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बाल विवाह सरकार और समाज की भद्दी मानसिकता का नतीजा है

पिछले दिनों बाल विवाह का मुद्दा ज़ोरो पर रहा। वजह देश के अलग-अलग हिस्सों में बाल विवाह के बढ़ते मामले हैं जिसमें पश्चिम बंगाल, हैदराबाद और यूपी के कई क्षेत्र शामिल हैं।

अमर उजाला की एक रिपोर्ट के अनुसार यूपी के डालीगंज, अंबेडकरनगर, माल, ककोरी, गोमतीनगर, बीकेट व सीतापुर में मई और जून में 14 बच्चियों की शादी कराने की बात सामने आई। इसमें से तीन की शादी करवा दी गई और बाकी को चाइल्ड लाइन, जिला बाल संरक्षण इकाई और बाल कल्याण समिति रोकने में सफल रही।

इसके अलावा तेलंगाना राज्य बाल अधिकार सुरक्षा आयोग के अनुसार हैदराबाद में पिछले तीन महीनों में 204 बाल विवाह के मामले सामने आए हैं। वहीं पश्चिम बंगाल में मध्य मार्च से बाल विवाह के अब तक कुल 500 मामले सामने आ चुके हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

क्या बताई जा रही है बाल विवाह के पीछे की वजह?

बात करते हैं कि इसकी वजह क्या बताई जा रही है। बाल विवाह जो कि कानूनन अपराध है और सरकार ने इसे रोकने के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 लागू किया था। इसके बावजूद बाल विवाह के मामले कम नहीं हो रहे और इस लॉकडाउन के दौर में तो इसके मामलों में और तेज़ी देखी गई है।

पश्चिम बंगाल बालक संरक्षण आयोग की सलाहकार मोमिता चटर्जी ने पीटीआई भाषा को इसकी वजह बताते हुए कहा कि कुछ लड़कियों की इसलिए शादी कर दी जाती है, क्योंकि परिवार वालों के पास उनका भरन पोषण करने के पैसे नहीं होते हैं।

उन्होंने आगे कहा कि इस लॉकडाउन के दौर में लोग इसलिए भी लड़कियों की शादी करने के लिए मज़बूर हुए हैं, क्योंकि इसका मतलब होगा की खाने वाला एक व्यक्ति कम हो गया।

यह मजबूरी नहीं भद्दी सोच का नतीजा है

इस समय बाल विवाह के जो भी कारण बताए-गिनाए जा रहे हैं वे मजबूरी से कहीं ज्यादा समाज की भद्दी मानसिकता और सोच का नतीजा है। बाल विवाह कोई नई बात नहीं है जिसे लॉकडाउन की आड़ में सही ठहराने की कोशिश की जा रही है।

यह आदिकाल से चली आ रही एक कुप्रथा से ज्यादा कुछ नहीं है जो कि कानूनन अपराध है लेकिन बावजूद इसके आज भी बाल विवाह धड़ल्ले से करे और करवाए जा रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बाल विवाह के मामलों में लड़कियों का आंकड़ा ज़्यादा पाया गया है। ये आंकड़ें लड़कियों के प्रति छोटी सोच और उनको बोझ समझने की मानसकिता का नतीजा है।

वहीं दूसरी ओर भले ही लड़कियों के मामले लड़कों से ज़्यादा पाए गए हों फिर भी बाल विवाह ना केवल लड़कियों के लिए, बल्कि लड़कों के भी जीवन से भी खिलवाड़ करना है।

इसे अगर लॉकडाउन से उभरी मज़बूरी का नाम ना ही दिया जाए तो बेहतर होगा, क्योंकि बाल विवाह करने के पाछे आर्थिक मंदी एक कारण है तो उससे भी बड़ा कारण लोगों में रूढ़िवादी सोच का होना, अंधविश्वास का होना और अशिक्षित होना है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

क्या बाल विवाह के लिए सरकार ज़िम्मेदार है?

इसमें कोई दो राय नहीं की देश की कमान सरकारों के हाथों में होती है, ऐसे में यह उन्हीं की ज़िम्मेदारी है कि वे इसका ख्याल रखें कि किसी भी तरह के अपराध, शोषण और कुप्रथा को रोका जाए। प्रशासनिक स्तर पर सोचें तो इसे रोकने का उपाय है कड़े कानूनों का होना, तो क्या सरकार ने बाल विवाह को लेकर कोई कड़े कानून नहीं बनाए?

बाल विवाह से जुड़े कानूनों पर गौर करें तो प्रशासन द्वारा बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 लाया गया जिसके अनुसार 18 वर्ष से कम आयु की लड़की और 21 वर्ष से कम आयु के लड़के की शादी करवाना कानूनन जुर्म है। यदि कोई ऐसा करता है तो ऐसे में गैर-जमानती कारवास का प्रावधान है।

साथ ही जो अभी कुछ महीने से बाल विवाह के मामले बढ़े हैं, इससे भी निपटने के लिए प्रशासन नियम बना रही है। मगर क्या सिर्फ नियम लागू कर देने भर से इस कुप्रथा को खत्म किया जा सकता है? क्योंकि यह विषय बस कड़े कानून बनाने तक का मामला नहीं है, बल्कि सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी सोच का भी मामला है।

ऐसे में सिर्फ सरकार के प्रयास करने से समस्या हल नहीं होगी। लोगों को भी पहल करनी पड़ेगी।

समाज को करनी होगी पहल 

सबसे ज़रूरी पहल व्यक्तिगत स्तर पर करने की ज़रूरत है। लोगों को ‘करनी कुछ और कथनी कुछ’ वाले फॉर्मूले को छोड़ना होगा, क्योंकि तेज़ी से बदलते समय में लोगों को पुराने चेहरे पर नया चेहरा पहनने की आदत हो गई है। ऐसा करने से बस चेहरा ही बदलता है इंसान की रूह वहीं रहती है।

दूसरी पहल करनी होगी जागरुकता को लेकर, ऐसी कई संस्थाएं हैं जो इस काम में लगी हुई हैं। बस ज़रूरत है तो उन्हें और अधिक प्रसोत्साहित करने की, क्योंकि बाल विवाह एक अपराध है जहां किसी और बेगुनाह को अपके अपराध की सज़ा सारी जिंदगी भुगतनी पड़ती है।

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