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जब सत्यार्थी जी ने शादी समारोह से हटवाए बाल मजदूर

Photo Credits/Arvind kumar/KSCF

टाइटल

बात 2008  की है जब मैं राजस्थान के जयपुर जिले की विराट नगर तहसील के अंतर्गत स्थित बाल आश्रम में कार्यरत था। गौरतलब है कि बाल आश्रम मुक्त बाल बंधुआ मज़दूरों का दूसरा घर है अर्थात वहां पर रहकर वे बच्चे पढ़ाई लिखाई तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं,

जो पहले कभी बाल मज़दूर रहे थे। बाल आश्रम को नोबेल शांति पुरस्कार विजेता व जाने माने बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्यार्थी जी की धर्म पत्नी श्रीमती सुमेधा कैलाश संचालित करतीं हैं।

सत्यार्थी जी का सपना हर गांव/शहर बाल मज़दूरी से मुक्त हो

बाल आश्रम में जो बच्चे रहते हैं यद्यपि ज़्यादातर बच्चों के मां-बाप हैं लेकिन वे सभी गरीब मज़दूर हैं। सुमेधा जी ही एक मां की तरह इन सभी बच्चों के खान पान,कपड़े-लत्ते आदि का ध्यान रखतीं हैं। जब कोई बच्चा बीमार हो जाता है तब वह बहुत परेशान हो जाती हैं। जब तक उस बच्चे की कुशलता का समाचार नहीं मिल जाता है तब तक उनको चैन नहीं मिलता है।

 

PHOTO CREDITS/KSCF

बच्चों पर किताबें, पेंसिल व नोटबुक हैं या नहीं ये सब पता करना उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। वे रोज़ाना ही परिवार की तरफ उनका हाल-चाल पूछती रहतीं हैं। यदि वे किसी वज़ह से आश्रम से दूर भी हैं तब भी मोबाइल फोन से अपने बच्चों की तरह ही  वे उनसे बात करतीं हैं। करें भी क्यों ना? ये सभी बच्चे उन्हीं के तो बच्चे हैं।

बाल आश्रम के सौजन्य से ही आसपास के सैकड़ों गांवों में बाल मित्र ग्राम परियोजना संचालित की जाती है, जिसका मकसद ग्रामीण बच्चों को बाल मज़दूर बनने से रोककर शिक्षा की तरफ अग्रसर करना है।

कैलाश सत्यार्थी जी का सपना है कि हर बच्चा पढ़ लिखकर एक बेहतर नागरिक बने तथा अपना जीवन यापन अच्छी तरह से करे।

सत्यार्थी जी प्रत्येक गांव/शहर से बाल मज़दूरी समाप्त करना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि  हर गांव/शहर से बाल मज़दूरी खत्म हो तथा हर बच्चा स्कूल जाए और उसमें नेतृत्व का गुण विकसित हो। उपरोक्त को पूरा करने के लिए वर्षों पहले सत्यार्थी जी के मन में एक सोच उपजी थी जिसका नाम है – बाल मित्र गांव या बाल मित्र वार्ड

ऐसा गांव या वार्ड जहां हर बच्चा स्कूल जाता हो। वहां पर कोई बाल मज़दूर ना हो। गांव या वार्ड में चुनी हुई बाल पंचायत हो। बाल पंचायत को ग्राम पंचायत या शहरी निकाय से मान्यता मिली हुई हो। ग्राम पंचायत या शहरी निकाय बाल पंचायत के प्रस्तावों पर अमल करती हो आदि। चलो अब आगे बढ़ते हैं-

 

जब सत्यार्थी जी मुझे शादी समारोह में ले गए

मैं बाल आश्रम में रहकर बाल मित्र ग्रामों का पर्यवेक्षण किया करता था। सत्यार्थी जी कि एक चिर परिचित आदत है कि जब उनको ज़रा भी अवकाश मिलता है तब वे उस समय को बच्चों के बीच रहकर बिताना चाहते हैं

इसलिए अपनी आदत के अनुसार सत्यार्थी जी अक्सर बाल आश्रम आते रहते थे तथा कई-कई दिन बच्चों के बीच में रहकर, उनके साथ खेलकूद, मॉर्निंग व इवनिंग वाक, गाना-बजाना, नज़दीक के दर्शनीय स्थानों पर भ्रमण करना तथा खाने के व्यंजन बनाना आदि गतिविधियां करते रहते थे।

बाल आश्रम में रहने वाले सत्यार्थी परिवार के सभी सदस्यों को खूब आनंद आता था। मैं अक्सर शायरी सुनाता था। मेरी इतिहास में गहरी रुचि थी इसलिए मैं इतिहास के कई प्रेरक प्रसंग भी सुनाया करता था। सत्यार्थी जी मुझ से बहुत स्नेह करते थे।

भाई साहब कई बार मुझे अपने साथ अनेक समारोहों में भी ले जाते थे। स्मरण रहे कि आश्रम के सभी लोग सत्यार्थी जी को प्यार से भाई साहब कह कर पुकारते हैं।

 

PHOTO CREDITS/KSCF

 

अब मैं मूल घटना पर आता हूं, जिसको मैं आपके साथ साझा करना चाहता हूं। एक दिन की बात है कि जयपुर में सत्यार्थी जी के किसी रिश्तेदार के यहां शादी समारोह था। उस समय सत्यार्थी जी बाल आश्रम में ही प्रवास कर रहे थे।

सुबह के समय उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया तथा कहा कि पंडित जी आज जयपुर में मेरे एक रिश्तेदार के यहां शादी है! आपको उसमें शामिल होने के लिए मेरे साथ चलना है।

यहां स्मरण रखने योग्य बात है कि सत्यार्थी जी अपने सहयोगियों को अक्सर पंडित जी कहकर ही बुलाते हैं । मेरी तो खुशी का ठिकाना ना रहा, बुलंदशहर की एक कहावत चरितार्थ हो गई –  चुपड़ी और दो दो, यानी भाई साहब का साथ और ऊपर से शादी की दावत।

मैं तो जल्दी से तैयार होकर सत्यार्थी जी की गाड़ी में बैठ गया। शादी समारोह में  साथ जाने वालों में उनकी धर्म पत्नि श्रीमती सुमेधा कैलाश व बाल आश्रम के प्रबंधक भी थे।

जब हम जयपुर शहर में स्थित समारोह स्थल पर पहुंचे तो उस समय दूल्हे की घुड़ चढ़ी हो रही थी। दोनों ही पक्षों कन्या व वर पक्ष ने सत्यार्थी जी का भव्य स्वागत किया। खैर भाई साहब व भाभी जी(सुमेधा जी) ने तो कुछ खास नहीं खाया लेकिन मैं और प्रबंधक जी गुलाब जामुनों पर टूट पड़े।

शादी समारोह में उपस्थित दोनों पक्षों के संबंधी भी सत्यार्थी जी से बहुत आत्मीयता से मिले।उस समय भी सत्यार्थी जी की पहचान अंतररा्ट्रीय स्तर पर एक बड़े बाल अधिकार कार्यकर्ता की थी। आज ही की तरह लोग उनकी बहुत इज्ज़त करते थे। उस समय भी सत्यार्थी जी का किसी शादी समारोह में जाना बड़ी बात थी।

जब सत्यार्थी जी ने चलती बारात को रुकवाया

जलपान ग्रहण करने के उपरांत सत्यार्थी जी कई रिश्तेदारों व प्रशंसकों के साथ दूल्हे की घुड़चढ़ी में शामिल होने चले गए। घुड़ चढ़ी के दौरान एक अप्रत्याशित घटना घटी जिसकी हमें ज़रा भी उम्मीद नहीं थी।

हुआ कुछ यूं कि सत्यार्थी जी ने देखा कि कुछ बच्चे बारात के घोड़े, जिस पर दूल्हा बैठा था के आसपास ट्यूब लाइट के बड़े-बड़े गमले अपने सरों पर उठाए हुए चल रहे हैं।

इन ट्यूब लाईटों से ही बारात जगमग हो रही थी। सत्यार्थी जी को तो जैसे काटे- खून नहीं। यह दृश्य देखकर वह हैरान हो गए।

उनको बहुत पीड़ा हुई! और दिल से बहुत दुखी हुए। उन्होंने यह आशा कभी नहीं की होगी कि उनके रिश्तेदार ही अपने समारोह में बच्चों से काम करवाएंगे और ना ही सत्यार्थी जी के रिश्तेदारों ने कभी उनसे ये उम्मीद की होगी कि सत्यार्थी जी अपने उसूलों की खातिर कुछ ऐसा कर देंगे कि चंद पलों के लिए बारात को खामोशी से रोकना पड़ेगा। 

PHOTO CREDITS/KSCF

उपरोक्त  ये सब देखकर सत्यार्थी जी ने मुझे आवाज़ लगाई और कहा कि पंडित जी देख नहीं रहे हो,”बच्चे रोशनी करने वाली लाइटें लेकर चल रहे हैं!” तुरंत बारात को रुकवाओ और पुलिस को इत्तिला करो।  यहां बच्चे काम कर रहे हैं। 

मैंने और प्रबन्धक जी ने आनन-फानन में तुरंत बारात रुकवाई। बारात को रुकता देख तमाम बाराती और घराती सकते में आ गए। सभी लोग मेरी और प्रबन्धक जी कि तरफ कौतूहल से देखने लगे कि ये दोनों ऐसा क्यों कर रहे हैं? कहीं ये दोनों पागल तो नहीं हो गए जो ऐसी  शुभ घड़ी पर उत्पात मचा रहे हैं।

जब ट्यूबलाइट उठाने वाले बच्चों को खाना खिलाया गया

बारात को रुकते ही बारात व घरात के कुछ ज़िम्मेदार लोग भी वहां पर इकट्ठे हो गए तथा वे सभी हमसे बारात रोकने का कारण पूछने लगे। प्रबन्धक जी ने सारा मामला उपस्थित लोगों को विस्तार से बताया । लगभग ३० मिनिट तक बारात में अफरा-तफरी रही और बारात बीच सड़क पर खड़ी रही। हो-हल्ला सुनकर वर-वधू  के माता -पिता भी वहां आ गए।

जब प्रकरण उनकी समझ में आया तो दोनों पक्षों ने सत्यार्थी जी व सुमेधा जी से क्षमा मांगी तथा फिर कभी बच्चों से काम ना कराने का वचन दिया। आनन-फानन में सभी बच्चों को बारात से तुरंत हटाया गया तथा उनकी जगह वयस्कों को लगाया गया।

सभी बच्चों को जो ट्यूब लाइट उठा रहे थे, बारातियों की तरह ट्रीट किया गया व उनको खाना भी खिलवाया गया। 

अनायास ही मुझे ये घटना याद आ गई। मैंने सोचा कि क्यों ना मैं यह घटना आपके साथ साझा करूं। मैं कोई ऐसा प्रेरक प्रसंग साझा करना चाहता था, जो किसी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हो और ना ही आमजन इस घटना से वाकिफ ही हों।

सत्यार्थी जी के जीवन में ऐसी अनेकों घटनाएं घटित हुई हैं, जिनमें से ज़्यादातर घटनाएं कहीं भी किसी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है,जो हमारे लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।

Cover Photo Credits/Arvind kumar/KSCF

(लेखक प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं )

 

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