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“मैं किस के हाथ पे अपना लहू तलाश करूँ तमाम शहर ने पहने हुए हैं दस्ताने”

माँ
इस सूने रास्ते पे, मैं
एक अरसे से चल रही हूं अकेले

समय बीत गया पर…
मैं आज भी वहीं हूं माँ
मैं खो गयी हूं…

मुझे ले चलो ना दूर बहुत दूर
बहोत अनजान सी डगर है…

यह चंद लाइने मणिमंजरी राय द्वारा लिखित कविता ‘मां’ से ली गई है। मणिमंजरी राय सिर्फ़ कोर्स की किताबें पढ़ने वालों में से नहीं थी, वह कविता लिखतीं थीं, हिन्दी -इंग्लिश उपन्यास पढ़ती थीं और ख़्वाबमंजरी.ब्लॉगस्पॉट (http://khwabmanjari.blogspot.com) पर अपने ख्वाबों और जज़्बातों को उकेरा करती थीं।

लेकिन क्या है कि बिहार-यूपी के बच्चों में रचनात्मकता कितनी भी हो वह पढ़ाई का स्थान नहीं ले पाती है, पढ़ाई पहली प्राथमिकता होती है बाक़ी चीज़ उसके बाद आती है। गाज़ीपुर की रहने वाली मणिमंजरीराय ने भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी बिल्कुल वैसे ही की जैसे दिल्ली, पटना, इलाहाबाद, बनारस, में पच्चीस गज के कमरे में रहने वाले अभ्यर्थी करते हैं। जो भी अभ्यर्थी कमजोर आर्थिक स्थिति वाली पृष्ठभूमि से आते हैं उनके समक्ष दो तरह की जद्दोजहद होती पहली है, व्यवस्था में आने से पहले की जद्दोजहद -जब वह पच्चीस गज के कमरे में रहकर अपने  खाने -पीने ,पहनने -ओढ़ने, शौक -श्रृंगार, होली -दिवाली सबसे मन मारकर पढ़ाई करते हैं । दूसरी जद्दोजहद शुरू होती है व्यवस्था में आने के बाद।

यूपी पीसीएस परीक्षा पास कर मणिमंजरी राय अधिशासी अधिकारी के तौर करीब दो साल पहले बलिया में अपनी नौकरी शुरू करती हैं और यहां से शुरू होती है व्यवस्था में आने के बाद की जद्दोजहद। एक भ्रष्ट व्यवस्था के समक्ष अपने इमान- उसूल को बनाए रखने की जद्दोजहद। मणिमंजरी के भाई विजयानंद राय अपने तहरीर में कहा है कि बिना टेंडर कराए एक ही ठेकेदार को 18 कार्य दिए गए मेरी बहन पर लगातार दवाब बनाया। https://www.amarujala.com/photo-gallery/uttar-pradesh/varanasi/ballia-pcs-officer-in-suicide-case-brother-gave-tahrir-to-police-station-against-five-people-including-bjp-leader-in-ghazipur

सारे नियमों को धता बताकर ठेका उसे मिलता है जो अधिकारी के करीब हो फिर सब मिलकर बंदरबांट करते हैं। यह लॉंबी, पक्षपात (favouritism) सिर्फ़ बॉलीवु़ड में ही नहीं है। एक ही ठेकेदार को 18 ठेके क्यूं दिए गए? अधिकारी पर दबाव क्यों बनाया जा रहा था? कथित सुसाइड नोट में लिखा गया है कि मुझे रणनीति के तहत फंसाया गया तो सवाल रणनीति बनाने वालों से है?सारे आवंटित टेंडर की जांच हो।क्या हम इस  व्यवस्था से उम्मीद कर सकते हैं कि यह मणिमंजरी के साथ न्याय करेगी जिसने उनकी जान ली है?क्या यह सिस्टम हमारे सवालों का जवाब  देगा? 

सीबीआई जांच की मांग की जा रही लेकिन सुप्रीम कोर्ट की उक्ति है “सीबीआई पिंजरे में बंद वह तोता बन गई है जो अपने मालिक की भाषा बोलती है।” ट्रांसपेंरेंसी इंटरनेशनल ग्लोबल करप्शन इंडेक्स के मुताबिक 180 देशों की सूची में भारत की रैंकिग 80 https://www.transparency.org/en/countries/india# है।क्या इस सिस्टम से हम निषपक्ष जांच की उम्मीद कर सकते हैं।?

मुस्तफ़ा जै़दी लिखते हैं

“मैं किस के हाथ पे अपना लहू तलाश करूँ

तमाम शहर ने पहने हुए हैं दस्ताने”

अधिकारी के बच्चे अधिकारी बनते हैं तो उनकी परेशानी तुल्लनात्मक तौर पर कम होती है लेकिन जिनकी शुरूआत शून्य से होती है उनका सफ़र अंगार पर चलने जैसा होता है। तिसपर अगर अधिकारी महिला हो तो उसे सिर्फ़ भ्रष्टाचार, लॉबी, पक्षपात से ही नहीं लड़ना होता उसकी लड़ाई तो पितृसतात्मक समाज से भी हो रही होती है।

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