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कोरोना की वैक्सीन बन भी गई, तो आपको कब तक मिल पाएगी?

doctor holding a needle, vaccine in their hands

कोरोना वायरस महामारी का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। पिछले छह महीनों से इस महामारी ने भारत समेत पूरे विश्व की हालत खस्ता कर दी है। फिलहाल भारत में हर रोज मोटा-माटी इसके 50 हज़ार नए मामले दर्ज़ किए जा रहे हैं। यह बीमारी अब संभाले नहीं संभल रही है।

इस बीच लोगों को किसी चीज़ से कोई उम्मीद बची है, तो वो कोरोना की वैक्सीन है। लोगों को लग रहा है कि इस महामारी से बचने का रामबाण इलाज अब वैक्सीन ही हो सकती है। यही कारण है कि दुनियाभर में कोरोना वैक्सीन को लेकर हाय-तौबा मची हुई है।

हर दूसरे दिन वैक्सीन को लेकर कोई नया अपडेट आ जाता है। ऐसे में, वैक्सीन को लेकर कंफ्यूजन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। 

कुछ बेसिक सवाल हैं जो लोगों के मन में बार-बार उठ रहे हैं। जैसे वैक्सीन आखिर कब तक बन सकती है? वैक्सीन का कितना काम हो चुका है? अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, रूस और खुद भारत वैक्सीन को लेकर जो दावा कर रहे हैं, उसमें कितनी सच्चाई है? आखिर वैक्सीन बनती कैसे है? अगर वैक्सीन भी गई तो आम लोगों के लिए मार्केट में कब तक आ जाएगी?

प्रतीकात्मक तस्वीर

खैर, आज इन्हीं सवालों के जवाब हम विस्तार से और सरल भाषा में आपको बताएंगे।

कब तक बन सकती है कोरोना की वैक्सीन?

दुनियाभर में कोरोना वायरस की कुल 150 वैक्सीनों पर काम चल रहा है। इसमें से ज़्यादातर वैक्सीन फिलहाल अपने पहले चरण में ही हैं, जो कुछ देश वैक्सीन की इस रेस में सबसे आगे चल रहे हैं, वे अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, रूस और भारत हैं। अमेरिका, ब्रिटेन और चीन वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के तीसरे और अंतिम चरण में हैं। वहीं भारत और रूस इसके पहले और दूसरे चरण में हैं।

ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राज़ेनिका नाम की एक कंपनी साथ मिलकर वैक्सीन का निर्माण कर रही हैं। हाल ही में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने बताया है कि दूसरे चरण के ट्रायल में ऐसा पाया गया है कि इस वैक्सीन से लोगों में कोरोना वायरस से लड़ने की इम्यूनिटी बनती है। 

वैक्सीन ने दूसरे चरण का ट्रायल सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है और उम्मीद है कि तीसरे चरण के ट्रायल में भी सफलता मिलेगी, जो अमेरिका, ब्रिटेन और साउथ अफ्रीका के कुल 10 हज़ार से अधिक लोगों पर शुरू हो चुका है। 

भारत के पूणे में मौजूद सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर इस वैक्सीन का उत्पादन भी शुरू कर दिया है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के अनुसार, इस उत्पादन का 50 प्रतिशत हिस्सा भारत के उपयोग के लिए होगा और जल्द ही ऑक्सफोर्ड की इस वैक्सीन का भारत में भी ह्यूमन ट्रायल शुरू हो सकता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: पिक्साबे

वहीं अमेरिका में भी कोरोना की दो वैक्सीनों पर काम चल रहा है। पहली वैक्सीन मॉर्डना और अमेरिका की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ यानी एनआईएच साथ मिलकर बना रही हैं। हाल ही में इस वैक्सीन का 27 हज़ार लोगों पर सबसे बड़ा ह्यूमन ट्रायल शुरू हुआ है। इसके साथ ही अमेरिका में ही फाइज़र और बायो एंड टेक भी मिलकर वैक्सीन का निर्माण कर रही हैं। ये दोनों वैक्सीन भी ट्रायल के आखिरी चरण में हैं। 

उधर चीन, जहां से कोरोना वायरस की शुरूआत हुई। वो भी वैक्सीन बनाने की रेस में बना हुआ है। चीन की सिनोफॉर्म नाम की कंपनी भी वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल में पहुंच चुकी है।

इन देशों के अलावा रूस और भारत भी वैक्सीन बनाने में लगे हुए हैं। भारत में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और भारत बायोटेक साथ मिलकर कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन लाने की कोशिश में कर रहे हैं। इस वैक्सीन के पहले चरण का ह्यूमन ट्रायल भी शुरु किया जा चुका है। 

रूस के मास्को में मौजूद सोचेनोफ यूनिवर्सिटी ने कुछ दिनों पहले ऐलान किया कि उसने कोरोना की वैक्सीन बना ली है लेकिन बाद में स्पष्ट किया गया कि वैक्सीन अभी ह्यूमन ट्रायल के पहले चरण में ही है।

इस तरह तमाम देश वैक्सीन बनाने के अलग-अलग चरणों में ज़रूर हैं लेकिन एक निश्चित समय बताने के हालात में कोई भी देश फिलहाल नहीं दिख रहा है।

आखिर वैक्सीन बनती कैसे है? 

किसी भी वैक्सीन के बनने की प्रक्रिया काफी जटिल और समय लेने वाली होती है। जानकारों की मानें तो सामान्य रूप से किसी भी वैक्सीन को बनाने में एक से दो का साल का समय लग ही जाता है लेकिन कोरोना महामारी से त्रस्त हो चुका पूरा विश्व इसकी वैक्सीन खोजने के लिए रिकॉर्ड स्पीड से काम कर रहा है। 

किसी भी वैक्सीन के बनने से लेकर उसके मार्केट में उपलब्ध हो जाने के लिए, इसे कुल पांच चरणों से होकर गुज़रना पड़ता है। 

प्रतीकात्मकत तस्वीर, तस्वीर साभार: पिक्साबे

सबसे आता है प्री-क्लिनिकल ट्रायल। इस ट्रायल में वैक्सीन का जानवरों पर प्रयोग किया जाता है। इससे यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि क्या वैक्सीन सुरक्षित भी है या नहीं? और क्या जानवर के शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण भी हो पा रहा है। जिससे वह वायरस से लड़ सकें।

इसके बाद आता है ह्यूमन ट्रायलये ट्रायल कुल तीन चरणों में होता है।

सबसे पहले फेज वन इस फेज में लगभग 100 लोगों पर वैक्सीन का प्रयोग किया जाता है। इससे यह पता लगाने की कोशिश की जाती है कि क्या यह वैक्सीन इंसानों के लिए भी सुरक्षित है। 

फिर आता है फेज टू। इस फेज में 500-1000 लोगों पर दोबारा से वैक्सीन का ट्रायल किया जाता है। इस दौरान यह पता करने की कोशिश की जाती है कि वैक्सीन लोगों के इम्यून सिस्टम पर क्या असर डाल रही है? साथ ही क्या इसके कोई साइड इफेक्ट्स भी हैं? 

इसके बाद ह्यूमन ट्रायल के अंतिम चरण यानी फेज थ्री में, बड़े पैमाने पर लगभग 10 हज़ार से भी अधिक लोगों पर इस वैक्सीन का ट्रायल कर यह जानने की कोशिश की जाती है कि क्या वैक्सीन ज़्यादा संख्या में भी लोगों पर काम कर रही है?

इसके बाद आता है आखिरी चरण। इसमें वैक्सीन के संबंध में संबंधित देश के रेगुलेटरी संस्था से प्राप्त परिणामों के आधार पर वैक्सीन के उत्पादन अनुमति ली जाती है। इसके बाद ही वैक्सीन लोगों के लिए मार्केट में उपलब्ध हो पाती है। 

वैक्सीन बन भी गई, तो आपको कब तक मिल पाएगी?

यह एक बड़ा सवाल है कि वैक्सीन बन भी गई, तो आम लोगों को कब तक मिल पाएगी। इस संबंध में तमाम बड़े देश जो वैक्सीन की रेस में सबसे आगे हैं। उनमें से ज़्यादातर देश साल के आखिर तक वैक्सीन के बाज़ार में आ जाने का अनुमान लगा रहे हैं। ऐसे में वैक्सीन ट्रायल के सभी चरणों के बाद ही आम लोगों को लिए उपलब्ध दो पाएगी। 

प्रतीकात्मक तस्वीर

उधर वैक्सीन के संबंध में विश्व स्वास्थ्य संगठन बहुत ज़्यादा उम्मीद में नहीं है। डब्ल्यूएचओ लगातार सभी देशों को आगाह कर रहा है कि हमें कोरोना वायरस के साथ ही जीना होगा। इसके लिए जारी तमाम दिशा-निर्देशों का पालन करते रहना होगा। 

हालांकि महामारी के इस नकारात्मक दौर में भी तमाम वैज्ञानिकों की वैक्सीन बनाने की प्रतिबद्धता कहीं-न-कहीं लोगों में एक उम्मीद की किरण ज़रूर पैदा कर रही है।

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