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क्या ओटीटी प्लेटफॉर्म्स तोड़ रहे हैं बॉलीवुड के स्टीरियोटाइप्स?

OTT Platforms

एक बार बॉलीवुड के बारे में सोच कर देखिए। अब उसमें किसी महिला किरदार के बारे में सोचिए। एक हिरोइन दिख रही होगी। जिसकी ज़िंदगी और ज़रूरतें एक हीरो के आस-पास सिमटी हुई नज़र आती हैं। एक आइटम सॉन्ग भी होगा। कुछ महिलााएं महंगी चमचमाती गाड़ियों के आस-पास भी दिख रही होंगी। बेशक बॉलीवुड में अक्सर महिला किरदारों के नाम पर यही ख्याल आते हैं।

अब जरा ओटीटी प्लेटफॉर्म के बारे में सोचिए। इस पर महिला किरदारों के बारे में सोचिए। हमारे देश से ही इन पर रिलीज़ होने वाले कंटेंट के बारे में सोचिए। क्या दिखा? विविधता, कई तरह के किरदार, पूरी की पूरी सीरीज़ या फिल्म में लीड रोल में होंगे।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: पिक्साबे

पिछले दिनों डिज्नी हॉटस्टार पर एक वेब सीरीज़ रिलीज़ हुई ‘आर्या’। मुख्य किरदार सुष्मिता सेन में हैं। उन्होंने हमेशा की तरह शानदार एक्टिंग की है और वेब सीरीज़ की जान डाल दी हैं। अब सवाल उठता है कि इसमें नया क्या है? दरअसल नया है महिला का मुख्य किरदार। नया है महिला किरदार के स्टीरियोटाइप की गैर-मौजूदगी और इसमें ओटीटी प्लेटफार्म की भूमिका भी नई है।

सिनेमा मतलब बॉलीवुड और बॉलीवुड मतलब स्टीरियोटाइप?

भारतीय सिनेमा का मतलब बॉलीवुड ही माना जाता है। इसके अलावा भी अलग-अलग भाषाओं के क्षेत्रीय सिनेमा हैं और उनके अपने इसी से मिलते-जुलते नाम हैं लेकिन इन सबमें सबसे लोकप्रिय बॉलीवुड है। इसे भारतीय सिनेमा की पहचान के रूप में देखा जाता है।

लेकिन इसी बॉलीवुड ने सालों से कुछ ऐसे चलन बना दिए हैं जो आज भी व्यवसायिक सिनेमा में जस के तस हैं। बीच-बीच में इनके अपवाद आते रहते हैं लेकिन उनकी संख्या भीड़ में इतनी कम है कि नज़र आना मुश्किल है।

इनमें एक स्टीरियोटाइप है कि फिल्म का मुख्य किरदार सिर्फ और सिर्फ कोई पुरुष ही होगा। फिर चाहे वो कितने भी बड़े बैनर की फिल्म हो। उनके अधिकरतर फिल्मों का यही पैटर्न है।

साल 2017 में आईबीएम रिसर्च, इन्द्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी, दिल्ली और दिल्ली टेक्नीकल यूनिवर्सिटी ने मिलकर 4000 बॉलीवुड फिल्मों का विश्लेषण किया। इस विश्लेषण में बताया गया कि बॉलीवुड फिल्मों में महिलाओं को सफल पुरुष किरदारों से जुड़ा हुआ बताया जाता है लेकिन कभी भी महिला किरदार को आत्मनिर्भर तरीके से सफल नहीं दिखाया जाता।

ओटीटी बॉलीवुड के लिए नए रूप में उभरकर आया है सामने

इधर पिछले दो-तीन सालों में ओटीटी प्लेटफॉर्म उभरकर सामने आया है। कोविड-19 की वजह से हुए लॉकडाउन में तो इसे थियेटर तक का ओहदा मिल गया है। हाल-फिलहाल में इस पर कई ऐसी वेब सीरीज़ और फिल्में भी आई हैं जिनमें मुख्य किरदार महिलाएं हैं। उसमें भी पिछले कुछ सालों में ज़्यादा तेज़ी आई है।

चाहें वह साल 2016 में नेटफ्लिक्स पर आई ‘लस्ट स्टोरीज़’ हो या हाल ही में आई ‘शी’ या जैकलीन फर्नांडिस की फिल्म ‘मिसेज सिरियल किलर’ हो या अमेज़ॉन प्राइम के वेब सीरीज़ ‘फोर मोर शॉट्स हो’ या ‘मेड इन हिवेन’ हो या ‘पुष्पावल्ली’ हो या हाल ही में स्वरा भास्कर की ‘रसभरी’ हो। इसके अलावा डिज्नी हॉटस्टार पर आई सुष्मिता सेन की वेब सीरीज ‘आर्या’ हो।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: पिक्साबे

यह लिस्ट अभी और भी लंबी है। इन सभी फिल्मों और वेब सीरीज़ की कहानी और पटकथा अलग है लेकिन एक बात जो इन सब में कॉमन है, वो है मुख्य किरदार में महिला का होना।

यह इसलिए भी खास है, क्योंकि ओटीटी प्लेटफॉर्म के चलन से पहले महिला मुख्य किरदारों का दायरा टीवी पर आने वाले धारावाहिकों तक सीमित था लेकिन वहां भी दिक्कत यही रही है कि किरदार सास-बहु के स्टीरियोटाइप से कभी बाहर ही नहीं निकल पाए।

इसे ऐसे समझिए कि धारावाहिक का नाम भले ही ‘अफसर बिटिया’ हो लेकिन कहानी सास-बहु के इर्द-गिर्द ही सिमट कर रह जाती है। अब सालों से बनी इस खाई को पाटने का काम ओटीटी प्लेटफार्म पर आने वाली फिल्में और वेब सीरीज़ कर रहे हैं।

क्या ओटीटी पर सब अच्छा-अच्छा है?

इस सवाल का जवाब है ‘नहीं’। इन प्लेटफॉर्म पर आरोप लगते रहे हैं कि प्रीमियम कंटेंट के नाम पर गालियां, जबरन की सेक्शुअलिटी और हिंसा से भरे कंटेंट को भी धड़ल्ले से परोसा जा रहा है।

इसका तर्क दिया जाता है कि पत्रिकाओं में जिस मस्तराम और सरिता भाभी की कहानियों को सभ्य समाज साहित्य का छिछलापन कह देता है, वही समाज ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ऐसे कंटेंट को समाज का आईना बता रहा है।

इसके पीछे वजह बताई जाती है कि इन प्लेटफॉर्म पर किसी तरह का सेंसरशिप का ना होना। यहीं वजह है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दिखाए जा रहे कंटेंट को लेकर सेंसरशिप की मांग भी तेज़ी से उठने लगी है।

ओटीटी ने महिला किरदारों के स्टीरियोटाइप को तोड़ा है

हाल ही में इस मांग ने तब और तेज़ी पकड़ ली, जब अमेज़ॉन प्राइम पर ‘रसभरी’ के एक दृश्य को लेकर प्रसून जोशी ने आपत्ति जताई। प्रसून जोशी इस समय केंद्रीय फिल्म प्रसारण बोर्ड के अध्यक्ष हैं। दूसरी तरफ प्रसून जोशी की आपत्ति का भी विरोध होने लगा। इसके पीछे तर्क दिया गया कि ऐसे दृश्यों को दिखाने का मकसद समाज की सोच को ही समाज के सामने रखना है।

ऐसे में, ओटीटी प्लेटफॉर्म को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इसने मुख्य धारा के सिनेमा और टीवी से हटकर महिला किरदारों में रंग भरा है। उन्हें घिसे-पिटे किरदारों के खांचे से बाहर निकाला है।

समीक्षाएं जरूरी हैं। आलोचनाएं होती रहनी चाहिए लेकिन इन सबके लिए बराबर दर्जे के किरदारों का होना पहली शर्त है। इन प्लेटफॉर्म्स पर मौजूद वेब सीरीज़ और फिल्मों के कंटेंट और उनके बाकी तकनीकी पहलूओ पर भले ही अलग-अलग राय हो सकती है लेकिन इस चर्चा के लिए ऐसी फिल्मों का होना ज़रूरी है।

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