”

इसके बाद ही इस चैट पर विवाद शुरू हो गया। दलित समाज का कहना है यह युजवेंद्र चहल ही नहीं, बल्कि सारे दलित समाज का अपमान करना है। युवराज को ऐसा कहने पर माफी मांगनी चाहिए।

यहां पर सवाल यह है कि इसे महज़ टिप्पणी मानकर चला जाए या फिर एक मानसिकता? उस लाइव चैट के वीडियो में साफ नज़र आ रहा है कि युवराज सिंह ने बात बहुत सहज ढंग से कही है या शायद वो इतनी ही सहजता से वंचित तबकों को ऐसा कहते होंगे।

भंगी और चमार जैसे शब्दों को हमने नॉर्मलाइज़ कर दिया है!

वो तबका, जो पहले ही पिछड़ा है उसे किसी गाली या मज़ाक की तरह उपयोग करना सही है? यहां मैं किसी दलित कानून या दलितों के हक का विश्लेषण नहीं कर रही हूं, वैसे भी वो किसी कानून विशेषज्ञ का अधिकार क्षेत्र है।

लेकिन मामले में सवाल तो उठता है। हम सबको एक बार खुद से प्रश्न ज़रूर कर लेना चाहिए। हम में से ऐसे कितने लोग हैं जो किसी जाति विशेष को सबसे निचले दर्जे़ की उपमा देते हैं या कई दफा तो गाली भी दे देते हैं।

चाय की दुकानों से लेकर लाइव चैट तक इन्हें गाली की तरह ही उपयोग किया जाता रहा है। बहुत सहज ही आप कुछ खरीदते वक्त खरीददार या दुकानदार को यह कहते सुनते होंगे कि यह कितना चमार टाइप कलर है।

दुकानों में मैंने देखा है जातिगत भेदभाव

मेरा भी अनुभव रहा है जब दुकानदार आपको अप्रत्यक्ष रूप से जता देता है कि यह डिज़ाइन आपके लिए नहीं, बल्कि किसी जाति विशेष के लिए बना है! वहीं, किसी की खराब आदतों को लेकर कोई किसी को कह रहा होता है, “कितने भंगी हो तुम।”

ये कितनी कुत्सित विचारधारा है, जो किसी जाति, समूह विशेष को इस तरह से प्रमाणित करता है। रंग और रूप तो किसी का अपना स्वभाव होता है लेकिन हमारी समझदार बुद्धि रंग, रूप सबको किसी समुदाय विशेष में बांटकर उसे निचले पायदान पर रख सकती है।

क्या होता है एक चमार या भंगी होना?

प्रतीकात्मक तस्वीर।

मित्र, सहकर्मी जो हर तरह से एक-दूसरे के बराबर होते हैं लेकिन यदि वे दलित हैं, तो उन्हें भी हंसी-मज़ाक में यह जता दिया जाता है वे हमसे निचले दर्ज़े के हैं और कहीं ना कहीं यह धारणा उन्हें पकड़ भी लेती है।

लेकिन क्या आप जानते हैं चमार होना क्या होता है? नहीं, आप नहीं जानते! तभी आप सहजता से कह पाते हैं, एक शख्स जो भरी दोपहरी सिर्फ इसलिए बैठा है ताकि आपको धूप में नंगे पैर ना चलना पड़े और भंगी की श्रेणी में किसी को भी रखना कठिन नहीं, बल्कि असम्भव है।

जिस गंदगी को आप खुद फैलाकर भी नहीं देख पाते हैं, आपके लिए वे उस गंदगी में सहजता से उतरते चले जाते हैं और आप उन्हें ही गाली देकर किसी निचले दर्जे़ का सामान समझ बैठते हैं।

भारत ने जाति प्रणाली को जितना कसकर पकड़ा है, उतना शायद किसी और ने नहीं! हमारी पीढ़ियों ने इस धारणा को बहुत मज़बूती से पकड़ रखा है कि क्या श्रेष्ठ है और क्या निचला। जबकि यह वो धारणा है जिसे हमें अब तक पूरी तरह से तोड़ लेना चाहिए था।

दलितों के हित के लिए कितने भी कानून बना लिए गए हों लेकिन उन्हें हर कदम पर भेदभाव उठाना ही पड़ता है। युवराज़ सिंह इस बहस पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है लेकिन एक माफी मांग लेने से मानसिकता नहीं बदला करती है।

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