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सुदूर ग्रामीण इलाके में मोबाइल रिपेयरिंग के ज़रिये कैसे आत्मनिर्भर बनें राकेश

जहां चाह है, वहीं राह है। छत्तीसगढ़ के पंडरी पानी गाँव के निवासी राकेश कुमार नागदेव इस कहावत के जीते-जागते उदाहरण हैं। अपनी मेहनत और लगन के दम पर उन्होंने दूर-दराज़ के एक छोटे से गाँव में रहते हुए ना सिर्फ MA की पढ़ाई पूरी की, बल्कि जीवन-यापन के लिए छोटे-छोटे काम करते-करते उद्यमिता की ओर कदम भी बढ़ाया।

29 वर्षीय राकेश कुमार नागदेव ने पढ़ाई खत्म करते ही अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिशें शुरू कर दीं। धान की खेती और मज़दूरी के साथ-साथ उन्होंने एकल विद्यालय नामक संस्था में छोटे बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।

राकेश नागदेव।

रोज़ाना दो घंटे पढ़ाने के मानदेय और मेहनत-मज़दूरी से मिलने वाले पैसे से जेब-खर्च तो निकल जाता था मगर घर खर्च पूरा नहीं हो पाता था। इसलिए अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने कई तरह के फील्ड वर्क भी किए।

एकल विद्यालय में कार्यरत रहते हुए नागदेव ने खाद और कीटनाशक बनाना भी सीखा। जैविक खाद और कीटनाशक का प्रयोग खेती के लिए वो अभी भी करते हैं।

इस लेख से पहले हुई वार्तालाप के दौरान उन्होंने बताया कि एम.ए तक पढ़ने के बावजूद भी उन्हें काफी समय तक एक स्थाई नौकरी नहीं मिली। घर चलाने के लिए चिंतन-मनन करने पर उनको मोबाइल रिपेयरिंग शुरू करने का विचार आया।

सुदूर इलाके में बसे उनके गाँव में दूर-दूर तक मोबाइल रिपेयरिंग प्रशिक्षण का कोई साधन नहीं था मगर कहते हैं ना, अगर दिल से किसी चीज़ को चाहो तो पूरी कायनात उसे तुम से मिलाने की कोशिश में लग जाती है। कुछ ऐसा ही नागदेव के साथ भी हुआ।

मोबाइल रिपेयर करते हुए राकेश नागदेव।

उन्हें पता चला कि उनके गाँव से 12 किलोमीटर दूर कटघोरा में मोबाइल रिपेयरिंग का प्रारंभिक प्रशिक्षण दिया जाता है। वो मोबाइल रिपेयरिंग सीखने के लिए रोज़ाना 12 किलोमीटर साइकिल चलाकर आया-जाया करते थे।

प्रशिक्षण का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लेने के बाद वो उच्चस्तरीय प्रशिक्षण के लिए कोरबा आ गए, जहां मोबाइल रिपयेरिंग की बारीकियां और अच्छे से सीखीं। 6 महीने के इस कोर्स को पूरा कर लेने के बाद उन्होंने कोरबा में ही दुकान खोलने के बारे में सोचा मगर कोरबा एक शहर है, इसलिए वहां दुकान खोलने के लिए ज़्यादा पैसों की ज़रूरत थी।

वहां दुकान खोलने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे फिर उन्होंने गाँव जाकर कुछ जान-पहचान वाले अलग-अलग लोगों से पैसे उधार लेकर बिंझरा में ही अपनी दुकान खोली मगर यहां भी उनका संघर्ष खत्म नहीं हुआ था। वो बताते हैं कि शुरुआती दिनों में अच्छी कमाई नहीं होती थी मगर अभी सीमित आया है।

पैसों की कमी होने के कारण दुकान में सामान की कमी भी है मगर नागदेव खुश हैं कि वो मेहनत कर जीवन में यहां तक पहुच पाए हैं।

उन्होंने यह उदाहरण प्रस्तुत किया है कि जीवन में नौकरी करना ही रोज़ी-रोटी कमाने का एकमात्र जरिया नहीं है। अपना जीवन और घर-गृहस्थी चलाने के लिए व्यवसाय के ज़रिये भी पैसा कमाकर आर्थिक स्थिति को सुधारा जा सकता है।

नागदेव का युवाओं के लिए संदेश है कि अगर बहुत कोशिश के बाद भी सरकारी नौकरी नहीं लग पा रही हो, तो बुद्धि का उपयोग करके अपना कोई काम शुरू करना चाहिए और खुद को स्वावलम्बी बनाना चाहिए। हमारी मदद हम खुद कर सकते हैं कोई दूसरा नहीं। इसलिए कड़ी मेहनत करने से सफलता ना मिले तो परेशान ना हों और एक बार फिर से कोशिश करें।

नागदेव के जीवन से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि जीवन में कठिन परिस्थियों का बुलंद हौसले और परिश्रम के बल पर डटकर सामना करना चाहिए और आगे बढ़ने के लिए संघर्षरत रहना चाहिए। लगातार प्रयास करने पर सफलता और खुशियां दोनों ज़रूर मिलती हैं।


लेखिका के बारे में- वर्षा पुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती हैं। पेड़-पौधों की जानकारी रखने के साथ-साथ वो उनके बारे में सीखना भी पसंद करती हैं। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।

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