This post is a part of Periodपाठ, a campaign by Youth Ki Awaaz in collaboration with WSSCC to highlight the need for better menstrual hygiene management in India. Click here to find out more.
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डेवेक्स नाम की एक वेबसाइट ने अभी हाल ही में एक आर्टिकल की हेडिंग में लिखा “Opinion: Creating a more equal post COVID-19 world for people who menstruate.” इस हैडिंग का मतलब है कि कोविड-19 के बाद ऐसी दुनिया का निर्माण जिनमें उन लोगों को समानता मिले जिन्हें पीरियड्स होते हैं।
इस हैडिंग पर जेके रोलिंग ने व्यंग्यात्मक टिप्पणी करते हुए लिखा कि पीरियड्स जिनको होते हैं उन्हें ‘लोग’ नहीं बल्कि ‘महिला’ कहते हैं। इस एक उदाहरण से यह बात बखूबी मालूम हो जाती है कि अधिकांश लोग आज भी ये मानते हैं कि पीरियड्स सिर्फ महिलाओं को ही होता है।लोगों को इस बात का आभास ही नहीं है कि पीरियड्स महिलाओं के अतिरिक्त ट्रांस जेंडर और नॉन-बाइनरी लोगों को भी होता है।
14-15 साल की उम्र में लड़कियों में बहुत से हार्मोनल एवं शारीरिक बदलाव होते हैं। जिससे हमें इस बात का आभास होने लगता है कि किसी महिला के पीरियड्स आने की अवस्था हो गयी है लेकिन ट्रांसजेंडर या फिर नॉन-बाइनरी लोगों के बारे में हमें यह चीज़ें पता ही नहीं है। इसकी वजह से उन्हें बहुत सारी परेशानियां झेलनी पड़ती है।
Youth Ki Awaaz और WSSCC के सर्वे में यह बात पता चली कि 31 प्रतिशत लोगों को यह ज्ञात ही नहीं है कि ट्रांसजेंडर या फिर नॉन बाइनरी लोगों को भी माहवारी होती है। जबकि 47 प्रतिशत ने इसे सिर्फ महिलाओं का मुद्दा माना है।
महिलाओं के बारे में भी आज लोग पीरियड्स पर खुलकर बात नहीं करते हैं। आज भी पीरियड्स को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां प्रचलित हैं। ऐसे में, जिन लोगों के बारे में अधिकांश लोग अनभिज्ञ होते हैं कि इन्हें भी पीरियड्स होता है, उनके सामने आने वाली मुश्किलों को आसानी से समझा जा सकता है।
ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी लोग पहले से ही अपनी पहचान की समस्या से जूझ रहे हैं। अधिकांश तो भेदभाव के भय से अपनी पहचान बताने से कतराते रहते हैं। ऐसे में, पीरियड्स के समय होने वाली समस्या पर बात करना उनके लिए कत्तई सहज नहीं होता है।
अधिकांश ट्रांस जेंडर और नॉन-बाइनरी लोगों को शुरूआत में तो पता ही नहीं होता है कि उन्हें भी भविष्य में पीरियड्स की समस्या हो सकती है। इसका एक बड़ा कारण है कि हमने पीरियड्स को सिर्फ महिलाओं से सम्बंधित कथा के रूप में गढ़ दिया है। यही कारण है कि हमने ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी लोगों के लिए पीरियड्स के विषय को अनदेखा कर दिया।
इससे इन लोगों के सामने अनेक समस्याएं मुहं बाए खड़ी हो गई हैं। ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी लोगों को पीरियड्स आने पर सबसे बड़ी मुश्किल पीरियड्स से सम्बंधित सामान को लाने में होती है। पीरियड्स से सम्बंधित सामान को दुकानों पर महिलाओं के उत्पाद के रूप में माना जाता है। ऐसे में, इन्हें उन उत्पादों को लेते समय अपनी पहचान ज़ाहिर होने का डर बना रहता है।
इसके साथ ही सार्वजनिक जगहों पर बने शौचालय सिर्फ महिलाओं और पुरुषों के रूप में वर्गीकृत रहते हैं। कभी-कभी महिलाओं के लिए मुफ्त में रखे गए पैड्स या फिर टैम्पोन आदि का प्रयोग करने के लिए महिला शौचालय में जाना आवश्यक होता है।
चूंकि इन ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी लोगों की कोई पहचान नहीं होती है, साथ ही समाज के ताने-बाने के कारण ये अपनी पहचान बताना भी नहीं चाहते हैं। ऐसे में, वे उन मुफ्त के पीरियड्स उत्पादों के प्रयोग से भी वंचित रह जाते हैं।
Youth Ki Awaaz और WSSCC द्वारा किए गए सर्वेक्षण में 5 ट्रांसजेंडर्स में से 2 लोगों को यह लगता है कि पीरियड्स को सिर्फ महिलाओं की समस्याओं के रूप में ही देखा जाता है। वहीं इसी सर्वे में 28 नॉन-बाइनरी में से 13 ने भी यही बातें कही कि पीरियड्स को सिर्फ महिलाओं से सम्बंधित मुद्दा माना जाता है।
इस आधार पर हम यह मान सकते हैं कि इन लोगों को यह बात बखूबी मालूम है कि पीरियड्स की उनकी अपनी समस्याएं हैं लेकिन इन्हें महिलाओं तक ही सीमित कर दिया गया है। अभी हमारे यहां कुछ सालों पहले से ही महिलाओं के पीरियड्स पर चुप्पी टूटनी शुरू हुई है।
ऐसे में, ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी लोगों के पीरियड्स के विषय में बाते करने में कितनी मुश्किलें आ सकती हैं, इसका अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है लेकिन फिर भी हमें प्रयास करने होंगे।
सबसे बड़ी आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे लोगों को खुद बाहर आकर समाज से डरे बिना अपनी पहचान बतानी होगी। जब तक वे अपनी पहचान छुपाते रहेंगे तब तक इनकी समस्याओं का हल मुश्किल ही रहेगा। हमें भी जागरूकता फैलाते हुए पीरियड्स सम्बन्धी उत्पादों को सिर्फ महिला से सम्बंधित उत्पाद नहीं मानना चाहिए।
जिस तरह से किसी आवेदन फॉर्म में अब लिंग की पहचान के रूप में महिला और पुरुष के साथ अन्य का विकल्प रहता है और हम अब फार्म में इस विकल्प को देखकर असहजता नहीं महसूस करते, उसी तरह सार्वजनकि स्थानों पर बनने वाले शौचालयों में महिला और पुरुष के अतिरिक्त ट्रांसजेंडर और नॉन बाइनरी लोगों के लिए अन्य नाम से एक अलग शौचालय भी होना चाहिए।
शौचालय ही क्यों मुझे लगता है जहां भी लिंग की बात आए वहां इनके लिए अन्य का विकल्प ज़रूर होना चाहिए ताकि ये लोग अन्य समस्याओं के साथ-साथ पीरियड्स के दौरान कम-से-कम मुश्किलों का सामना करें। हालांकि ट्रांसजेंडर और नॉन-बाइनरी लोगों के विषय में बन चुकी धारणा को बदलने में और समस्याओं को हल करने में समय लगेगा लेकिन हमें इसकी शुरूआत करनी होगी।
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