Site icon Youth Ki Awaaz

शर्मा जी के बच्चे से दौड़ और हमारा शिक्षण समाज

जिस दिन से एग्जाम की डेट हम विद्यार्थियों के सामने आती है, उसी दिन से हम सभी खुद को मानसिक रूप से तैयार करना शुरू कर देते हैं। हम खुद को बेहतर दिखाने की एक अघोषित दौड़ में अव्वल आने का प्रयास करने लगते हैं। असल में हमारे एजुकेशन सिस्टम में सिर्फ अंक ही हमारी बुद्धि नापने का पैमाना हैं। और समाज ने तो हमारी प्रतियोगिता पहले से ही शर्मा जी के बच्चों से लगा दी है। हर बच्चा अलग है, सबकी प्रतिभाएं अलग हैं, पढ़ने का ढ़ंग अलग, काम करने का तरीका सब अलग…. लेकिन पैमाना सिर्फ एक है। अच्छे नंबर लाने की होड़ में बच्चे मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं। कई बार तो वे सिर्फ इसलिए अपनी जान ले लेते हैं क्योंकि उन्हें डर होता है कि कहीं वे फेल न हो जायें, ऐसा लगता है जैसे फेल होना, ज़िन्दगी से बढ़कर है। ये मानसिक तनाव छात्रों को और कमजोर बनाता हैै।

Exit mobile version