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पैसों की भूख में अपना ईमान बेचती मीडिया

भारतीय मीडिया आज मज़ाक बनता जा रहा है , पूर्ण रूप से हम कह सकते है कि भारतीय मीडिया की गुणवत्ता समाप्त हो चुकी है , ना तो कोई शर्म बची है ना ही कोई नैतिकता । लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाली मीडिया अब चापलूस और मक्कार मीडिया बन चुकी है ,वर्तमान समय मे मीडिया एक व्यवसाय बन चुका मात्र व्यवसाय । शुरुआत करे अगर सुबह की अखबार से तो आधे से ज्यादा अखबार तो विभिन्न उत्पादों के प्रचार से ही भरे रहते है खबरें कम और प्रचार अधिक होते है । फिर बात करे टेलीविजन न्यूज़ चैनलों की तो इन चैनलों को तो बंद ही कर देना चाहिए क्योंकि ये विभिन्न उत्पाद का प्रचार तो दिखाते ही साथ ही ये चलाते है अपनी दुकान जहां ये लोगो की तकलीफों को चटपटा कर मसाला डाल कर पेश करते है और फेरी वाले से भी तेज आवाज में चिल्लाते है , इन्हें लोगो की वास्तविक परेशानी से कोई लेना देना नही होता ये उन्हीं की परेशानी दिखाते है जिनसे इनकी दूकान चले जिसमें मसाला हो , कोई मर गया कोई तड़प रहा कहीं बम ब्लास्ट हुआ कहीं बाढ़ आई ये लोग पहुँच जाते है अपनी दुकान ले कर फिर शुरू होती है इनकी कवरेज सुबह से रात तक वही दिखाएंगे बीच बीच मे चार नेता बुला कर चिल्लायेंगे बस इन्हें अपने कर्तव्य का ज्ञान ही नही है इन्हें आम आदमी से कोई मतलब नही है इनको मेलोडी म्यूजिक के बैकग्राउंड में फिल्मी गानों के डायलॉग मार दूसरों के दर्द को तमाशा बनाना आता है बस कोई सत्ता पक्ष कोई विपक्ष इन दो गुटों में बंटी है मीडिया और लगी रहती है चापलूसी में यही है इन नफ़रत फैलाने वाली मीडिया । 

अगर जल्द ही ये व्यवसाय बंद नही करवाया गया तो भविष्य में परिणाम काफ़ी बुरे हो सकते है लोग इनकी मायाजाल में फस कर बस एक दूसरे से लड़ते और बहस करते रह जाएंगे और ये मीडिया वाले ऐसे ही हमारी भावनाओं का तमाशा बनाते रहेंगे और वास्तविकता से हमलोग कोसो दूर हो जाएंगे ।

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