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लॉकडाउन: 89 प्रतिशत भारतीय वीडियो कॉलिंग को मानते हैं अपनों के करीब आने का ज़रिया

Mobile video calling

Mobile video calling

कोविड-19 महामारी के इस माहौल में लॉकडाउन घोषित होने के साथ ही घरों में सभी लोग कैद हो गए, वहीं दूसरी ओर घर से दूर जो जहां था उसे वहीं रुक जाना पड़ा। इस लॉकडाउन से बेशक लोगों को समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है लेकिन इस बीच एक अच्छी खबर भी आई है।

लॉकडाउन में वीडियो कॉल ने मिटा दी दूरियां

“एरिक्सन कन्ज़्यूमर लैब्स” ने हाल ही में एक रिपोर्ट एक जारी की। इस रिपोर्ट अनुसार, 60 या उससे अधिक उम्र के 89 प्रतिशत भारतीय इस बात से सहमत हैं कि विश्वसनीय वीडियो कॉलिंग ने उन्हें कोविड-19 के दौर में अपनों के करीब लाने में मदद की है।

वहीं एक प्रेस रिलीज़ के मुताबिक 80 फीसदी भारतीयों ने हामी भरी कि कनेक्टिविटी और उपकरणों ने उन्हें अपने परिवार और मित्रों से सम्पर्क बनाए रखने में मदद की है। इसके अलावा 77 प्रतिशत लोगों ने माना कि बच्चों की पढ़ाई में भी इससे मदद मिली है। इतने ही प्रतिशत लोगों का कहना है कि वह अपने काम को समय पर पूरा कर पाए हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर फोटो साभार: गेटी इमेजेज

मुश्किलों‌ भरा दौर

वाकई यह दौर कई तरह की मुश्किलों से भरा हुआ है जहां एक ओर हम महामारी के संकट से जूझ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर काम के चलते घर से दूर रहने वाले कितने ही लोग लॉकडाउन के चलते अपने घरों को वापस नहीं लौट पा रहे हैं।

यह वह समय है जब हर किसी की फिक्र और घबराहट का बढ़ना कुछ नया नहीं, बल्कि स्वभाविक है। ऐसे समय में आप अपने आस-पास वीडियो कॉल पर बात करते कितने ही लोगों को देख रहे होंगे।

वीडियो कॉलिंग ने अपनों को करीब किया

घरों के वह बड़े-बुज़ुर्ग जो कॉल पर किसी से दो मिनट बात करना भी खास पसंद नहीं करते थे, अब वही लोग वीडियो कॉल पर बातें करते नहीं थक रहे हैं।

जहां एक ओर इस सुविधा ने दूरियों को खत्म-सा कर दिया है, वहीं अपनों की फिक्र करने वालों को, खासकर वे लोग जो अपने बच्चों से दूर अकेले रह रहे हैं, उन्हें एक नया मौका दे दिया है।

वीडियो कॉलिंग को लेकर मैंने एक खास दिलचस्पी महसूस की

दादी-नानियों के चेहरे वीडियो कॉल के दौरान ठीक वैसे खिल रहे हैं, जैसे छुट्टियों में नाती-पोतों के आने पर खिल जाया करते थे। यह मेरा अपना अनुभव भी रहा है।

हम सभी कज़िन्स जो यूं भी एक-दूसरे से दूर ही रहते आए हैं। उनसे मिलना महीनों बाद या यूं कहिए कि अब तीज-त्यौहारों तक ही सिमट आया है। उसके बावजूद लॉकडाउन के इस दौर में हम अक्सर घण्टों एक-दूसरों से जुड़ी बातें किया करते हैं जो शायद पहले हमने कभी नहीं की थीं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

हमारे बुज़ुर्ग भी वीडियो कॉल के ज़रिये अपनी खबर और उनका हाल दोनों ही दे पाने में सहज हो गए हैं। मेरी बहनें जो कि लॉकडाउन के चलते पिछले चार महीनों से घर से दूर हैं। मेरी दादी जो 80 साल की हैं, अपनी पोतियों से आज वीडियो कॉलिंग के ज़रिए बात करते और मुस्कुराते नहीं थकती हैं।

कभी यदि मैं भूल जाऊं, तो वह यह कहना नहीं भूलतीं कि उन्हें वीडियो कॉल पर बात करनी है। मतलब साफ है इस महामारी ने हमें अपनों के करीब आने, उन्हें और बेहतर तरीके से समझने का एक मौका तो दिया है। हां, हम एक-दूसरे के लिए फिक्रमंद हैं। हमें एक-दूसरे को कहना भले ना आता हो लेकिन प्यार जताना हम अब सीख रहे हैं।

भविष्य में भी ऐसे ही कनेक्ट रहने की है उम्मीद

उम्मीद है जब यह मुश्किल का दौर खत्म होगा तो हम वीडियो कॉल की डिजिटल ही सही लोकिन छुअन को बनाए रख पाएंगे। वहीं सीओएआइ के महानिदेशक राजन मैथ्यूज़ ने वेबिनार के दौरान अपने विचार साझा करते हुऐ कहा,

“हमें खुशी है कि महाहमारी के दौरान दूरसंचार द्वारा निभाई गई भूमिका पर ध्यान दिया गया है। हम इस बात को और खुलकर कहना चाहेंगे कि आने वाले वर्षों में 5जी का इस्तेमाल भी किया जा सकेगा। साथ ही यह 5जी एरिक्सन शिक्षा और उपभोक्ता उपभोग के लिए अमूल्य होगा।  

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