Site icon Youth Ki Awaaz

कविता: “ना रोकें हमें वो छद्म मुस्कुराने से”

by Rupsa Nag

इरादे तो ना थे मिलने के हमारे

पर क्यों मिल जाते थे वो बहाने से?

 

था मज़बूत दिल से भी बहुत मैं

क्यों होश उड़ गए नज़रों के निशाने से?

 

चाहत भी थी, मुहब्बत भी थीा

दिल मुस्कुराने लगा खुद के तराने से,

 

फिर ना जाने क्या हुआ कि

वो सरकने लगे कुछ बेगाने से,

 

दिल को आहत किया करते रहे

वो बनकर जाने-जाने किन्तु अनजाने से,

 

कष्ट हुआ पर आंसू गिरा ना सका

कि अफसोस ना हो उन्हें इस दीवाने से

 

है दुआ कि हंसे और मुस्कुराए वे,

पर ना रोकें हमें वो छद्म मुस्कुराने से।

Exit mobile version