This post is a part of Periodपाठ, a campaign by Youth Ki Awaaz in collaboration with WSSCC to highlight the need for better menstrual hygiene management in India. Click here to find out more.
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तुम्हें याद होगा अपने पीरियड को प्यार से किसी और नाम से बुलाना। जैसे- मैं डाउन हो गई, डेट आ गई है, महीना आ गया है, लो मेरी मासी फिर से मिलने आ गई।
हम ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि पीरियड का नाम खुलकर नहीं लिया जाता, शर्म आती है। जब पेट कसकर ऐंठने लगता है, खून ज़्यादा बहने लगता है, यूं लगता है कि उल्टी हो जाएगी, तो तुम बस यही कहते हो, “नहीं यार, तबियत ठीक नहीं है।”
क्योंकि यह सब होना तो नॉर्मल होता है, है ना? लड़कियों को पीरियड होता है, दर्द भी होता ही है आखिर ज़िंदगी है, कोई साफ-सुथरा सैनिटरी पैड का विज्ञापन तो नहीं!
इसमें डिसकस करने की क्या बात है? पीरियड तब तक नॉर्मल ही कहलाएगा जब तक वो आएगा नहीं। यदि नहीं आया तो डिस्कशन लाज़मी है।
सच है ना? नहीं यार, इतना सिंपल भी नहीं है, तो चलो पीरियड्स की बात को शर्म से आगे बढ़ाते हैं।
आखिर नॉर्मल पीरियड किसे कहेंगे? हर एक को एक सा पीरियड तो होता नहीं है। हां, यह कह सकते हैं कि अलग-अलग मापों से हम एक ऐसा टेबल बना सकते हैं जिससे नॉर्मल पीरियड की एक विस्तृत परिभाषा मिल सके।
खून का भारी बहाव- 7 दिनों से लंबा चलने वाला पीरियड, ऐसा पीरियड जिसमें रक्त का बहाव आम पीरियड से दो या तीन गुना ज़्यादा भारी है। (तकनीकी शब्दों में 80 एम.एल. या 16 चमच्च से ज़्यादा ) खून के बड़े बड़े थक्के- क्लॉट्स का निकलना, जो ढाई सेंटीमीटर से बड़े हों। इतना खून बहना कि बाहर के कपड़ों पर अक्सर खून के दाग लग जाएं और पैड हर 2 घंटों में बदलना पड़े, 4 घंटों के बजाय।
थोड़ी बहुत पेट की ऐंठन या असुविधा एक पेनकिलर लेकर कोई सह भी ले मगर भयंकर दर्द जो सहा ना जाए, बार बार आए, जिससे हालत खराब हो जाएं उसे नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
औरतों से अक्सर कहा जाता है, “मुस्कुराकर झेल जाओ।” क्योंकि इसी का नाम ज़िंदगी है। पीरियड के दौरान दर्द को भी यूं ही देखा जाता है मगर लगातार होता दर्द जो असहनीय लगे, उसे डॉक्टर को दिखाना चाहिए, ना कि सहना।
तुम्हारा पीरियड कई वजहों से और कई तरीकों से भी अनियमित हो सकता है।
पेट से होना- अगर पीरियड एक हफ्ता या उससे भी ज़्यादा लेट है, तो हो सकता है कि तुम प्रेग्नेंट हो। प्रेगनेंसी किट से पता लगा सकती हो या डॉक्टर के पास जा सकती हो या दोनों तरीके आज़मा सकती हो।
वजन का बड़ी जल्दी घटना या बढ़ना भी एक वजह हो सकती है। लम्बे समय तक अत्यंत एक्सरसाइज़ करना या कुछ किस्म के गर्भ निरोधकों का इस्तेमाल। बर्थ कंट्रोल पिल की कुछ किस्में, शरीर में बैठाए गए कुछ गर्भ निरोधक और गर्भ निरोधक इंजेक्शन का इस्तेमाल, पीरियड कब आता और कब जाता है, उस पर असर कर सकता है।
हॉर्मोन में असंतुलन, रोग, बीमारी (इस पर अभी और चर्चा होगी), मूड में बहुत उतार चढ़ाव अगर पीरियड्स के साथ-साथ भयानक डिप्रेशन, चिंता या मूड का बहुत उतार-चढ़ाव होता है, तो इसे नॉर्मल नहीं मानना चाहिए।
उक्त किसी भी वजह से डॉक्टर के पास जाना सही माना जाएगा। इन सब परिस्तिथियों को सीरियसली लेना बेहतर है, क्योंकि ये किसी और गहरी समस्या के सूचक हो सकते हैं।
प्रॉब्लम कई प्रकार की हो सकती हैं इसलिए रिलैक्स हो जाओ, अक्सर प्रॉब्लेम्स का निदान भी होता है। तो यूं ही परेशान ना हो, क्योंकि परेशान होने से परेशानी और बढ़ेगी, डॉक्टर के पास जाओ।
लगभग 75% औरतों में इसके आसार नज़र आते हैं। ये तुम्हारे पीरियड के आने के कुछ दिन पहले शुरू होते हैं, अक्सर आसार भी हल्के फुल्के होते हैं। ऐसे, जो तुम्हारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की रेल को पटरी से उतार नहीं देते, तुम अपना काम-धाम बखूबी कर पाते हो। अगर ये हल्के-फुल्के नहीं हैं, तो इलाज की ज़रूरत पड़ सकती है।
पी. एम. एस. के आसार: हल्का फुल्का पी. एम. एस. थकान, छातियों को छुने पर हल्का दर्द, ऐंठन, फुंसियां, पेट का कस जाना या फिर दस्त लगना, पीरियड के कुछ दिन पहले भावनाओं का विस्फोट सा होना भारी पी. एम. एस: डिप्रेशन, मूड का पागलों सा उतार-चढ़ाव, चिंता, कस के दर्द और ऐंठन जो 2-4 दिनों का आराम मांगे।
2) प्री मेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर (पीरियड के होने के पहले भारी असंतोष)
ये पी एम एस का कभी-कभी घटने वाला पर कष्टमय रूप है, जो 3-8 % औरतों को होता है। प्री मेंस्ट्रुअल डिस्फोरिक डिसऑर्डर के आसार डिप्रेशन, खौफ के दौरे, आत्महत्या के ख्याल, रात को नींद ना आना, बार-बार रोना आना, पीरियड आने के कुछ 10 दिन पहले चिंता की लहर आदि।
3) एनीमिया/अरक्तता–
यानी खून में हीमोग्लोबिन प्रोटीन की कमी, जो आयरन/लौह के आभाव से होती है।
एनीमिया के आसार: थकान, ज़र्द त्वचा, चक्कर आना, सांस का रुकना, दिल का असाधारण रूप से तेज़ धड़कना, खासकर एक्सरसाइज के बाद, खून का भारी बहाव, बालों का झड़ना। कभी-कभार जो बहुत ऐनेमिक हैं, उसको बर्फ खाने की तलब होती है।
4) पोली सिस्टिक ओवेरियन डिसीस (पी सी ओ डी):
इसे पोली सिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम भी कहते हैं। ये एक आम हॉर्मोन सम्बंधित गड़बड़ी है, जिससे अंडाशय फूल सकते हैं और साथ में कई छोटे पुटुक (सिस्ट्स) बन जाते हैं। पीसीओडी के आसार अनियमित पीरियड, बहुत दर्द होना, मुंहासे होना, शरीर के बालों का बहुत बढ़ जाना, खासकर चेहरे के बालों का, सर के बालों का गिरना।
5) एंडोमेट्रिओसिस-
ये काफी दर्दनाक स्थिति हो सकती है और अक्सर इस रोग को ठीक से पहचाना ही नहीं जाता है। इसमें होता क्या है कि जो ऊतक तुम्हारे गर्भाशय के अंदर की एक परत है, वो गर्भाशय के बाहर बढ़ने लगता है या अंडकोष में या फैलोपियन ट्यूब में या कोख-पेल्विस के अंदर जो ऊतक की परत है।
एंडोमेट्रिओसिस के आसार पीरियड्स में दर्द होना, निष्फलता/इनफर्टिलिटी, भारी मात्रा में खून बहना, संभोग करने पर दर्द होना।
6) फिब्रोइड- तंतुमय-
गर्भाशय में या मटर के साइज़ के या संतरे के साइज़ के ट्यूमर हो जाते हैं। अक्सर ये कैंसर के कारण नहीं होते और इनका पता ही नहीं चलता है।
फिब्रोइड के आसार खून का भारी बहाव, लम्बे पीरियड, एक पीरियड से दूसरे पीरियड के बीच असाधारण खून का बहना, पेल्विस/कोख/पेडू में दर्द, कमर के निचले भाग में दर्द।
7) पेल्विक इंफ्लेमेटरी डिजीज़ : (पीआईडी)
पेल्विस- पेडू- का सूज जाना। ये बीमारी एक बैक्टीरिया-जीवाणु से होती है। इसकी शुरुआत अक्सर योनि में होती है फिर ये कोख के सारे ऑर्गन में फैलती है। अगर ये खून तक फैल गई तो ये खतरनाक हो सकती है, जान तक को खतरा हो सकता है।
पीआईडी के आसार पेट के ऊपरी या निचले भाग में दर्द, बुखार, उल्टी, सेक्स या पेशाब करते वक्त दर्द, खून का अनियमित रूप से बहना, योनि से बदबूदार बहाव।
8) टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (टी इस इस)-
कभी-कभी होने वाला खतरनाक संक्रमण। ये तब होता है, जब जीवाणु खाल पर घाव या कहीं टूटी चमड़ी के रास्ते खून में आ जाते हैं। अक्सर पीरियड के दौरान बहुत सोख लेने वाले टैम्पोन (टैम्पोन यानी फाहा जिसे पीरियड के दौरान खून सोखने के लिए योनी में बैठाया जाता है)। टी.एस.एस. से शरीर के अंग का काम करना रुक सकता है, इस से मौत भी हो सकती है।
टी इस इस के आसार अचानक तेज़ बुखार, ब्लड प्रेशर-रक्त चाप (ब्लड प्रेशर) का गिर जाना, सर दर्द, झटके, मसल्स- मॉस पेशियों में दर्द, सकपकाहट, हथेलियों और पाांव के तलबों में लाल चक्के।
जल्दी जल्दी इलाज बताओ
इन सब के लिए भिन्न इलाज हैं। अगर हर आसार के हिसाब से इलाज किया जाए, तो डिप्रेशन के लिए गोलियां हैं, दर्द के लिए पेन किलर्स हैं, पी एम एस, पी सी ओ डी और एंडोमेट्रिओसिस के लिए हॉर्मोन थेरेपी/उपचार है।
पी आई डी और टी ऐस ऐस के लिए शायद एंटीबायोटिक की ज़रूरत पड़े, एनीमिया के लिए आयरन की गोलियां और हालत बहुत खराब होने पर रक्त-आधान/ब्लड ट्रांसफ्यूशन। कुछ हालातों में फिब्रोइड के लिए ऑपरेशन की ज़रूरत पड़ सकती है।
प्लीज़ इलाज के लिए इंटरनेट पर निर्भर मत होना, स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलना। उसे डिसाइड करने देना कि तुम्हें आखिर क्या चाहिए।
यूं घबराने की ज़रूरत नहीं है। मूल रूप से स्वास्थ्य और महावारी रोज़मर्रा की स्वस्थ आदतों पर निर्भर है। पौष्टिक खाना खाना और नियमित रूप से व्यायाम करना तुम्हें स्वस्थ रखेगा और इससे पीरियड भी समय पर आएंगे।
अगर तुम्हें लगे कि तुम्हारे पीरियड वैसे नहीं हैं, जैसे होने चाहिए तो इंतज़ार मत करो। डॉक्टर के पास जाओ, जब आराम से रह सकते हो तो परेशानी में क्यों रहो?
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