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मेरा नाम सलमा (बदला हुआ नाम) है और मैं उस पेशे से आती हूं जिनके बारे में ज़िक्र करना तो छोड़ दीजिए, ज़ुबान पर नाम आने पर भी पाप समझा जाता है। जी हां, मैं एक सेक्स वर्कर हूं, वही सेक्स वर्कर जो पितृसत्तात्मक समाज की यौन कुंठा को मिटाने के लिए अपना जिस्म तक बेच देती हैं और बदले में हमें क्या मिलता है?
धिक्कार, शोषण, ज़िल्लत भरी ज़िन्दगी, यातनाएं और भी बहुत कुछ! कोरना काल ने तो मानो हम सेक्स वर्कर्स से सब कुछ छीन लिया है। पिछले चार महीनों में सरकार और नगर निगम की तरफ से हमें कोई भी सुविधाएं मुहैया नहीं कराई गई हैं। शुरुआती लॉकडाउन में बस तीन दिन ही नगर निगम ने खाना बांटा। उसके बाद यह कहकर आने से मना कर दिया कि यहां भीड़-भाड़ ज़्यादा है, कोरोना का खतरा हो सकता है।
क्या हम इंसान नहीं हैं? क्या हमारी ज़रूरतें नहीं हैं? हमारे साथ ऐसा भेदभाव क्यों? हम इतने परेशान हैं कि लोगों से मांग-मांगकर अपना काम चलाने को मजबूर हैं।”
राशन लेने के लिए आईडी प्रूफ लगते हैं। जो अपनी पहचान छुपाने को मजबूर हैं, वे कहां से ये सब दे सकती हैं? कोई बिहार से है तो कोई मुम्बई और पंजाब से! सबके पास कागज़ पत्री तो नहीं हैं।”
क्या सरकार को हमारी सुध लेने की पड़ी ही नहीं है? कुछ एनजीओ और संस्थाएं हमारी मदद के लिए आगे तो आई हैं लेकिन समस्या यह है कि लगभग 300 सेक्स वर्कर्स के लिए ज़रूरत की चीज़ों की पूर्ति भला कुछ संस्थाएं कैसे कर सकती हैं?
कोविड-19 की वजह से हमारी कम्युनिटी की ही एक सेक्स वर्कर की मौत हो गई, जो कि हमारे ही मुहल्ले में रहती थीं जिसे हमारी ही कम्युनिटी की एक वर्कर अस्पताल ले गई थी। जब हमें पता चला कि उनकी मौत कोरोना से हुई है, तो हम सब भी घबराकर स्वास्थ्य केंद्र पहुंचे और डॉक्टर्स से विनती की कि हमारे भी टेस्ट किए जाएं। इस पर अस्पताल प्रशासन ने जो कहा वो बेहद शर्मनाक है।
अस्पताल प्रशासन ने कहा, “जाओ यहां से। क्यों सरकार के पैसे बर्बाद कर रही हो? जब उसके घर में कोई पॉज़िटिव नहीं निकला तो तुम सबको कैसे निकल सकता है?”
इस सबके बावजूद भी हमने हंगामा किया तो हमारे नमूने लिए गए लेकिन रिपोर्ट्स देने से इंकार करते हुए कह दिया गया कि सब नेगेटिव हैं इसलिए रिपोर्ट्स नहीं भेजी जाएंगी।
हमारी कम्युनिटी की एक साथी सेक्स वर्कर बेघर हो गई हैं। मकान मालिक ने उन्हें घर से निकाल दिया है। मैं खुद भी किराये के मकान में रहती हूं। किरायेदार पहले कई महीनों तक किराया नहीं मांगते थे, अब वो किराये के लिए दबाव बना रहे हैं और नहीं मिलने पर घर खाली करने की धमकी दे रहे हैं। काम-धंधा सब बंद है. बचत के नाम पर जो कुछ भी था खत्म हो चुका है। अब किराया किस तरह जुटाया जाए?
सभी जानते हैं कि हमारे काम बंद हो चुके हैं। हमें अब परचून की दुकानों ने उधार सामान देना बंद कर दिया है। सामान मांगने पर वे बहाना बनाते हुए कहते हैं कि दीदी सामान खत्म हो चुका है। होता तो ज़रूर दे देते। जबकि हम जानते हैं उनके पास सामान होता है।”
जब आर्थिक तंगी के चलते कुछ सेक्स वर्कर्स ने पैसे उधार लेकर सब्ज़ी-भाजी के ठेले लगाए तो पुलिस ने उन्हें लॉकडाउन का हवाला देते हुए ठेले लगाने से मना नहीं किया, बल्कि सब्ज़ी के ठेले के पलटा दिए। साथ ही उनके साथ मारपीट भी की।
हम अपनी समस्या लेकर कहां जाएं? कुछ संस्थाएं मदद कर रही हैं लेकिन उतना काफी नहीं है। बहुत सारी सेक्स वर्कर्स ऐसी हैं, जिनके घर वालों को असल में पता ही नहीं है कि वे क्या काम करती हैं। उनके घरों से दबाव डाला जा रहा है कि जिसके लिए काम करती हो, उनसे कहो कि हमें पैसे दें हमारा खर्च उठाएं।
पुलिस के पास गुहार लगाने जाओ तो वह दुर्व्यवहार करती है। हमें कहा जाता है कि किसी से उधार लेने या किसी का घर किराये पर लेने क्या हमसे पूछकर गए थे? स्थितियां बहुत खराब हैं।
मैं कोरोना से नहीं डरती लेकिन इन परिस्थितियों और लोगों के व्यवहार से डर लगने लगा है। पिछले हफ्ते ही उनकी कुछ साथी सेक्स वर्कर कड़ी धूप में बैठी मिली, जब उनसे पूछा वो यहां क्या कर रही हैं? तो पता चला कि वे क्लाइंट तलाश रही हैं।
जब मैंने उनसे पूछा कि कहीं कोई कोरोना पॉज़िटिव हुआ तो क्या होगा? तो उन वर्कर्स का कहना था कि अभी तो हमारे छोटे बच्चे भूख से मर रहे हैं। हम कोरोना से जब मरेंगे तो देखा जाएगा।
हम तक कोई स्वास्थ्य विभागीय टीम नहीं पहुंची है। हमें, हमारे घरों को सैनिटाइज़ करने या कोरोना से बचाव के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं कराए गए हैं।
हमें सीधे तौर पर नज़रअंदाज़ किया जा रहा है। जैसे किसानों और बाकी वर्गों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है, उस तरह हमें क्यों नहीं? सरकार के पास हमारी पूरी जानकारी है और यदि नहीं है, तो एचआईवी टेस्ट किसके और किसलिए करवाते हैं? कंडोम्स क्यों बांटी जाती हैं? विडीआरएल की क्यों ज़रूरत है?
हमारे साथ जानते-बूझते भेदभाव किया जा रहा है। यदि हमें वक्त रहते मदद नहीं दी गई तो हालात बहुत बिगड़ जाएंगे। महामारी से ज़िन्दगी बत्तर हो गई है। हम इतने परेशान हैं कि वापस काम पर लौटना चाहते हैं। कोरोना से जब मरेंगे तो मरेंगे, ये भेदभाव और परेशानियां हमें पहले ही मार डालेंगी लेकिन हम मज़बूर हैं ढाबे, होटल, बाग-बगीचे, ऑटो रिक्शे सब बंद है। हम काम पर नहीं लौट सकते।
माना कोविड-19 ने हर तबके को ही प्रभावित किया है लेकिन क्या कभी आपने खुद से प्रश्न किया है कि इस महामारी के बाद क्या बदल जाएगा? बेशक हम में से बहुत से लोग घर, शहर, नौकरी और आओ हवा बदलने की बात करते हैं लेकिन यदि ये सब नहीं थमा तो सेक्स वर्कर्स की संख्या और भी ज़्यादा हो जाएगी जो किसी भी महामारी से ज़्यादा बुरा होगा।
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