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कोरोना संक्रमण के बाद क्या हम ऑनलाइन क्लासेज़ को जारी रख पाएंगे?

वर्तमान समय में देशभर के सभी शिक्षण संस्थान पूरी तरह से बंद हैं, जो ज़रूरी भी है। शायद समय की मांग है शिक्षण संस्थानों को हमें बंद रखना ही होगा मगर कई लोग चाहते हैं कि हमें जनरल प्रमोशन देकर प्रमोट कर दिया जाए। वहीं, कुछ लोग चाहते हैं कि ना तो संस्थाएं खुलें और ना ही परीक्षाएं हों। 

धार्मिक स्थलों की तर्ज़ पर शैक्षणिक संस्थानों को भी खोलने की बहस

कई शिक्षक भी चाहते हैं कि संस्थाओं को बंद रखा जाए। खासकर वे शिक्षक, जिन्हें रेगुलर वेतन मिल रहा है, जो शासकीय विभागों में हैं या जो प्राइवेट नहीं है। जो प्राइवेट हैं, वे चाहते हैं कि खोला जाए और कुछ प्रतिबंधों के साथ सोशल डिस्टेन्स के तहत उन्हें ही अनुमति दी जाए। जैसे- धार्मिक स्थल या रेस्टोरेंट को दी गई, यह एक अलग बहस है।

बहरहाल, संस्थानों को खोलने की मज़ूरी मिले या नहीं मगर एक बात तय है कि इस समय देश में सभी लोगों की शिक्षा प्रभावित हो रही है। चाहे प्राइमरी स्कूल एजुकेशन हो या हायर एजुकेशन, इससे निपटने के लिए अलग-अलग स्तर पर सरकारों और शिक्षकों द्वारा अलग-अलग तरीके चलाए जा रहे हैं। 

आप देखते हैं कि ऑनलाइन क्लासेज़ आयोजित की जा रही हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से लेकर NCERT, दिल्ली सरकार या राज्य सरकारें टीवी, वीडियो या IVRS द्वारा क्लास लेकर बच्चों से जुड़ने की कोशिश की जा रही है।

ऑनलाइन क्लासेज़‌ के लिए ज़रूरी है घर में हो डिवाइस

प्रतीकात्मक तस्वीर।

ऑनलाइन क्लासेज़ के जो आंकड़े निकलकर आ रहे हैं, वे बताते हैं कि सिर्फ 30 से 40% बच्चे ही इन चीजों से जुड़ पा रहे हैं। शेष 10% लगभग ऐसे हैं, जो शिक्षक के संपर्क में तो हैं लेकिन वे किसी कारण से असमर्थता जताते हैं।

असमर्थता जताने वालों में से किसी का कहना है कि हमारे पास इंटरनेट नहीं है, किसी का कहना स्मार्टफोन नहीं है, किसी का कहना एक ही फोन है, जो पापा के पास है और वो काम पर चले जाते हैं। वहीं, किसी का कहना है कि एक फोन है लेकिन हम चार भाई-बहन हैं, उनमें जो बड़े हैं वही अटेंड कर पाते हैं।

कुछ जगहों‌ पर शिक्षक से नहीं हो पाता संपर्क

इनके अलावा दिल्ली जैसे शहरों पर यदि गौर करें तो कई बच्चे ऐसे हैं, जिनका शिक्षक से संपर्क नहीं हो पा रहा। दूसरे बच्चों से पूछने पर पता चलता है कि वे गाँव चले गए हैं। कुछ लोग कहते हैं कि शायद अब वे नहीं आएंगे। कुछ लोगों से गाँव में संपर्क हो पाया तो वे कहते हैं कि हम आएंगे मगर अभी नहीं दीपावली के बाद।

इसके अलावा मध्य प्रदेश, राजस्थान और छतीसगढ़ जैसे कई राज्यों की ऐसी स्थिति है कि वहां बच्चों को किसी माध्यम से नहीं जोड़ा जा सका। अब बड़ी चुनौती है कि बच्चों को आखिर कैसे पढ़ाया जाए?

निश्चित रूप से शिक्षक हो या समाज, सभी के लिए बड़ी चुनौती यह है कि इस समय कुछ ना कुछ हल निकाला जाना आवश्यक है। अन्यथा कहीं ना कहीं कुछ बच्चे बहुत पीछे हो जाएंगे।

प्राइवेट स्कूलों में चल रहे हैं क्लासेज़

प्राइवेट स्कूल में ऑनलाइन क्लासेज़ करने वाले बच्चों का अनुपात 85% से भी ज़्यादा है। उसका कारण कहीं न कहीं पेरेंट्स ही हैं, क्योंकि वहां अधिकांश पेरेंट्स संसाधन से संपन्न हैं। रही बात जो गरीब तबके से हैं, वे अवेयर हैं। यहां धीरे-धीरे पेरेंट्स में और बच्चों में जागरूकता आती है मगर वहां शिक्षक कहते हैं कि उन्हें वेतन नहीं मिल पा रहा है समय पर।

भले ही बच्चों द्वारा स्कूलों की फीस दी गई हो, फिर भी शिक्षक का वेतन समय पर नहीं मिल पा रहा है। वे बेचैन हैं कि संस्थान खोल दिए जाएं।

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