टाइटल : सपने नंबरों से नहीं जुनून और जज्बे से पूरे होते हैं।
बारहवीं के परीक्षा परिणाम आने के बाद देशभर से असफल या कम अंक हासिल करने वाले विद्यार्थियों की अवसाद में जाने, घर छोड़कर भाग जाने तथा आत्महत्या करने की खबरें फिर आने लगी हैं। जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। दरअसल, हमने बच्चों को बच्चा नहीं रहने दिया। उन्हें नंबर लाने वाली मशीन बना दिया है।
बच्चों को नम्बर के आधार पर मापना एक अन्याय
जिसके ज्यादा नंबर आएंगे, वह ज्यादा अच्छा बच्चा होगा। हमने अंकों को अच्छा छात्र होने का पैमाना मान लिया है। जिसकी वजह से बच्चे अच्छा इंसान बनने की जगह, कुछ अलग और समाज के लिए बेहतर करने की सोचने की बजाए अंकों के पीछे भाग रहे हैं। उन्हें लगता है कि अच्छे अंक प्राप्त करके ही वह ज़िंदगी को बेहतर और सफल बना पाएंगे। जबकि ऐसा नहीं है। माता-पिता और बच्चों को यह समझना पड़ेगा कि हकीकत नंबरों से जुदा है।
दुनिया के तमाम महान और सफल लोग पढ़ाई में बहुत अव्वल नहीं रहे हैं। अंकों से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आप जीवन में करना क्या चाहते हैं? आप जो करना चाहते हैं, अगर वह करते हैं तो आप न केवल उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ दे पाएंगे, बल्कि सफलता भी हासिल कर पाएंगे। यह भी हकीकत है कि जिंदगी में आप जो चाहें वह कर सकते हैं, बस आप में उसे करने का जज्बा और जुनून होना चाहिए।
आओ कैलाश सत्यार्थी जी से कुछ सीखें
बारहवीं पास करने वाले तकरीबन सभी छात्र अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। उनकी चिंता यह है कि वे क्या करें कि उनका भविष्य उज्जवल हो? ऐसे में उन्हें क्या करना चाहिए? तो इसका जवाब यह है कि आपको वहीं करना चाहिए, जो आप करना चाहते हैं, जो आप बनना चाहते हैं। ऐसे बच्चों को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी के जीवन से सबक लेगा चाहिए।
उन्होंने वही किया, जो वह करना चाहते थे। काम भी बड़ा अलग था। बच्चों को बंधुआ मजदूरी और गुलामी से मुक्त कराना और उन्हें उनका बचपन लौटाना। इसके लिए उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार और महान सम्मान से नवाजा गया है। आपको बता दें कि नोबेल शांति पुरस्कार दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार है। फिलहाल, नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित तकरीबन 21 लोग ही जीवित हैं। यानी श्री सत्यार्थी दुनिया के उन 21 लोगों में से एक हैं जिनके काम ने मानवता का मान बढ़ाया है।
उनके जीवन से सीख मिलती है कि जिंदगी में आप जो चाहे वह कर सकते हैं, बस आप में उसे करने का जज्बा और जुनून होना चाहिए। वे अक्सर युवाओं को संबोधित करते हुए कहते भी हैं, “सपने नंबरों से नहीं जुनून और जज्बे से पूरे होते हैं।”
वे तो बच्चों को बाल मजदूरी और गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराना चाहते हैं।
श्री कैलाश सत्यार्थी का जन्म विदिशा के एक सामान्य परिवार में हुआ। उनके पिता पुलिस में कांस्टेबल थे। उन्होंने साधारण स्कूल में पढ़ाई की। सत्तर के दशक में उन्होंने तब इंजीनियरिंग की, जब उसे एक बेहतरीन करियर माना जाता था। तब इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई करने वालों का भविष्य उज्जवल माना जाता था। इंजीनियरिंग करने बाद वे एक कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर बन गए। लेकिन कुछ ही सालों बाद उन्हें लगने लगा कि वह जो करना चाह रहे हैं, वह नहीं कर रहे हैं।
वे तो बच्चों को बाल मजदूरी और गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराना चाहते हैं। वह एक नए समाज की रचना करना चाहते थे, जहां बच्चों का बचपन आजाद, शिक्षित, सुरक्षित और स्वस्थ हो। लिहाजा, उन्होंने अपनी जमी जमाई प्रोफेसरी की नौकरी छोड़ दी और दिल्ली आकर अपना रास्ता तलाशने लगे। परिवार के लोगों ने उन्हें खूब खरी खोटी सुनाई कि प्रोफेसरी की नौकरी छोड़ कर वे अपना जीवन बर्बाद करने जा रहे हैं। माँ ने भी उन्हें समझाया कि इंजीनियर हो, खूब पैसा कमाओं फिर बच्चों के लिए एक अनाथालय खोल लेना। लेकिन अपनी धुन के पक्के श्री कैलाश सत्यार्थी ने किसी की नहीं सुनी। सुनी तो केवल अपने मन की।
विश्व के बाल सुधार में अथक प्रयास
आज उनके प्रयास से करोड़ों बच्चों का भविष्य संवर गया है। बाल मजदूरी न केवल प्रतिबंधित हुई है, बल्कि इसके खिलाफ देश-दुनिया में मजबूत कानून बने हैं। बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा आज विश्वव्यापी मुद्दा बन गया है। तमाम देशों ने बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा का अपना बजट बढ़ाया है। विकसित देशों और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने गरीब देशों को शिक्षा के लिए देने वाले अनुदान में भी काफी बढ़ोत्तरी की है। जिसका परिणाम यह है कि पिछले दो दशक में दुनिया में बाल मजदूरों की संख्या 26 करोड़ से घट कर करीब 16 करोड़ रह गई है।
सीधी छापामार कार्रवाई से अब तक 90 हजार से ज्यादा बच्चों को जबरिया बाल मजदूरी और गुलामी से मुक्त करा कर उन्हें बेहतर जीवन प्रदान किया है। कई बच्चों को पढ़ा लिखा कर इंजीनियर और वकील बना दिया है।
कैलाश सत्यार्थी जी के जीवन से कुछ पन्नों को पढ़ना आज के बच्चों और अभिभावकों के लिए ज़रूरी
श्री कैलाश सत्यार्थी जब पहले दिन अपने स्कूल गए थे, तभी उन्होंने स्कूल के गेट पर एक मोची और उसके नन्हें बेटे को जूता पॉलिश करते देखा। कक्षा में जाने के बाद उन्होंने अपने शिक्षक से सवाल किया, “मास्टरजी, एक बच्चा बाहर बैठ कर जूते पॉलिस कर रहा है, वह हमारे साथ स्कूल में क्यों नहीं है?” शिक्षक का यह जवाब सुनकर कि गरीब बच्चे काम करते हैं स्कूल नहीं जाते, सत्यार्थी जी बेचैन हो गए।
यही सवाल उन्होंने अपने बड़े भाईयों और परिवार के लोगों से पूछा। उनका जवाब भी शिक्षक जैसा ही था। लेकिन, वे इस जवाब से कभी संतुष्ट नहीं हो पाए और इसका उत्तर ढूढ़ते रहे। श्री कैलाश सत्यार्थी के मन में बाल मजदूरी के खिलाफ लड़ाई का अंकुर यहीं से फूटा था। उन्होंने इस अंकुर को मरने नहीं दिया, बल्कि जिंदा रखा। आज इसका परिणाम सबके सामने है।
हर बच्चे में कुछ खास होता। अभिभावकों और माता-पिताओं को यह समझना पड़ेगा और उन्हें उसकी उस खासियत को निखारने का मौका देना पड़ेगा। अपने सपनों और आकांक्षाओं को बच्चों पर पर जबरन न थोपें। हर बच्चा डॉक्टर- इंजीनियर और सिविल सर्वेंट बनने के लिए पैदा नहीं हुआ है। इसलिए बच्चों और उनके माता-पिताओं से अनुरोध है कि वे नंबरों की प्रतियोगिता में अपने बच्चों को शामिल न होने दे और उन्हें वही बनाएं, जिसके लिए वे बने हैं। कैलाश सत्यार्थी जैसे दुनिया के बहुत सारे महान और सफल लोग कभी नंबरों के पीछे नहीं भागे। वे भागे तो ज्ञान की तरफ सामाजिक बदलाव की तरफ मानवता के कल्याण की तरफ।