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छत्तीसगढ़ के आदिवासियों द्वारा मनाया जाने वाला भोजली पर्व

हमारे छत्तीसगढ़ में कई पर्व मनाए जाते हैं, जिनमें से एक है भोजली पर्व। यह अगस्त के महीने में मनाया जाता है। इसमें सभी वर्ग की महिलाएं, बुज़ुर्ग और बच्चे शामिल होते हैं। इस पर्व पर छत्तीसगढ़ के भोजली लोक गीत गाए जाते हैं।

ग्राम बिंझरा के शिवसेवक नामक निवासी जिनकी उम्र 50 साल है, हमें भोजली पर्व के बारे में विस्तार से बताते हैं। वह बताते हैं,

कोरबा ज़िले के कई जगहों में भोजली पर्व मनाया जाता है लेकिन अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नियमों से मनाया जाता है।

भोजली असल में गेहूं से निकला हुआ पौधा होता है। सभी लोग भोजली को देवी का रूप मानते हैं। भोजली पर्व में इस पौधे की पूजा अच्छे सेहत के लिए की जाती है।

ऐसे शुरू होता है यह पर्व

इस पर्व को सभी बड़े धूम-धाम से मनाते हैं। भोजली बोने के लिए सबसे पहले कुम्हार के घर से खाद-मिट्टी लाई जाती है। खाद-मिट्टी कुम्हार द्वारा पकाए जाने वाले मटके और दीए से बचे “राख” को कहा जाता है। भोजली पर्व का यह नियम है कि खाद-मिट्टी कुम्हार के घर से ही लाया जाए।

चुरकी और टुकनी (टोकरी)

इसके बाद महतो के घर से चुरकी और टुकनी (टोकरी) लाई जाती है। महतो गाँव या समाज के सबसे वृद्ध और सम्मानित व्यक्ति होते हैं। इसके बाद राजा के घर से गेहूं लाया जाता है। राजा बैगा को कहते हैं, जो गोंड़ समुदाय से होते हैं।

इस पर्व पर वे देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। गेहूं को सुबह पानी में भिंगोया जाता है फिर शाम को गेहूं निकालकर चुरकी और टुकनी में डाला जाता है। गेहूं वाले इस टोकरी में फिर खाद को डाला जाता है। पांच दिनों में ही गेहूं से पौधे (भोजली) निकलकर बड़े हो जाते हैं।

बैगा नौ दिनों तक भोजली के रूप में देवी-देवताओं की पूजा और प्रार्थना करते हैं। लोग मानते हैं कि भोजली के नौ दिनों तक पूजा करने से देवी-देवताएं गाँव की रक्षा करेंगे।

नौ दिन तक गाँव में उल्लास

नौ दिनों के भजन-कीर्तन में लोक गीत गाए जाते हैं। इन्हें भोजली गीत कहते हैं और ये कुछ इस तरह से होते हैं,

देवी गंगा देवी गंगा लहर तिरंगा हो लहर तिरंगा हमरो भोजली दाई के भिगे आठों अंगा आहो देवी गंगा गाना।

इन्हें लोग उत्साह से गाते और बाजे बजाते हैं। नौवें दिन के बाद भोजली का विसर्जन किया जाता है।

विसर्जन के दिन पूरा गाँव भोजली गीत गाते हुए, अपने-अपने भोजली को पकड़कर नाचते हुए घूमते हैं। विसर्जन के लिए एक साथ नदी जाते हैं। पूरा गाँव नदी पर गाँव की रक्षा के लिए प्रार्थना करता है।

नारियल फोड़कर भोजली को नदी में विसर्जन कर देते हैं। इसके बाद सभों को प्रसाद दिया जाता है फिर सभी लोग अपने-अपने घर लौट जाते हैं।

भोजली पर्व छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के लिए महत्वूर्ण त्यौहार है। इसमें कुम्हार से लेकर बैगा, सबकी भागीदारी और अहमियत को उजागर किया जाता है। यह नए और सुरक्षित जीवन का भी जश्न है।

भोजली लोक गीत लोगों में नया उत्साह भर देता है। अलग जगहों पर इसे अलग रस्मों से मनाया जाता है, जो आदिवासियों की विभिन्नता को दर्शाता है।

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लेखिका के बारे में- वर्षा पपुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती है। पेड़-पौधों की जानकारी रखने के साथ-साथ वह उनके बारे में सीखना भी पसंद करती हैं। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।

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