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CBSE: नागरिकता, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद जैसे विषयों को पाठ्यक्रम से हटाना कितना ठीक?

हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएससी) ने कक्षा 9 से 12 तक के सिलेबस में कटौती की है। बताया जा रहा है यह निर्णय कोविड-19 से उत्पन्न हुई परिस्थतियों को ध्यान में रखकर लिया गया है।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने इस विषय में कहा,

“कोरोना के कारण उत्पन्न हुए मौजूदा हालात को देखते हुए सीबीएससी के सिलेबस में कक्षा 9 से 12 तक 30 प्रतिशत कटौती करने का निर्णय लिया गया है।”

प्रतीकात्मक तस्वीर

कई महत्वपूर्ण विषयों की हुई है कटौती

जैसा कि हम सब जानते हैं। इस महामारी में स्कूली सत्र को आगे बढ़ा दिया गया है। साथ ही स्कूल खुलने की संभावनाओं पर अब भी संशय बना हुआ है। इसके चलते सीबीएससी ने अपने सिलेबस में 30% की कटौती की है।

धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रवाद जैसे अध्यायों को मौजूदा सत्र से हटा लिया गया है। यह निर्णय सिर्फ इस सत्र तक के लिए तय है। पाठ्यक्रम में की गई इस कटौती का असर संघीय ढांचा, राज्य सरकार, नागरिकता, राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्ष जैसे अध्यायों पर होगा।

साथ ही इस कटौती का नतीजा यह है कि अब कक्षा 12वीं के छात्रों को भी भारतीय अर्थव्यवस्था का बदलता स्वरूप, नीति-आयोग, जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण विषय नहीं पढ़ाए जाएंगे।

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इतिहास, राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र के विषयों में हुई है भारी कटौती

कक्षा 11वीं के राजनीति शास्त्र से संघवाद, नागरिकता, राष्ट्रवाद, और निरपेक्षता जैसे अध्यायों को पूरी तरह हटा लिया गया है। वहीं कक्षा 12वीं से भारत के विदेशी देशों से सम्बन्धों पर आधारित चैप्टर पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, म्यामांर जैसे विषय को हटा लिया गया है।

इसके अलावा कक्षा 10 के सिलेबस से लोकतंत्र और विविधता, धर्म, जाति, लोकतंत्र के लिए चुनौती जैसे अध्यायों को हटा लिया गया है।साथ ही कक्षा 9 के राजनीति शास्त्र से लोकतांत्रिक अधिकार और ‘भारतीय संविधान की संरचना’ जैसे चैप्टर तक को हटा दिया गया है।

इसपर केंद्रीय मंत्री निशंक ने कहा, “कोरोना के कारण पूरे देश में उत्पन्न हुए असाधारण स्थिति को देखते हुए सीबीएससी को सलाह दी गई है कि वह अपने पाठ्यक्रम का पुनर्निधारण करें और सिलेबस को कम किया जाए।”

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पड़ सकता है छात्रों पर इसका बुरा प्रभाव

वहीं जानकारों ने इसपर सवाल भी उठाए हैं। सीबीएसई के इस कदम पर NCERT के पूर्व डायरेक्टर कृष्णकुमार ने कहा,

सरकार ने जिन चैप्टरों को हटाने का फैसला किया है उसमे अंतर्विरोध हैआप संघवाद (Federalism) के चैप्टर को हटाकर संविधान (Constitution) बच्चों को पढ़ाएं, यह कैसे होगा? आप सोशल मूवमेंट्स के चैप्टर को हटाएं और इतिहास पढ़ाएं, यह कैसे होगा? इतिहास सोशल मूवमेंट से ही तो निकलता है। यह पहल बच्चों में रटने की प्रकृति को बढ़ावा देगी।

उन्होंने सवाल उठाया कि किसी भी चैप्टर को डिलीट करने की क्या ज़रूरत है? एग्ज़ाम पर आधारित शिक्षा व्यवस्था क्यों लागू करने की कोशिश हो रही है? एग्ज़ाम लेने के लिए सीबीएसई की किताब से किसी चैप्टर को हटाना क्यों ज़रूरी है? कितना विचित्र है ना यह, कोविड-19 ने तो लगता है जैसे सबकी कलई खोल दी है।

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किसी भी देश की आत्मा उसका संविधान होता है और इतिहास उसकी जड़ें, वहीं आर्थिकी उसको पोषण देने वाला पानी लेकिन हमने तो जैसे तय कर लिया है हम सब जड़ें हिला कर ही दम लेंगे।

इतने महत्वपूर्ण बातों को हटाना कितना ठीक है?

हां, आपका सोचना ठीक है। आप कह सकते हैं कि भला एक सत्र में कुछ अध्याय हटा लेने से क्या बिगड़ जायेगा! लेकिन क्या धर्मनिपेक्षता, राष्ट्रवाद, संघवाद, नागरिकता,  इतने गौण विषय हैं जिन्हें किसी कांट-छांट के तहत दूध से मक्खी की तरह निकाला जा सकता है?

यदि इतिहास में यह लिखा ही नहीं होगा की विविध जातियां, धर्म और सम्प्रदाय क्या हैं? तब विविधता में एकता की परिभाषा किसी बच्चे द्वारा कैसे गड़ी जाएगी?

मैं भी थोड़ी बहुत शिक्षक की भूमिका निभा लेती हूं और एक शिक्षक के नाते यदि मैं अपने छात्रों को बता ही नहीं सकती कि उनके मौलिक अधिकार क्या हैं? तब वे अपने अधिकारों की सजगता के लिए किसकी तरफ देखें?

यदि आप छात्रों को राष्ट्रवाद नहीं पढ़ाएंगे तब आप उन्हें कैसे परिभाषित करेंगे की राष्ट्रवाद की ज़रूरत हमें क्यों पड़ी? संविधान की जब उन्हें जानकारी ही नहीं दी जाएगी तब उसे भारत की आत्मा आप कैसे कह पाएंगे? आज हम धर्म, जाति, सम्प्रदाय, लिंग, रंग-रूप कितने खांचों में बंटे हैं और लगातार बंटते चले आ रहे हैं, उन्हें पता ही नहीं होगा की इन सब में क्या फर्क हैं?

ऐसे बनेंगे विश्वगुरू?

यह क्यों बुरा है? क्योंकि हम उनसे संघवाद को काट रहे हैं और यह सब बहुत मोटे-मोटे विषय है गहराई में जाकर ही हम इनकी महत्ता को समझ सकते हैं। यूं भी कक्षा 9 से 12 के बाद छात्रों की अभिरुचि अलग होती हैं जाने कौन किस विषय और क्षेत्र को चुन ले? तब हमें उन्हें इन सबके महत्व को समझाने का मौका ही नहीं मिलेगा कि इन सबकी ज़रूरत क्यों थी और आगे भी क्यों रहेगी?

विश्वगुरु बनने के लिए वैश्विक ज्ञान और समीक्षा की ज़रूरत होती है लेकिन जब हम अपने ही देश के आंदोलन, आर्थिकी और इतिहास के पन्ने कतर दिए जाएं तब आप क्या ही बन पाएंगे?

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