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क्या आपको मालूम है कीड़ों की मदद से कैसे बनता है मुलायम रेशम का कपड़ा?

क्या आप रेशम के कपड़ें पहनते हैं? क्या आपको पता है इस कपड़े का उत्पादन कैसे होता है? रेशम उच्च क्वालिटी का कपड़ा होता है और महंगा भी। लोग ज़्यादातर रेशम के कपड़े, त्यौहारों या विशेष दिनों पर पहनते हैं। क्यों ना हम इस कपड़े के उद्गम के बारे में जानें?

कोसा (कोकून) का कपड़ा लंबे समय तक टिकने वाला, आकर्षक और मनमोहन होता है और भारत में बहुतायत मात्रा में उत्पादन होता है। छत्तीसगढ़ राज्य में भी कोसे का बहुत जोर-शोर से उत्पादन किया जाता है।

कोसा उत्पादन प्रशासन की रखरखाव में होता है। यह कार्य प्रशासन के कोसा (कोकून) विभाग के अंतर्गत आता है। इस विभाग में काम करने वाले जो मज़दूर होते हैं, उनमें महिलाएं भी शामिल होती हैं। 

कोसा तीन प्रकार के वृक्षों से उत्पादन किया जाता है- शहतूत, कहुआ और साजा। ये वृक्षों के नाम छत्तीसगढ़ में ही लिए जाते हैं। इसके अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम हैं। इसके उत्पादन के लिए कोसा (कोकून) के केंद्र से बीज लाया जाता है, जो छोटे-छोटे कीड़ों के रूप में होते हैं।

केंद्र से लाने के बाद इसे सप्ताह-पंद्रह दिन के लिए अलग से कमरे में रखा जाता है ताकि वह पेड़ में चलने और पत्ते खाने के लायक हो सके। इसके बाद इसे पेड़ पर पत्तों के माध्यम से लटका दिया जाता है फिर ये पत्तों को खाते हुए बड़े होते हैं। 

कोसे का कीड़ा।

ये धीरे-धीरे पूरे वृक्षों पर अपना विस्तार बढ़ाते जाते हैं। इनमें बहुत देख-रेख की ज़रूरत होती है, क्योंकि इन कीड़ों को अनेक प्रकार के जीव-जंतु और पक्षी बहुत पसंद करते हैं। खाने जाने का ज़्यादा ख़तरा पक्षियों से ही रहता है, इसलिए सभी क्षेत्रों की निगरानी करनी पड़ती है।

जब ये पूरी तरह से बड़े  हो जाते हैं, तब अपनी मल से एक पतले और चिपचिपे धागे से अपने चारों ओर अंड़े की आकृति की रचना करते हैं।

कोकून उबालने के बाद उन्हें अलग करते ग्रामीण।

वे इस अंडे की कोसा आकृति से बाहर नहीं निकल पाते हैं, अंदर में ही मर जाते हैं। इसी को कहते हैं रेशम का कीड़ा और जो गोल अंडे का आकार होता है, उसे कोसा (कोकून) कहते हैं।

कोसा (कोकून) में से धागा या रस्सी निकालने से पहले अच्छी तरह से धूप में सुखाया जाता है और उसे बार-बार पलटा जाता है। धागा निकालने से पहले इसे उबाला भी जाता है।

फिर कोसे की मात्रा के अनुसार उसमें पानी, सोडा और साबूदाना डाला जाता है। उसे तीन घंटे तक अच्छी तरह से पकाया जाता है। जब यह पक जाए तो इन्हें निकालकर अलग करते हैं। 

कोकून का ढेर धूप में सुखाते हुए।

अलग करने के बाद इन्हें धागा निकालने वाली मशीन पर लाया जाता है। कोकून उबालने से बहुत मुलायम हो जाते हैं और मशीन की चक्की घूमती रहती है। इसमें से एक-दो धागे खींचकर निकाल लिए जाते हैं। उसके बाद उन्हें घूमती हुई चक्की पर लपेट दिए जाते हैं।

एक हाथ से कोकून, तो दूसरे हाथ से धागे को सहारा दिया जाता है। चक्की जितनी तेज़ी से घूमेगी, उतनी ही तेज़ी से धागा भी कोकून से निकलता है, जो मशीन एक जगह घूमते हुए लपेटते जाता है। इस तरह से कोसे (कोकून) से धागा निकला जाता है। 

रस्सी को चक्की पर लपेटते हुए।

आप अगली बार जब रेशा के कपड़े पहनोगे, तो इन कीड़ों और कोकून को ज़रूर याद करना और इन्हें धन्यवाद देना।


लेखक के बारे में- राकेश नागदेव छत्तीसगढ़ के निवासी हैं और मोबाइल रिपेयरिंग का काम करते हैं। वो खुद की दुकान भी चलाते हैं। इन्हें लोगों के साथ मिल जुलकर रहना पसंद है और वो लोगों को अपने काम और कार्य से खुश करना चाहते हैं। उन्हें गाने का और जंगलों में प्रकृति के बीच समय बिताने का बहुत शौक है।

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