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बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले योद्धा का नाम है श्री कैलाश सत्‍यार्थी

फोटो साभार बचपन बचाओ आंदोलन -कैलास सत्यार्थी जी नगर-उटारी यात्रा में ।

शिव कुमार शर्मा

अंतरराष्ट्रीय मानव दुर्व्यापार विरोधी दिवस पर विशेष

जब भी बाल अधिकारों का जिक्र आता है, तो नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित श्री कैलाश सत्यार्थी का चेहरा उभरकर सामने आता है। श्री सत्यार्थी का बाल दासता, बाल दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग) आदि के खिलाफ संघर्ष का एक लंबा इतिहास है। करुणा और समानता के ये गुण उनके अंदर बचपन से ही भरे हुए हैं।

श्री सत्यार्थी पहली बार जब स्कूल गए थे, तब उन्‍होंने स्कूल के गेट पर एक मोची को देखा, जो उनकी बराबर के उम्र के अपने बच्चे के साथ जूते पॉलिश कर रहा था। श्री सत्यार्थी के बाल मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि मेरी तरह ये मोची का बच्चा स्कूल क्‍यों नहीं जा रहा है? इस सवाल का जवाब जानने के बाबत उन्‍होंने अपने स्कूल के अध्यापक, अपने बड़े भाई तथा परिवार के अन्य सदस्यों से सवाल किया। लेकिन किसी से भी माकूल जवाब नहीं मिला। ज़्यादातर ने यही कहा कि गरीब का बच्चा है, वह स्कूल कैसे जा सकता है, उसे तो जूतों पर पॉलिश ही करनी है। श्री सत्यार्थी इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुए। तब उनकी उम्र लगभग 5-6 साल रही होगी। हमारा संविधान सबको समानता का अधिकार देता है। उस समय श्री सत्यार्थी के बाल मन को शायद ही इस बात की जानकारी हो, लेकिन इतनी छोटी उम्र में भी श्री सत्यार्थी के मन में सभी बच्चों के प्रति समानता की बात भरी हुई थी।

पैसा कमाने के लिए किसी बच्चे, महिला या पुरुष को बंधुआ मजदूरी करवाने, शारीरिक व यौन शोषण कराने के लिए बेचा तथा खरीदा जाता है। पैसा कमाने की इस प्रक्रिया को मानव दुर्व्यापार कहा जाता है।

इस अमानवीय अपराध को रोकने तथा समाप्त करने के लिए श्री सत्यार्थी के भगीरथ प्रयासों से ही कई राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय कानून बन पाए हैं। कई और नए क़ानूनों के लिए श्री सत्यार्थी प्रयासरत हैं। मानव दुर्व्‍यापार को खत्‍म करने के लिए राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत तथा सक्षम कानून की दरकार है। श्री सत्यार्थी एक ऐसा कानून चाहते हैं जिसके द्वारा बाल दुर्व्‍यापार, बाल वेश्‍यावृत्ति, बाल भिक्षावृत्ति, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, शरणार्थियों के यौन उत्पीड़न, मानव अंगों का अवैध कारोबार आदि पर लगाम लगाई जा सके।

बाल दुर्व्‍यापार के खिलाफ कानून बनाने की मांग को लेकर श्री सत्यार्थी ने देश-विदेश में अनेकों यात्राएं निकाली हैं, जो निम्नलिखित हैं–

फोटो-साभार बचपन बचाओ आंदोलन

  1. नगर-उटारी यात्रा-श्री सत्यार्थी ने बाल दासता के विरुद्ध पहली यात्रा तब के बिहार और अब के झारखंड के नगर-उटारी से 01 फरवरी से 15 फरवरी 1993 को निकाली, जिसमें हजारों लोगों ने भाग लिया। इस यात्रा से समाज तथा सरकार के स्तर पर जागरुकता पैदा हुई।
  2. दूसरी यात्रा 1994 में निकाली गई, जो कन्याकुमारी से आरंभ होकर दिल्ली में महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर समाप्त हुई। इस यात्रा में हजारों की संख्या में बच्चे, सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।
  3. ग्लोबल मार्च अगेंस्‍ट चाइल्ड लेबर-श्री सत्यार्थी ने 17 जनवरी 1998 में ग्लोबल मार्च अगेंस्‍ट चाइल्ड लेबर निकाला, जिसने 103 देशों से गुजरकर बच्चों की सुरक्षा के लिए कानून बनवाने के लिए अंतर्राष्‍ट्रीय स्तर पर माहौल तैयार किया। इस मार्च का समापन अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के जिनेवा स्थित मुख्यालय में 06 जून 1998 को हुआ। इस यात्रा के करीब एक साल बाद 17 जून 1999 को आईएलओ ने बदतर प्रकार की बाल मजदूरी के खिलाफ सर्वसम्मति से कनवेंशन-182 पारित किया। आईएलओ कनवेंशन-182 बाल दासता पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की बात करता है।

4.        शिक्षा यात्रा 2001- इस यात्रा का आयोजन शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के लिए किया गया था। इस यात्रा का समापन भारत की       राजधानी  दिल्ली स्थित रामलीला मैदान में हुआ। इसके समापन समारोह में देशभर से पचास हज़ार लोगों ने भाग लिया था।   

  1. साउथ एशियन मार्च अगेंस्‍ट चाइल्ड ट्रैफिकिंग 2007–इस मार्च ने 5000 किलोमीटर की दूरी तय की तथा इस मार्च का आयोजन कोलकाता से काठमांडू तक किया गया तथा फिर काठमांडू से दिल्ली तक का सफर तय किया गया। इस मार्च में दस लाख लोग शामिल हुए तथा यह मार्च जबरिया मजदूरी के खिलाफ निकाला गया था।
  2. नेपाल यात्रा 2009-इस यात्रा का आयोजन नेपाल में किया गया। इस यात्रा का उद्देश्‍य शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दिलाना था।
  3. असम चाइल्ड लेबर एंड ट्रैफ़िकिंग मार्च 2012- इस मार्च का आगाज श्री सत्यार्थी ने बाल मजदूरी और बाल दुर्व्‍यापार के विरुद्ध किया। इस मार्च में नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी ने भी साझेदारी की। मार्च को उच्चतम न्यायालय के तत्कालीन मुख्य-न्यायाधीश जस्टिस अल्‍तमस कबीर ने हरी झंडी दिखाकर गुवाहाटी से रवाना किया। इस मार्च का समापन धुबरी में सम्पन्न हुआ।
  4. उपरोक्त यात्राओं में हजारों विश्‍व नेता, नौकरशाह, न्यायाधीश तथा लाखों की संख्या में कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। इन यात्राओं के माध्यम से श्री सत्यार्थी ने अपनी बात विश्‍व नेताओं जैसे-राजाओं, रानियों, राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, न्यायाधीशों, सांसदों आदि के सम्मुख रखी।

  

फोटो साभार बचपन बचाओ आंदोलन 

 गौरतलब है कि इनके अतिरिक्त श्री सत्यार्थी विश्‍व नेताओं से चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगाने को समर्थन जुटा रहे हैं। वे चाहते हैं कि पूरी दुनिया की सरकारें अपने-अपने यहां की पोर्न वेवसाइटों पर प्रतिबंध लगा दें, ताकि पोर्न सामग्री लोगों के बीच नहीं परोसी जा सके। श्री सत्यार्थी का मानना है कि गंदी व अश्‍लील फिल्म देखकर ही कामुकता पैदा होती है और इस तरह बाल यौन शोषण को बढ़ावा मिलता है।          

 उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए ही श्री सत्यार्थी एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय कानून की मांग कर रहे हैं, जिससे बच्चों का शोषण करने वाले अपराधी बच न सकें। श्री सत्यार्थी का मानना है-“भारत में बड़ी तादाद में किशोरियां हर साल देह व्यापार में धकेल दी जाती हैं। इसमें सबसे बड़ा हाथ पीड़िता के किसी निकट रिश्तेदार का ही होता है। पीड़िता का रिश्तेदार किसी बड़े शहर की प्लेसमेंट एजेंसी के दलाल के रूप में काम करता है। पीड़िता को प्लेसमेंट एजेंसी तक यही दलाल पहुंचाता है। इसके लिए प्लेसमेंट एजेंसी उसको मोटी रकम देती है। प्लेसमेंट एजेंसी इस तरह की लड़कियों को घरेलू काम करने के लिए घरों में भेज देती है। प्लेसमेंट एजेंसी घरों के मालिकों से कमीशन के रूप में बड़ी रकम प्राप्त करती है। जहां पर पीड़िता का अक्सर कई तरह से शोषण होता है।

निरक्षरता, कानूनों की जानकारी न होना तथा एक अनजान शहर में कोई अपना परिचित नहीं होने के कारण पीड़िता अपनी व्यथा किसी को बता पाने में डरती है।

प्लेसमेंट एजेंसी पीड़िता को उनका मासिक वेतन देने में भी आना-कानी करती है। कभी भी समय पर वेतन नहीं देती है। जब पीड़िता पैसे का तगादा करती है, तो जवाब मिलता है कि जब आप अपने घर जाओगी, तब एक साथ ले लेना। जब 5-6 महीने बाद किसी त्योहार जैसे होली आदि पर, पीड़िता अपने घर जाने के लिए प्लेसमेंट एजेंसी से पैसे देने को कहती है, तब वह कहती है कि अभी तो छह महीने ही हुए हैं तुम्हें! अभी घर मत जाओ, दीपावली पर चले जाना! और सारे पैसे भी तभी ले लेना। इस तरह प्लेसमेंट एजेंसी पैसे देने के नाम पर टाल-मटोल करती रहती है तथा पीड़िता को कभी भी उसकी मेहनत के पैसे नहीं मिलते हैं। कई बार दलाल ट्रैफिकिंग की गई लड़कियों को किसी पुरुष को उसके साथ शादी करने के लिए बेच देते हैं। यह पुरुष कई बार लड़की से दोगुनी उम्र का होता है। लड़की के साथ उनके भाई भी बलात्कार करते हैं। यानी कि वह लड़की मजबूरी में उन कई पुरुषों की पत्‍नी बनकर रहती है, जो आपस में भाई-भाई होते हैं। हालांकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 (1) और अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 के तहत भारत में मानव दुर्व्‍यापार प्रतिबंधित है।’’

(लेखक प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष हैं)

 

 

 

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