यूरोप में इन दिनों एक नई हलचल शुरू हुई है। वजह है तुर्की स्थित एक चर्च को राष्ट्रपति अर्दोआन ने मस्जिद में बदल दिया है और वहां नमाज़ करने की इजाज़त भी मिल चुकी है।
दरअसल यह मस्जिद पहले चर्च थी, फिर म्यूज़ियम बनी और अब इसे मस्जिद बनाया जा रहा है। क्या है इसके पीछे की वजह और क्यों यह इमारत जिसका नाम हागिया सोफिया है, इतनी खास है?
रोमन सम्राट के आदेश पर बना था चर्च
हागिया सोफिया का हिन्दी में अर्थ होता है ‘पवित्र विवेक‘ या ‘पवित्र ज्ञान।‘ यूरोप का “गेट” कहे जाने वाले तुर्की में सन 532 इस्वी में ईसाइयों का राज था। 532 ईस्वी में टर्की के “रोमन सम्राट जस्टिनियन” ने एक आदेश दिया कि एक शानदार चर्च बनाया जाए।
एक ऐसा चर्च जो आज तक ना बना हो और ना ही कभी दोबारा बनाया जा सके। सम्राट चाहता था कि मध्य पूर्व के इस इलाके में अंग्रेज़ी पहचान की कोई स्थापत्य संस्कृति बने।
उन दिनों “इस्तांबुल” को कॉन्स्टेनटिनोपोल या कुस्तुनतुनिया के नाम से जाना जाता था। सम्राट जस्टिनियन के आदेश का पालन करने के लिए इस्तांबुल के “बॉस्फोरस नदी” के पश्चिमी किनारे पर इस इमारत को बनाने का काम शुरू किया गया।
इस शानदार इमारत को बनाने के लिए दूर–दूर से निर्माण सामग्री और इंजीनियर लगाए गए और तकरीबन दस हज़ार मज़दूरों को लगाकर और करीब 150 टन सोना खर्च करके पांच साल के बाद सन् 537 में यह इमारत बनकर तैयार हो गई। यह इमारत अद्भुत सौन्दर्य और स्थापत्य का मिश्रण थी।
आज जैसी पहले नहीं थी हागिया सोफिया
यह हागिया सोफिया जैसी आज दिखती है तब वैसी नहीं बनी थी। इसकी पहली तस्वीर चर्च की थी, तब यह विश्व के सबसे बड़े चर्च में से एक थी। यह इमारत करीब 900 साल तक ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च का मुख्यालय रही। ईसाई धर्म और संस्कृति से जुड़े कई महत्वपूर्ण फैसले भी इस चर्च की सहमति से होते रहे। साथ ही मध्य पूर्व में धार्मिक आस्था का एक बड़ा केन्द्र भी स्थापित हो चुका था।
हागिया सोफिया जल्द ही रोमन साम्राज्य का आधिकारिक चर्च बन गया। सातवीं सदी के बाद बाइज़ेंटाइन वंश के तकरीबन सभी सम्राटों का राज्याभिषेक यहीं हुआ। राजवंश के सभी सम्राट यहां आते थे।
बास्फोरस नदी किनारे मौजूद हागिया सोफिया कई बार ज़लज़लों और संकटों का शिकार भी हुई। सन् 558 ईस्वी में इसका गुंबद गिर गया। सन् 563 में उसकी जगह फिर से बनाया गया गुंबद भी तबाह हो गया। 989 ईस्वी में आए एक भयंकर भूकंप ने भी उसे नुकसान पहुंचाया लेकिन इस भूकंप के बावजूद भी इस इमारत का वजूद बचा रहा।
हागिया सोफिया में कई बार हुआ सत्ता परिवर्तन
मगर हगिया सोफिया पर जितना वार प्राकृतिक भूकंपों ने किया उससे अधिक वार सत्ता के बदलने के साथ आए परिवर्तन ने किया।
13वीं सदी में तो इसे यूरोपीय ईसाई हमलावरों ने बुरी तरह ध्वस्त करके कुछ समय के लिए कैथलिक चर्च बना दिया था। इसी तरह यह इमारत कई बार खत्म हुई और फिर कई बार अलग स्वरूप में बनी। कभी दंगों में गुंबद खत्म हो गया तो कभी उसकी दीवारें ढह गईं और हर बार नए तरीके से बनाई गई।
हगिया सोफिया 13 वीं शताब्दी तक इसाईयों के ही दो संप्रदायों के बीच विवाद का कारण बनी रही लेकिन इसके बाद सन् 1299 में ईसाइयों के इस साम्राज्य पर उस्मानिया सल्तनत का कब्ज़ा हो गया। सुल्तान उस्मान ,छोटे से काई कबीलेके खलीफा इर्तगुल और उनकी पत्नी हलीमा के बेटे थे।
तब तुर्की के करकोपरा दरवाजे के ऊपर स्थापित बाजिंटिनी झंडा उतारकर उसकी जगह उस्मानी झंडा लहरा दिया गया था और यह टर्की में इस्लामिक हुकूमत का ऐलान था।
कुस्तुनतुनिया पर जब “सल्तनत ए उस्मानिया” ने फतह हासिल ली
कुस्तुनतुनिया पर “सल्तनत ए उस्मानिया” ने फतह हासिल कर ली। रोमन साम्राज्य खत्म करके उस्मानिया सल्तनत के सुल्तान मेहमदद्वितीय का कब्ज़ा हो गया। और सबसे पहले क़ुस्तुनतुनिया का नाम बदलकर इस्तांबुल किया गया।
सत्ता बदलने के साथ आए वैचारिक भूकंप में हागिया सोफ़िया इमारत भी अपनी पहचान को ना बचा सकी। साल 1453 में “बाइज़ेंटाइन एंपायर” खत्म होने के बाद सुल्तान मुहम्मद द्वितीय ने फ़रमान सुनाया कि हागिया सोफ़िया को मस्जिद बनादिया जाए।
हुक़्म की तामील हुई। इसाई धार्मिक चिन्ह क्रॉस की जगह इमारत में चांद को बनाया गया। चर्च की घंटियां खामोश कर दी गईं।संगमरमर को हगिया सोफिया की दीवारों पर इस तरह जड़ा गया कि उन पर उकेरे गए चित्रों पर चादर पड़ गई।
यह किसी दौर के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी , सत्ता के सहारे तब और आज यह सब किया ही जाता रहा है। सल्तनत ए उस्मानिया के दौर में 665 साल तक “हागिया सोफ़िया” में गुंबद बनाए गए, इस्लामी मीनारें तैयार की गईं। हागिया सोफिया में पहली नमाज़ जुमा की पढ़ी गई तब इस नमाज़ में ख़ुद सुल्तान और सारा शहर शामिल हुआ था।
उसी दौर में “अया सोफिया” या हागिया सोफिया को सुल्तान मोहम्मद अल फातेह ट्रस्ट की संपत्ति घोषित किया गया और सुल्तानमोहम्मद ने एक वसीयत लिखी कि इसे लोगों की सेवा के लिए मस्जिद के रूप में हमेशा पेश किया जाए। आज दिख रही हागिया सोफिया उस्मानिया सल्तनत की बनाई हुई इमारत है।
तुर्की में फिर “मुस्तफ़ा अतातुर्क उर्फ कमाल पाशा” का उदय हुआ , जिनको विश्व में आधुनिक तुर्की का संस्थापक कहा जाता है।उन्होंने तुर्की में उस्मानिया राजशाही खत्म करके एक लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम की जो आजतक जारी है।
अतातुर्क कमाल पाशा , विश्व में अपनी स्वीकार्यता और मान्यता बढ़ाने के लिए विश्व बिरादरी से समझौते करने लगे , जिसमें एकसमझौता तो तुर्की की अर्थव्यवस्था के ही विरुद्ध था।
सन् 1923 में हुए इस समझौते के तहत तुर्की पर तेल के कुओं के प्रयोग और बंदरगाहों पर कर इत्यादि जैसे तमाम आर्थिक प्रतिबंधों को100 साल के लिए स्विकार कर लिया , जिसकी अवधि 2023 में पूरी होने जा रही है।
अतातुर्क ने देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया और इस्लामिक शरिया को खत्म करके एक “यूरोपीय सिविल कोड्स” दिया। इस्लामिकव्यवस्थाओं और सिद्धांतों की जगह तुर्की में पश्चिमी सभ्यता को प्रमुखता दी जाने लगी।
इसी उद्देश्य से उन्होंने एक बार फिर हागिया सोफिया पर फ़ैसला लिया और अपने युरोपीय आकाओं को खुश करने के लिए “हगियासोफ़िया” में नमाज़ पर प्रतिबंध लगा दिया। तब भी जबकि यह “सुल्तान मोहम्मद अल फातेह ट्रस्ट” की संपत्ति थी।
अब यह ना मस्जिद रही और ना ही चर्च, बल्कि साल 1934 में उसे एक म्यूज़ियम में तब्दील कर दिया गया और इसका नाम रखा गया“आयादफया संग्रहालय“।
दीवारों पर जो तस्वीरें उस्मानी दौर में छिपा दी गई थीं, उन्हें बहाल किया गया। मगर इस बात का ख़्याल रखा गया कि इस्लामी प्रतीकोंको नुक़सान ना पहुंचे। साल 1935 में इसे सभी लोगों के लिए ख़ोल दिया गया। अब किसी पर कोई पाबंदी नहीं थी।
मैंने ऐसी ही हागिया सोफिया देखी थी , हागिया सोफ़िया में हर तरफ़ इतिहास के निशान दिखाई देते हैं। यहां एक तरफ मोहम्मद औरदूसरी तरफ़ अल्लाह लिखा है तो वहीं बीच में यीशु को अपनी गोद में लिए हुए वर्जिन मेरी भी दिखाई देती हैं। हागिया सोफ़िया को 1985 से वर्ल्ड हेरिटेज घोषित कर दिया गया था। क़रीब 90 साल से ये इमारत म्यूज़ियम बनी हुई है।
अब आते हैं ताज़े घटनाक्रम पर
तुर्की में युरोपीय देशों के दबाव में कमाल पाशा द्वारा बनाए 1934 के क़ानून के ख़िलाफ़ लगातार प्रदर्शन होते रहे हैं।
जिसके तहत “हागिया सोफ़िया” में नमाज़ पढ़ने या किसी अन्य धार्मिक आयोजन पर पाबंदी थी। हालाँकि सभी ऑर्थोडॉक्स ईसाइयों केमानद प्रमुख बार्थोलोमैओस काफ़ी वक़्त से मांग कर रहे हैं कि हागिया सोफ़िया में ईसाइयों को इबादत की इजाज़त दी जाए।
फिर दौर आता है “रेजेप ताय्यिप एर्दोआन” का जो मौजूदा तुर्की के बारहवें राष्ट्रपति हैं। इससे पहले वे तुर्की के 14 मार्च 2003 से 28 अगस्त 2014 तक प्रधानमंत्री थे और सन् 1994 से 1997 तक इस्तांबुल के मेयर रहे।
तुर्की के बेहद लोकप्रीय राष्ट्रपति “रेजेप ताय्यिप एर्दोआन” ने अपने राष्ट्रपति के चुनाव में घोषणा की थी कि उनके जीतने पर “हगियासोफ़िया” में नमाज़ फिर से शुरु कराई जाएगी।
तुर्की में युरोपीय सभ्यता को खत्म करने के लिए “रेजेप ताय्यिप एर्दोआन” ने उस्मानिया सल्तनत पर एक टीवी सीरियल बनवाया“ड्रीलिस उर्तगल” और कई वर्ष तक इसे टीवी पर प्रसारित करवाया , जिससे तुर्की की जनता “उस्मानिया सल्तनत” को याद करके उससेप्रभावित हो सके।
जब मैं टर्की अंतिम बार गया था तब वहाँ के लोग “ड्रीलिस उर्तगुल” के दिवाने थे।
तुर्की के सुप्रीम अदालत में वहाँ के मुसलमानों ने हागिया सोफिया को लेकर मुकदमा दर्ज करा दिया और दलील पेश की थी कि छठीशताब्दी में बाइज़ेंटाइन काल में बना चर्च, सुल्तान मुहम्मद अल फतेह ने खरीद लिया था। इसलिए यह तुर्की सरकार की प्रॉपर्टी है। दूसरेदेश या धर्म के लोगों को दावा करने का कोई अधिकार नहीं है। वकीलों ने उस फ़ैसले को रद्द करने की अपील की, जो अतातुर्क कमालपाशा ने सुनाया था।
वहाँ की उच्चतम अदालत ने हागिया सोफिया को सुल्तान मोहम्मद अल फातेह ट्रस्ट” की संपत्ति माना और सुल्तान की वसीयत केअनुसार मस्जिद बहाल करने का फ़ैसला सुना दिया।
निर्णय में कहा गया है कि “अया सोफिया ट्रस्ट दस्तावेज़” में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हागिया सोफिया का इस्तेमाल किसीमस्जिद के अलावा किसी भी उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता है।
इस फैसले से यूरोप के ईसाई राष्ट्रों और तुर्की के बीच टकराव और कड़वाहट अवश्य बढ़ेगी। यद्दपि तैय्तब अर्दगान ने हागिया सोफिया के संग्रहालय या यूनेस्को द्वारा वर्ड हेरिटेज के स्वरूप में कोई परिवर्तन ना करते हुए केवल उसमें नमाज़ की अनुमति अदालत के आदेशपर की है।
100 साल का तुर्की की सफलता को रोकने वाला एग्रीमेन्ट भी तो खत्म होने को है , फालतू का विवाद उनको 2023 के बाद लिए निर्णयोंपर नुकसान ही पहुचाएगा।