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कोरोना, भारी बारिश और बाढ़ से त्रस्त बिहार में चुनाव की यह कैसी तैयारी?

2019 के आंकड़े के अनुसार, देश में 51 करोड़ लोग किसी ना किसी तरह रोजगार में लगे हुए थे, जिनमें 48 करोड़ असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे थे। भारतीय अर्थनीति की निगरानी केंद्र के आकलन के अनुसार, लॉकडाउन के कारण 12 करोड़ 20 लाख लोगों का रोज़गार जा चुका है और वे सभी बेरोज़गार हो गए हैं।

देश के अर्थशास्त्रियों ने अनुमान लगाया है कि तालाबंदी के कारण 30 करोड़ लोग गरीबी सीमारेखा के नीचे धकेल दिए गए हैं।  गौरतलब है कि देश में बंदी के कारण रोज़गार चले जाने तथा भूख के साये में रहने के डर से लाखों की संख्या में कामगार, परिवार के साथ महानगरो से पैदल, साइकिल तथा अन्य माध्यम से अपने-अपने गाँव को वापस लौट गए हैं, जिनमें लगभग 700 से ज़्यादा मज़दूर रास्ते में ही मर गए।

न्यूज़ चैनलों ने उस समय खूब कवरेज किया लेकिन जब ये मज़दूर अपने-अपने क्षेत्रों में पहुंच गए उसके बाद इनकी खबर लेने वाला कोई नही है। कॉरपोरेट मीडिया चीन, पाकिस्तान और उसके बाद अमिताभ बच्चन के कोरोना पॉज़िटिव होने की खबर में व्यस्त दिखी। ऐला ववहा दैले जैसे देश में और कोई मुद्दा ही नहीं बचा है।

बिहार में ज़्यादातर मज़दूरों के पास अपनी ज़मीन नहीं (भूमिहीन मज़दूर) है। ऐसे भूमिहीन मज़दूर पूरी तरह महानगरों की फैक्ट्रियों पर आश्रित थे या फिर गाँवों के जमींदारों की ज़मीन पर। गाँव पहुंचने पर आरम्भ में इन मज़दूरों को अपने गाँव या किसी अन्य गाँव में धान की रोपनी से कुछ कमाई हो गई लेकिन अब रोपनी का समय भी खत्म हो गया है।

साथ ही पूरे उत्तर बिहार में पिछले 48 घंटे में हुई भारी बारिश ने 31 वर्षो का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। सोमवार को पूरे उत्तर बिहार में 206 मिमी. बारिश दर्ज़ की गई है। कई ज़िलों जैसे- पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, मुज़फ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर, गोपालगंज और वैशाली में असामान्य रूप से बारिश हो रही है जिसके कारण, नदियों में उफान आ गया और कई इलाको में बाढ़ की नौबत आ गई है।

अभी तक बाढ़ के कारण राज्य में 7 लोगों की मौत हो गई है लेकिन राज्य के तमाम राजनीतिक दल चुनाव को लेकर तैयारियों में जुटे हुए दिख रहे हैं। बिहार की जनता को केंद्र और राज्य सरकार कोरोना से बचा पाने में बिल्कुल असफल रही है।

पिछले 20 दिनों में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या देश में 5 लाख से 11 लाख तक बढ़ गई है। बिहार की हालत और भी खराब होने की संभावना है, क्योंकि बिहार में चिकित्सक और अस्पताल की स्थिति दयनीय है। कोरोना संक्रमित अपनी निजी गाड़ी से ऑक्सिजन मशीन अपने मुंह में लगाकर प्रदेश की राजधानी पटना के अस्पतालों के बाहर दो-दो घंटे इंतज़ार करने को विवश हैं।

बाकी ज़िलों की दुर्दशा क्या होगी, इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है। इन सभी कारणों से सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्य के मज़दूर और गरीब किसान हो रहे हैं। इस पर यदि विचार नहीं किया गया तो राज्य की गरीब जनता भुखमरी और कोरोना के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं का भी शिकार होगी, क्योंकि ना तो उनके बारे में पूछने वाला कोई है और ना ही सोचने वाला। उनकी जान की कोई कीमत नहीं है अब।


संदर्भ- द प्रिंट

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