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मध्यप्रदेश और शिक्षा

मध्य प्रदेश शासन ,शिक्षा एवं शिक्षक

अब प्रदेश के सरकारी स्कूलों को दिल्ली की तर्ज पर स्मार्ट बनाने की तैयारी आज ही यह खबर मध्य प्रदेश के एक प्रमुख न्यूज़ पेपर में देखने को मिली, इसे देखते ही याद आया ऐसी कई खबरें पहले भी पढ़ने को और देखने को मिली है क्योंकि मध्य प्रदेश में मुझे लगभग 5 वर्ष अलग अलग विभागों में कार्य करने का मौका मिला जिसमें शिक्षा विभाग को काफी करीब से देखने व समझने का मौका मिला इस दौरान कई अधिकारी जैसे कलेक्टर एवं एसडीएम के साथ कार्य करने का मौका मिला व उनकी शिक्षा विभाग के प्रति कार्यशैली व नजरिये को नजदीक से देखा ,आज अचानक यह खबर देखकर फिर से पुरानी चर्चाएं याद आयीं और अपने अनुभव आप सभी के साथ साझा करने का मन किया इसलिए यह सब लिख रहा हूं,
मध्य प्रदेश वहुत संपन्न राज्य है संसाधनों की दृष्टि से, संस्कृति की दृष्टि से व शिक्षा की दृष्टि से मध्य प्रदेश के शिक्षा विभाग में कई बहुत अच्छी योजनाएँ चल रही है जो पूरे राष्ट्र को दिशा देने व मार्ग दिखाने में सक्षम हैं चाहे वो वर्चुअल क्लासरूम योजना हो या कोई अन्य योजना मध्य प्रदेश का एजुकेशन डिपार्टमेंट काफी समय पहले से पूरी तरह से ऑनलाइन हो चुका है यहां तक कि सर्विस बुक भी ऑनलाइन संधारित की जाती है वो भी पिछले 10 बर्षों से इसके अलावा कई और भी योजनाएं शासन द्वारा चलाई जा रही है, शिक्षक छात्र अनुपात भी काफी अच्छा है, एवं विद्वान शिक्षक मन से प्रदेश को आगे ले जाने के लिए लिए प्रयासरत हैं , लेकिन इन सब के बाद भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं इसका महत्वपूर्ण कारण यही है मध्य प्रदेश शासन के अधिकारी एवं अफसर शिक्षा विभाग को अपने अनुसार चलाना चाहते हैं जिस प्रकार दिल्ली में स्कूल विजिट करने के लिए भी अधिकारी आये कोई टीचर नहीं उसी प्रकार हर जगह सीखने के लिए अधिकारी जाते हैं कभी भी अपने शिक्षकों को साथ नहीं लेते और वहां अधिकारियों को ट्रेंड भी इस तरीके से किया जाता है कि आपको कार्य कराना है करना नहीं है (यह वाक्य अक्सर हर अधिकारी के मुहं से सुनने को मिल जाता था कि हम काम कराने के लिए हैं करने के लिए नहीं )और बस इसी तर्ज पर यहां भी कार्य करने के लिए एक शिक्षक ही है जो क्लास रूम के अंदर कार्य करेगा लेकिन सरकार इस शिक्षक को अपने इस प्रगति में भागीदार नहीं बनाना चाहती क्योंकि सरकार का मानना है कि शिक्षक कुछ नहीं कर सकता जो कुछ करना अधिकारी ही करेंगे यही कारण है कि कलेक्टर की किसी भी टीएल मीटिंग में शायद ही इस बात पर चर्चा होती है कि स्कूल में बेहतर करने के लिए क्या किया जाए लेकिन इस बात पर जरूर चर्चा होती है कि कितना बजट और खर्च करना है और कैसे करना है फिर चाहे कलेक्टर हो sdm हों या जिला शिक्षा अधिकारी हो इन सभी का कार्य बजट के इर्द-गिर्द घूमता है खर्च कैसे करना है खर्च क्यों नहीं किया इत्यादि जब कोई कलेक्टर या एस डी एम किसी स्कूल में जाते हैं निरीक्षण करने के लिए तो यही देखते शिक्षक कितना देर से आता है रजिस्टर में हाजिरी है या नहीं यह कभी नहीं देखा जाता कि स्कूल में शिक्षक विषम परिस्थितियों में भी कैसे पढ़ा रहे हैं कैसे अपना योगदान देकर ज्यादा अच्छा कार्य कर रहे हैं इन सभी अधिकारियों के पास इस मामले में बात करने के लिए तो कुछ होता नहीं है क्योंकि शायद उनके पास देने के लिए ज्यादा कुछ है नहीं , या इस बात का डर कि शिक्षक किसी बात के लिए पूछे कैसे करें तो कैसे बता पाएंगे ,उन्हें खुद कुछ जानकारी नहीं है पूरा निरिक्षण आधिकारिक होता है अकादमिक नही, जिला शिक्षा अधिकारी का पद भी पूरी तरह से प्रशासनिक पद है जो बड़ी मेहनत के बाद पाया जाता है बड़े जोड़-तोड़ पहुंच व खर्चे के बाद प्राप्त किया जाता है इसके अलावा सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत कार्य करने वाले सभी शिक्षक जो डेपुटेशन पर आए हुए हैं अपने आप को अधिकारी ही समझते हैं एक शिक्षक नहीं समझते (जबकि वह भी शिक्षक संवर्ग से आए हुए होते हैं )क्योंकि वो अपना फर्ज उसी रूप में निभाते हैं जिस रूप में वो अधिकारियों को फर्ज निभाते हुए देखते हैं इन सब के अलावा शासन शिक्षकों का बहुत अच्छे से उपयोग करती है कभी पशुओं की गणना कराकर कभी कन्यादान योजना भंडारे में पूडी वितरण करा कर कभी रैली में पार्किंग व्यवस्था देख कर कभी किसी रैली में कभी अन्य किसी चीज की व्यवस्था देखकर कभी राशन बटबाकर इस प्रकार के कई कार्य शासन शिक्षकों से करवाती हैं क्योंकि शासन का मानना है शिक्षक इसी कार्य के लिए हैं अध्यन अध्यापन कोई कार्य नही है, किसी कार्य के लिए शासन कभी भी शिक्षकों को सुविधा देने के बारे में नहीं सोचती पिछले 10 वर्ष में लगभग एक लाख से ज्यादा शिक्षकों की भर्ती हुई है किसी को भी कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया न ही दिया जाता है क्योंकि सरकार की नजर में उनकी जरूरत ही नहीं है,सरकार का मानना है अच्छे कार्य के लिए अधिकारी जिम्मेदार है और बुरे परिणाम के लिए शिक्षक ,
आज भी है शिक्षकों की भर्ती संविदा आधार पर ही की जाती है आज भी शिक्षकों का वेतन पूरे देश में सबसे कम है, सभी अधिकारी विद्यालयों में सिर्फ कमी निकालने जाती हैं अच्छाई देखने नहीं इसके अतिरिक्त ऐसा नहीं कि सरकार कार्य नहीं करती सरकार शिक्षा विभाग में पिछले कुछ वर्षों में बदलाव करती रही है उसके बदलाव या तो DDO बदलने के लिए होते हैं या सभी बदलाव इस बात पर निर्भर करते हैं की एक डीडीओ कितनी स्कूल के लिए कार्य करेगा शिक्षकों को कैसे पंचायत के अधीन किया जा सके या शिक्षकों कैसे नगरीय निकाय के अधीन किया जा सके ताकि कम से कम वेतन में कम से कम सुविधाओं में एक शिक्षक से कार्य लिया जा सके अंत में यही कहूंगा जब तक शिक्षक को साथ लेकर शिक्षक को भरोसे में लेकर शिक्षकों को आगे ले जाकर सरकार कार्य नहीं करेगी जब तक इंस्पेक्शन को मोटिवेशन में नही बदला जायेगा तब तक शिक्षा विभाग में बदलाव नहीं लाया जा सकता ,
उम्मीद है इस बार सरकार कुछ सकारात्मक निर्णय लेगी एवं हमारे दिल्ली के विद्यालयों से कुछ सीख कर सकारात्मक बदलाव देखकर शायद बजट से ज्यादा अधिकारियों की कार्य शैली बदलने व विद्यालयों में सकारात्मक माहौल देने में सफल हो
किसी की यह पंक्तियां मध्य प्रदेश सरकार के पुराने कार्यों को अच्छे से दर्शाती हैं
मैं हर बार एक ही गलती करता रहा
धूल चेहरे पर थी और आईना साफ करता रहा
धन्यवाद
मनीष भार्गव

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