कोरोना संक्रमण के मुश्किल भरे दौर में संसाधनों तक युवाओं की सीमित पहुंच कैसे उनके बेहतर भविष्य की तमाम संभावनाओं के लिए मुश्किलें पैदा कर रहा है और किस तरह अपने स्किल को अपग्रेड कर बेहतर भविष्य की कल्पना की जा सकती है, इसी बारे में बुधवार रात आठ बजे फेसबुक लाइव के ज़रिये बेहतरीन पैनलिस्टों की मौजूदगी में Youth Ki Awaaz पर बातचीत की गई।
यूनिसेफ इंडिया और YuWaah की साझेदारी में शुरू की गई मुहिम #ReimagineTogether के तहत फेसबुक लाइव के दौरान मौजूद थीं यूनिसेफ इंडिया रिप्रेजेंटेटिव डॉ. यास्मीन अली हक, सुप्रिया पॉल (को-फाउंडर, जोश टॉक्स), सुनीता संघी, (सीनियर अडवाइज़र MSDE). वहीं, नॉर्थ PWC के मैनेजिंग पार्टनर नील रतन और एडवर्टाइज़िंग प्रॉफेशनल नील बनर्जी भी चर्चा में शामिल थे। फेसबुक लाइव को मॉडरेट कर रहे थे YKA हिन्दी के संपादक प्रशांत झा।
चर्चा के दौरान यूनिसेफ इंडिया रिप्रेज़ेंटेटिव डॉ. यास्मिन अली हक ने कहा, “एजुकेशन, स्किल डेवलपमेंट और एम्प्लॉयमेंट के अवसर पर यूनिसेफ लगातार काम कर रही है। अपस्किलिंग और रिस्किलिंग के ज़रिये युवा बेहतर कल की उम्मीद कर सकते हैं।”
वहीं, सुनीता संघी (सीनियर अडवाइज़र MSDE) ने कहा, “कोरोना महामारी की वजह से बहुत सारे सेक्टर खत्म हो चुके हैं। लोगों के लिए मौजूदा वक्त के साथ-साथ आने वाले कल के लिए भी रोज़गार की तलाश करना बेहद मुश्किल होने वाला है। हम तकनीक में सुधार की बात कर रहे हैं मगर हमें इसके और आयामों पर बात करने की ज़रूरत है।”
उन्होंने कहा, “हमें यह सुनिश्चित करना है कि हर प्रकार के स्किल्स पर बात हो। इन चीज़ों को बड़े पैमाने पर शिक्षा व्यवस्था में भी शामिल करना होगा। उदाहरण के तौर पर भारत स्किल पोर्टल की बात की जा सकती है, जहां ऑनलाइन लर्निंग का काम शानदार तरीके से चल रहा है।”
जोश टॉक्स की को-फाउंडर सुप्रिया पॉल ने कहा, “लोगों को पता ही नहीं है कि उन्हें करना क्या है। उनको उनके एसपेरेशन्स के बारे में भी पता नहीं है। अगर मुझे पता ही नहीं है कि इस स्किल को सीखने से रोज़गार की क्या संभावनाएं हैं, फिर तो कोई फायदा नहीं है। बहुत सारी संस्थाएं तकनीकी ट्रेनिंग पर काम कर रही हैं मगर लोगों में आत्मविश्वास बढ़ाने की ज़रूरत है। भाषा की बात की जाए तो अग्रेज़ी में बात करना भी बहुत सारे लोगों के लिए परेशानी की वजह है।”
नॉर्थ PWC के मैनेजिंग पार्टनर नील रतन ने कहा कि बहुत लोग अपने शहरों से गाँव वापस चले गए। पहले एक सिस्टम बन गया था कि कोई नया धंधा करना है तो शहर ही जाना होगा। लोगों में यह मानसिकता थी कि गाँव के अंदर छोटा धंधा हो जाएगा मगर थोड़ा बड़ा करना है, तो बड़े शहर में जाना होगा।
उन्होंने कहा, “सवाल यह है कि क्या हम इसको बदल सकते हैं? हाइपर लोकर इकोनॉमी को बल देने के लिए हमें इन चीज़ों को बदलना बेहद ज़रूरी है। पहले हमने देखा है कि जिनको खेती करना होता था, वे गाँव में रह जाते थे और बाकि सब शहरों की तरफ चले जाते थे।”
एडवर्टाइज़िंग प्रॉफेशनल नील बनर्जी ने बताया, “जो शिक्षा हमें दी जाती है और पेशेवर तौर पर जो काम हमें करना होता है, उनमें बहुत अंतर होता है। हमारे पास जो सिलेबस आता है वो पांच साल पुराना होता है और नौकरी में चीज़ें बदलती रहती हैं। मैं जब नौकरी में गया तो देखा कि पूरा ढांचा ही बदल गया है। कहीं ना कहीं दो तरह से प्रॉब्लम हो रही है। एक तो यह कि जॉब मार्केट तेज़ी से ग्रो कर रही है और दूसरी तरफ शिक्षा व्यवस्था में कोई खास बदलाव नहीं दिखाई दे रहा है।”
स्किल डेवलपमेंट की वेबसाइट्स में टेलरिंग, कंप्यूटर और ब्यूटी पार्लर के कोर्सेज़ रहते हैं मगर उन्हें अपग्रेड करने की ज़रूरत है।
फेसबुक लाइव के दौरान व्यूवर्स ने भी स्किल डेवलपमेंट के बारे में पैनलिस्टों से अपने सवाल पूछे। कोरोना महामारी के दौर में एक बेहतर कल की शुरुआत के लिए इस फेसबुक लाइव में रोज़गार की अलग-अलग संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की गई। बेहतर कल की नींव रखने में आपकी भी बहुत अहम भूमिका हो सकती है। जानिए कैसे?
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