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बिहार में कैसे बेटे की चाहत में पति ने कराई पत्नी की हत्या

story of bihar

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आपको पैडमैन मूवी याद ही होगी, जिसमें अरुणाचलम मुरुगानान्थम के जज़्बे को दिखाया गया है। एक ऐसा इंसान, जिसने अपनी पत्नी की परेशानियों को समझा और अपनी ज़िंदगी का लक्ष्य निर्धारित कर लिया कि वह अपनी पत्नी की परेशानियों को दूर करेगा।

उन्होंने ना केवल अपनी पत्नी, बल्कि हर एक लड़की की परेशानियों को कम करने का काम किया है। उन पर ही आई मूवी थी पैडमैन, जिसमें अक्षय कुमार ने उनके संघर्ष की दास्तान को सबके सामने रखा था।

यह अरुणाचलम का प्यार ही है, जिस वजह से उन्होंने अपनी पत्नी की तकलीफ को समझने के लिए खुद कई दिनों तक सैनिटरी पैड का इस्तेमाल किया और उसी मेहनत से एक ऐसा सस्ता और बढ़िया पैड डिज़ाइन तैयार कर दिया, जिसका ना केवल उनकी पत्नी, बल्कि अन्य लड़कियां और महिलाएं भी लाभ उठा रही हैं। अरुणाचलम की पूरी कहानी हम सबने मूवी में देखी है। इसलिए इसे ज़्यादा आगे बढ़ाने की ज़रूरत नहीं है।

एक पति ने हत्या करवाने के लिए लिया लोन

फोटो साभार- सोशल मीडिया

दूसरी तरफ एक और कहानी है, जिससे शायद अधिकांश लोग परिचित हों और अगर नहीं, तो कोई बात नहीं, मैं बताती हूं। मुझे अभी एक खबर फेसबुक पर बहुत ज़्यादा देखने को मिली जिसमें एक पति अपनी ही पत्नी को मारने के लिए सुपारी देता है ताकि उसे मरवाकर अपनी साली से शादी करे। जिससे उसे बेटा मिले, क्योंकि जिस लड़की से उसकी शादी हुई थी, उस लड़की से उसे दो बेटियां मिली थीं। मामला है बिहार के चैनपुर की।

उस इंसान का नाम शंभू बताया जा रहा है, जिसने अपनी ही पत्नी को मारने के लिए सुपारी दी थी। आप जानकर हैरान रह जाइएगा कि हत्या करवाने के लिए उस इंसान ने लोन तक लिया था।

साफ बात है कि यह हवस के साथ-साथ हैवानियत की हद है। हालांकि ऐसी घटनाएं नई नहीं हैं। हमें तो आदत है ऐसी घटनाओं को पढ़कर अफसोस जाहिर करके आगे बढ़ने की।

समाज के आवरण में ढके चेहरे

अब मैं मुद्दे पर आती हूं। एक तरफ ऐसा इंसान है, जिसने अपनी पत्नी की परेशानियों को अपना समझा और उसे हल करने की ओर कदम बढ़ाने का काम किया। वहीं, हमारे ही समाज में एक ऐसा इंसान भी है, जो बेटे के लिए सुपारी देकर अपनी पत्नी की हत्या करवाकर रोने का झूठा नाटक करने लगा।

हमारे समाज में पुरुषों के अनेक चेहरे हैं। हालांकि अधिकांश चेहरे समाज के आवरण में ढके रहते हैं, तो कुछ चेहरों को घर के लोग ही ढकने का काम करते हैं।

क्या सच में समाज आगे बढ़ रहा है?

हम सब कहते हैं कि हमारा समाज आगे निकल गया है मगर मुझे नहीं लगता, क्योंकि अगर समाज आगे होता तब शायद ऐसी घटनाओं की संख्या कम होती। आज भी जब हमें ऐसी खबरों से सोशल मीडिया और अखबार आदि पटा हुआ मिले तो हम क्या ही उम्मीद लगा सकते हैं?

महिलाओं को हर तरह से पति की सेवा करने और उसके कहे हुए मानकों पर खड़ा उतरने के लिए कहा जाता है मगर पुरुषों के लिए हमने मानक क्यों नहीं बनाए हैं?

अगर पुरुषों के लिए कोई मानक नहीं है कि उसे ऐसा होना चाहिए, वैसा होना चाहिए तो महिलाओं को भी यह सब नहीं मानना चाहिए। हम सब सोशल मीडिया के ज़रिये आवाज़ उठाते हैं मगर ज़रूरत है ज़मीनी स्तर पर बदलाव लाकर उस पर काम करने की।

यहां मैंने दो उदाहरण इसलिए लिए क्योंकि यहां पर पुरुषों के दो चेहरों पर मैंने बात की है। वह खबर पढ़कर मुझे बहुत गुस्सा आया था। सभी के लिए कहा जाता है कि हम सबको एक-दूसरे से सीख लेनी चाहिए।

पुरुषों को समझना चाहिए महिलाओं के दर्द को

यहां मेरा सवाल यह है कि क्यों कुछ पुरुष महिलाओं के दर्द को नहीं समझते हैं? महिला केवल घर पर बच्चा, खासकर बेटा पैदा करने की मशीन नहीं है, जो एक से बेटा नहीं हुआ तो दूसरी ले आएंगे।

साथ ही यहां एक महिला की मानसिकता भी सामने आती है कि उसने भी अपनी बहन को मारने में साथ देने के लिए हर संभव प्रयास किया। इस प्रकरण ने हमें बता दिया है कि हैवानियत की कोई सीमा नहीं होती है।

जिस प्रकार अरुणाचलम मुरुगानान्थम ने अपनी पत्नी की परेशानियों के साथ-साथ इसे हर एक महिला से जोड़कर समझा और इसके निदान के लिए कदम बढ़ाने का काम किया, उसी तरह हर पुरुषों को अपने अंदर बसे स्त्रीतत्व को समझना होगा।

महिलाओं की परेशानियों को परस्पर समझने की ज़रूरत

उसी प्रकार हर पुरुष को भी महिलाओं की परेशानियों को परस्पर समझते हुए ही आगे बढ़ना होगा। बेटे की चाहत या दहेज के लिए महिला की हत्या कर देने से ना केवल एक कुंठित मानसिकता, बल्कि एक हारा हुआ समाज भी हाशिए पर खड़ा हो जाता है।

समाज को बदलने की बात मुझे अजीब लगती है, क्योंकि यह तब तक नहीं बदलेगा जब तक हम नहीं बदलेंगे। पहले खुद को बदलिए और आसपास की घटनाओं पर ध्यान दीजिए। ज़रूरत है ज़मीनी स्तर पर काम करने की तथा हो रहे प्रयासों पर गहन नज़र रखने की।

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