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हर साल बारिश में क्यों मुंबई में पानी भर जाता है?

मुंबई, तेज़ी से दौड़ने वाला शहर है। दुनिया का सातवां बड़ा शहर और देश की आर्थिक राजधानी भी है। यहां हर साल बारिश में पानी जमा हो जाता है और इस शहर की गति कम हो जाती है।

फिर खूबसूरत दिखने वाली बारिश की वजह से काफी दिक्कतें पैदा होती हैं और हर मुम्बईकर को यही सवाल सताता है कि आखिर मुंबई में पानी क्यों जमा हो जाता है? इसके मुख्यत: पांच कारण हैं।

  1. मुंबई द्वीपों का शहर है। कुलाबा, माहिम, वर्ली, माझगाँव, परेल, मुंबई और छोटा कुलाबा ऐसे 7 द्वीप थे और इनके ऊपर थी 7 टेकड़ी। दक्षिण से लेकर उत्तर दिशा में रुंद होने वाला यह शहर 3 दिशाओं से पानी से घिरा है। दादर, बांद्रा पश्चिम, चूनाभट्टी सायन ये शहर सखल भागो में के दलदल वाले भागों पर भराव डालकर बनाये गए है. इस वजह से जब भी मुंबई में बारिश गिरती है, मुंबई में पानी जमा होना शुरू हो जाता है.
  2. ब्रिटिश काल में शहर का चढ़-उतर, पानी का नितराव होनी की जगह, नदी नालो में पानी जाने की जगह, इन सब का सर्वे हो रहा था और उस हिसाब से शहरीकरण हो रहा था. नगरनियोजन विश्लेषक ‘सुलक्षणा महाजन’ कहते हे की, कुलाबा यह मुंबई एक द्वीप,पर वहा बाढ़ कभी आयी नहीं. इसका कारन की उस वक़्त नेचर को ध्यान रखते हुए किया गया नियोजन. रास्तो का चढ़ उतार देखते हुए फ्लाईओवर नहीं बांधे गए है. निवासी बांधकामो में भी नियोजन नहीं हुआ. नदी और नालो के बिच में ३० मीटर का अंतर आवश्यक होता है पर यहाँ पर बस्तिया बढ़ाई गयी. मुंबई में ४ नदिया और ११७ नाले है. ज्यादातर जगहों पर भराव डालकर काम किया गया है. इस वजह से पानी का नितराव होने के बदले पानी जमा हो रहा है और उस वजह से मीठी नदी, ओशिवारा, पोइसर और दहिसर इन नदियों का रूपांतर नालो में हुआ.
  3. मुंबई तीन तरफ से पानी से घिरा हुआ है. खाड़ी और जमीन इनके बिच के कुछ भागो पर सॉल्टी जंगल है और मिठागर भी है. इस वजह से भरती का पानी किनपट्टी पर न आते हुए जंगल में भर जाता है. इस वजह से किनारो की जमीनोकी धुप नहीं होतो है और शहर सुरक्षित रहता है ऐसा जानकार कहते है. पर यह सॉल्टी जंगल बचाने की जगह इसके ऊपर भराव डालकर बांधकाम किया गया. आपको जानकर हैरानी होगी के मुंबई का आंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा मीठी नदी का प्रवाह को मोडकर नदी के बाजु में रहे सॉल्टी जगह पर भराव डालकर बनाया गया है.
  4. क्या आप जानते हो के मुंबई में अगर हर घंटे २५ मिलीमीटर बारिश हुयी तो ही पानी आसानी बहकर जा सकता है पर मुंबई का रेनवाटर सिस्टम ही कुछ ऐसा है. यह रास्तो में लगे जलवाहिनो को ब्रिटिश सरकार ने १०० साल पहले लगाया था. पर २००५ के बाद इनको बढ़ाने की शिफारस चितले समिति ने की थी. इस के बाद २००६ में मुंबई महानगर पालिका ने २००६ के बाद जलवाहिनो को बढ़ाने का प्रोजेक्ट हाथ में लिया था पर झुग्गियों और अतिक्रमण की वजह से यह प्रकल्प पूरा हो न सका ऐसा मुंबई महानगरपालिका की ओर से कहा गया था.
  5. एक वक़्त पर ही जोरदार बारीश और समुन्दर में भरती यह खतरे की घंटी मानी जाती है. इस पर उपाय के तोर पर प्रजन्य जलवाहिनो के आलावा पम्पिंग स्टेशंस बनाने की शिफारस चितले समिति ने की थी. इस के बाद मुंबई के शहर और उपनगरों में ८ पम्पिंग स्टेशंस बनने वाले है. उसमे से विलेपार्ले, शिवडी, हाजीअली और वर्ली के पम्पिंग स्टेशंस का काम शुरू है. इस पम्पिंग स्टेशंस के निचे फ्लड गेट्स होते है. इस वजह से भरती का पानी रोका जाता है. पर जब बारीश की गती बढ़ती है तब इस पानी का नितराव नहीं होता है और इस वजह से पानी जमा होने लगता है और इसके परिणाम स्वरुप मुंबई की गती धीमी हो जाती है और मुंबई की लाइफलाइन कही जाने वाली लोकल ट्रेनों का शेडूल भी बिगड़ जाता है.

तो अबतक आपके ध्यान आ चूका होगा के मुंबई में पानी भरने का कारन यह ज्यादातर मानवनिर्मित ही है. २००५ का महाप्रलय तो केहर ही था. अब तो हर साल मुंबई में पानी भरने का नजारा तो हर मुम्बईकर को देखने मिलता है. इसलिए मुंबई के विकास का सपना देखने वालो और मुंबई मेरी जान कहने वालो के कही जान पर ये न बीत जाये इसलिए कुछ ठोस कदम उठाने की आवशक्यता है ऐसा जानकारों का कहना है. अब ये बात कितनी दिल पे ली जाती है ये देखना होगा.


संदर्भ- बीबीसी

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