ये क्या विलाप है देखो
जो जल रहा वो सत्य है
शांत बह रही जल धारा
धुआं धुआं है किनारा
व्यर्थ सारे तथ्य है
जो जल रहा वो सत्य है
बदल रहा जो राख में
जलती चिता के साथ में
दृश्य ये विभत्स है
जो जल रहा वो सत्य है
करे घमंड भले तन पे
बिता जीवन इस पाखंड में
विचर ले जितना रिश्तो के भंवर में
काल्पनिक यह भ्रमण है
जो जल रहा वो सत्य है
प्रेम विनोद ये क्रंदन
तत्क्षण जीवन मंथन
वास्तविक आत्मा बांकी सब मिथ्य है
जो जल रहा वो सत्य है ।।।।