Site icon Youth Ki Awaaz

“जज साहब, न्याय की कुर्सी पर बैठकर एक महिला की इज़्जत भी आप नहीं कर सके”

हाल ही में बिहार के अररिया में सामने आए एक मामले में रेप सर्वाइवर और उसके दो मित्रों को सरकारी कामकाज में बाधा डालने के आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया। यह घटना तब हुई जब कचहरी में जज के सामने बयान लिए जा रहे थे।

वहीं, जज ने कचहरी में सर्वाइवर से कहा, “बदतमीज़ लड़की तुमको कोई तमीज़ नहीं सिखाया है? बता दें कि मामला ज़िला अररिया का है, जहां छह जुलाई को एक युवती के साथ गैंगरेप किया गया और उसके  बावजूद सर्वाइवर को 10 दिन की जेल भी काटनी पड़ी।

6 जुलाई को हमेशा की तरह उसका मित्र जिसने उसे मोटर साइकिल सीखाने का भरोसा दिलाया था, वो उसे कहीं और ले जाकर बीच में ही छोड़कर चला गया। युवती मदद के लिए चिल्लाती रही लेकिन वो नहीं लौटा, युवती के साथ गैंग रेप किया गया था।

इस घटना को पुलिस में दर्ज़ कराने की हिम्मत उसके मित्र तन्मय और कल्याणी (इन दोनों के घर युवती काम करती है।) ने दी लेकिन सरकारी कामकाज में दखल के आरोप में ये दोनों भी जेल में हैं।

रेप सर्वाइवर ने अपने इंटरव्यू में क्या कहा?

रेप सर्वाइवर ने अपने इंटरव्यू में बताया, “10 जुलाई को हमें पहले अररिया महिला थाना जाना थाल और उसके बाद जल के पास 164 का बयान दर्ज़ करवाने। हमें यह बताया गया था कि ये बयान 164 के अंतर्गत सबको देना होता है।”

रेप सर्वाइवर ने आगे बताया, “मुझे नहीं मालूम था कि वहां वो लड़का भी होगा जिसने मुझे उन लोगों के पास छोड़ा था। मैं उसे देखकर बुरी तरह घबरा गई थी और अनपढ़ होने की वजह से मेरे बयान में क्या लिखा है, ठीक-ठीक समझ नहीं पाई।”

वो आगे कहती हैं, “जब जज साहब ने साईन करने को कहा, तब मैंने असमंजस जताते हुए कहा कि मेरे साथ जो दीदी आई हैं, उन्हें बुला दीजिए वो पढ़कर सुना देंगी तो मैं साइन कर दूंगी। इतने ही में जज साहब आग-बबूला हो गए और बोले कि क्यों तुमको हम पर भरोसा नहीं है, बदतमीज़ लड़की तुमको कोई तमीज़ नही सिखाया है?”

रेप सर्वाइवर बताती हैं, “हमको बार-बार बदतमीज़ लड़की बुलाया जा रहा था और जज साहब कल्याणी दीदी से कह रहे थे कि तुम लोग इसको तमीज़ नहीं सिखाए हो और जब तन्मय भैया और कल्याणी दीदी ने कहा कि उसको बयान समझ नहीं आ रहा है, आप एक बार पढ़कर सुना दीजिए। तब जज साहब ने कहा, “तुमको दिखता नहीं है यहां कितना काम है।”

आपको बता दें कि वहां मौजूद लोग रेप सर्वाइवर का वीडियो बनाने लगे। यह भी कहा गया उन्होंने गाली देने के साथ-साथ बयान की कॉपी फाड़ी है, जिस कारण सबको जेल में डाल दिया गया।

अपने इंटरव्यू में रेप सर्वाइवर ने जो प्रश्न किए हैं, वे चिंतनीय हैं

पूर्वाग्रह की मानसिकता के साथ यह कैसा न्याय?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- फेमिनिज़्म इंडिया

बलात्कार की घटनाएं और उन पर सालों-साल चलते मुकदमे और पेशियां कुछ नई नहीं हैं। न्यायपालिका और तमाम लोग अपने बयानों में कहते हैं कि समाज में हुई ऐसी किसी भी घटना का अपराधी सर्वाइवर को नहीं मानना चाहिए लेकिन ज्यूडिशियल सिस्टम खुद ही अपने वक्तव्य के खिलाफ नज़र आ रहा है।

रेप सर्वाइवर के बारे में समाज़, परिवार सबकी ही धारणाओं में पूर्वाग्रह कूट कूटकर भरा होता है लेकिन जब एक जज, जिनको फैसला करने का अधिकार है, वो जजमेंटल हो जाएं और कहें कि क्या तुम्हें कुछ सिखाया नहीं गया? तब सर्वाइवर की मानसिक स्थिति क्या होती होगी?

जज यदि इस तरह की बयानबाज़ी करें तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि रेप सर्वाइवर की क्या स्थिति होगी। क्या यह समझना इतना कठिन है कि जो हुआ वह उसकी मर्ज़ी तो नहीं थी?

उसको अपने आपको स्वीकारने, समाज के साथ चलने में कितनी मुश्किल का सामना करना होता होगा और क्या ऐसी स्थिति में न्यायपालिका की आवाज़ बने बैठे कोई जज ये नहीं समझ सकते की यदि किसी सर्वाइवर के व्यवहार में सामंजस्य नहीं है, तो इसकी वजह उसकी बदतमीज़ी नहीं, बल्कि वो घटना है जिसका बोझ लेकर वो खड़ी है। क्या यह सवाल जज साहब से नहीं पूछना चाहिए कि आपकी घटिया मानसिकता का क्या इलाज है?

जब 1,46,201 रेप केस अदालत में पेंडिंग हैं, तो न्याय की आवाज़ बेमानी लगती है

ज्यूडिशियल सिस्टम का काम भरोसा दिलाना है ना कि ये कहना कि क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है। क्या न्यायपालिका का फर्ज़ सिर्फ और सिर्फ सबूतों के आधार पर फैसला करना है? क्या जज चाहे किसी भी घटना की सुनवाई के दौरान सर्वाइवर की मेंटल हेल्थ का ख्याल नहीं रख सकते? उन्हें समझना चाहिए कि कोई घटना उनके लिए महज़ एक बयान है लेकिन सर्वाइवर पक्ष के लिए कभी ना भरने वाला ज़ख्म!

एक रेप सर्वाइवर के लिए लड़ाई आसान नहीं होती, हो भी नहीं सकती। पहले तो उसके चरित्र का आंकलन किया जाता है फिर यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि यह तो होना ही था। इस घटना में ही एक जगह रेप सर्वाइवर ने कहा कि जब पेशकार ने मुझे बुलाया और मुझे देखकर कहा, “अरे हम तुमको पहचान गए, तुम साइकिल चलाती थी ना? हम बहुत बार तुमसे बोलना चाहते थे, तुम्हें टोकना चाहते थे मगर नही बोले।”

इस तरह की मानसिकता पूरे समाज में कोढ़ की तरह फैली है। किसी लड़की का आज़ादी से घूमना उसे ऐसी किसी भी घटना के चक्रव्यूह के केंद्र में ला पटकता है। साल 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1,46,201 रेप केस अदालत में पेंडिंग हैं। जबकि 1,17,451 केस ऐसे थे जो पिछले साल से लंबित पड़े हैं।

ऐसे में रेप सर्वाइवर्स को न्याय मिलने तक किन मानसिक यातनाओं से गुज़रना होता होगा आप अंदाज़ा लगा सकते हैं। जहां एक ओर हमारे न्यायतंत्र में न्यायिक प्रक्रिया निश्चित है, ठीक उसी तरह यह भी निश्चित होना चाहिए कि किसी अदालती प्रक्रिया में जज कि की हुई टिपण्णी क्या प्रभाव डाल सकती है।

यदि एक बयान समझाने पर जज अपना आपा खो सकते हैं, जबकि वह समझना उनका कर्तव्य है, तो उस सर्वाइवर की मानसिक स्थिति क्यों नहीं समझी जा सकती जिसे बदतमीज़ कहा जा रहा है। उम्म्मीद है कि इस तरह के स्टेटमेंट सामने ना आएं, जहां किसी की संवेदनाओं को चोटिल किया जा सके। अंत में यही कहना चाहूंगी कि काश न्याय की कुर्सी पर बैठकर जज साहब एक कम-से-कम एक महिला की इज़्जत ही कर लेते!

Exit mobile version