Site icon Youth Ki Awaaz

ऑनर किलिंग के नाम पर प्रेमियों की हत्या कर कब तक नफरत फैलाता रहेगा समाज?

Honour Killing in India

आदिकाल से जातियों के बंधन इतने सख्त हैं कि इन्हें तोड़ पाना आसान नहीं है। मनुस्मृति के अनुसार, हर जाति को वर्ण व्यवस्था में काम और ज़िम्मेदारी के हिसाब से बांटा गया है। यह सामाजिक व्यवस्था बड़ी गहराई से लोगों के ज़हन में बैठ गई है। इसके प्रभाव से बाहर रहने वाले लोगों को अपराधी के रूप में देखा जाता है।

रोटी और बेटी का रिश्ता वर्जित क्यों?

दरअसल अंतर्जातीय लोगों में दो तरह के रिश्तों को हमेशा वर्जित माना जाता है। एक रिश्ता है रोटी का और दूसरा रिश्ता है बेटी का। रोटी का रिश्ता इस बात को दर्शाता है कि दूसरी जाति खासकर पिछड़ी और दलित जाति के लोगों के साथ खाना खाया जा सकता है या नहीं। ऐसा अक्सर देखने को मिलता है कि समाज का एक खास वर्ग पिछड़ी और दलित जातियों के छुए को खाने तक से माना कर देता है।

दूसरा रिश्ते के तहत दूसरी जाति में बेटी के शादी करने की बात की जाती है जिसे मानो समाज एक अपराध जैसा माना जाता है। यानी इसकी मंजूरी समाज बिल्कुल भी नहीं देता। ऐसा करने वालों को अलग-अलग तरह की सज़ा भी सुनाई जाती है।

रोटी और बेटी के रिश्तों में सामाजिक कानून इतने सख्त हैं कि परिवार को सामाजिक बहिष्कार तक झेलना पड़ता है। यह समाजिक कानून और भी क्रूरतापूर्ण हो जाते हैं जब लड़का दलित समाज से हो और लड़की किसी सवर्ण कहे जानी वाली जाति से हो।

प्रतीकात्मक तस्वीर

समाज, जाति और परिवार को इज़्ज़त से जोड़कर देखा जाना

अंतर्जातीय विवाह के मामले में समाज, जाति और परिवार को इज़्ज़त से जोड़कर देखा जाने लगता है। इस इज़्ज़त की खातिर लोग खून बहाने से भी नहीं नहीं कतराते हैं। इतिहास में ऐसी अनेक घटनाएं देखी गई हैं जहां प्रेमी जोड़ों को जान से मार दिया गया है। ऐसी ही एक और घटना महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के पिंपरी चिंचवड़ से सामने आई है।

गौरतलब है कि एक 20 वर्षीय दलित युवक को लड़की के परिजनों ने मौत के हवाले कर दिया। युवक किसी अन्य जाति की लड़की से प्रेम करता था। लड़की के परिजनों को यह बात बिल्कुल भी स्वीकार नहीं थी कि उनकी बेटी किसी अन्य जाति के लड़के के साथ प्रेम करे।

एक तरफ तो हमारे समाज में लड़कियों को अपनी मर्ज़ी से जीवनसाथी चुनने का सामाजिक अधिकार नहीं दिया जाता। ऊपर से अगर कोई लड़की दूसरी जाति में शादी करना चाहती है, तो समाज और परिवार उसके खिलाफ खड़े हो जाते हैं। इसमें भी अगर लड़का दलित जाति से हो, तो ऐसी स्थिति में अलग किस्म का बवाल खड़ा कर दिया जाता है।

इज़्ज़त के‌ नाम पर हत्या क्यों?

आमतौर पर लोगों में ऐसी मान्यता हैं कि ऑनर किलिंग यानी इज़्ज़त के नाम पर हत्या सिर्फ छोटे शहरों, गाँवों और अनपढ़ लोगों में ही होती है। विडम्बना यह है कि गाँव से लेकर महानगरों तक अनपढ़ से लेकर बुद्धिजीवियों तक पितृसत्ता और जातिवाद की जड़ें बहुत गहरी है। जिसके कारण यह हत्याएं होती हैं।

अगर हम पुणे की घटना पर भी रोशनी डालें, तो एक महानगर में किसी दलित युवक की सिर्फ इस बात के लिए हत्या कर दी जाती है क्योंकि उसका प्रेम जाति के बन्धनों से परे था। इसी तरह से 2018 में केरला में एक दलित क्रिश्चेन को भी दूसरी जाति में प्रेम करने का खामियाज़ा भुगतना पड़ा था।

प्रतीकातमक तस्वीर

इज़्ज़त के नाम पर होनी वाली हत्याएं क्या नई बात है?

यह घटनाएं साफ-साफ बयान करती हैं कि ऑनर किलिंग का संबंध छोटे शहरों से नहीं है, बल्कि छोटी सोच से है। इज़्ज़त के नाम पर हत्याओं का होना कोई नई बात नहीं है।

हीर-रांझा, लैला-मजनूं के किस्सों में भी इनका ज़िक्र पहले से होता आया है। हैरानी की बात तो यह है कि किस्से कहानियों में हर कोई दिल से चाहता है कि प्रेम करने वाले एक हो जाएं और तो और लोग उनके साथ हुए अन्याय को सुनकर रो भी पड़ते हैं।

घर के मामले में सख्ती क्यों?

बात जब घर की हो तो कहानी वही रहती है किरदार बदल जाते हैं। समाज को जैसे ही अपने घर के आंगन में कोई प्रेम की कहानी नज़र आती है, तो इज़्ज़त के नाम पर उसे रौंद दिया जाता है। उस समय सारी मानवीय संवेदनाएं मानो खत्म हो जाती है।

जातिवाद और पितृसत्ता को बनाए रखने के लिए समाज परिवारों पर इतना दबाव बनाता है कि वह कानून व्यवस्था को दरकिनार करके इज़्ज़त के नाम पर हत्या को ही इंसाफ मान लेते हैं।

ऐसा क्यों? यह इसलिए किया जाता है कि दूसरों को भी सबक मिल सके। आज हम ऐसे युग मे हैं जहां विज्ञान दिन-दोगुनी, रात-चौगुनी तरक्की कर रहा है लेकिन हमारे समाज में आज भी जातिवाद और पितृसत्ता जैसी मानसिकता की गहरी जड़ें मौजूद हैं।

शायद यही कारण है कि हम मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं को महसूस ही नहीं कर पा रहे हैं। मूल्यों और संवेदनाओं की ही आज सबसे ज़्यादा ज़रूरत है ताकि नफरतों को खत्म किया जा सकें।

Exit mobile version