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“लेखनी को स्किल बनाकर मैंने सीखा खुश रहने का तरीका”

skill development

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पृथ्वी का सबसे प्रमुख जीव है मनुष्य और मनुष्य कई सारी प्रतिभाओं और कौशलों से भरा रहता है। आम बोलचाल की भाषा में कौशल को हम स्किल्स नाम से बोलते हैं, जो हमारे ज़्यादा क़रीब लगता है। वैसे तो स्किल्स किसी में कुछ भी हो सकती है।

स्किल्स के बहुत से प्रकार होते हैं। जैसे- लाइफ स्किल्स, शिक्षा कौशल आदि। वहीं, संगीत, लेखन, नृत्य, कला, आदि यह कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण हैं हमारे जीवन के कौशलों के। आजकल तो स्किल्स का ज़िक्र हमको अपने रिज़्यूमे में भी लिखना होता है, जो पढ़ने वाले पर एक सकारात्मक असर छोड़ देता है।

सात साल की उम्र में हुई लेखनी की शुरुआत

आज मैं अगर अपने कौशल की बात करूं तो वैसे तो मेरे अंदर कई तरह की स्किल्स हैं, जिनमें चित्रकारी, पाक कला, और लेखन आते हैं। मैं प्रमुख तौर पर लेखन को अपने कौशल में प्रमुखता देता हूं। मैंने महसूस किया है कि लेखन कला से मेरी ज़िंदगी में बहुत अधिक बदलाव आए हैं।

चित्रकला और पाक कला से भी मैंने अपने मानसिक स्वस्थ्य को काफी हद तक नियंत्रित किया है। वहीं, दूसरी ओर बचपन से लेख लिखने की कला ने भी मेरी मानसिकता को परिष्कृत किया है।

मैंने 7 वर्ष की आयु से लिखना प्रारंभ किया था। कुछ व्यक्तिगत समस्याओं के कारण मैं जन्म के 3 दिन के बाद से ही अपनी मौसा और मौसी के घर में रहा। उनको ही मैंने मम्मी पापा कहना शुरू कर दिया था। मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं रही मगर हां मैं अपने बचपन में बहुत सी चीज़ों के अभाव में रहा, जिनमें सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण था मोरल सपोर्ट और एक प्यार भरा आलिंगन।

बचपन से ही मैं अपने आसपास ऐसे लोगों को ढूंढता था, जिनसे मैं कुछ कह सकूं और उनसे कुछ महसूस कर सकूं मगर दुर्भाग्यपूर्ण मेरे पास ऐसा कोई नहीं था जो मेरे इस खालीपन को दूर कर सकता। एक दिन मैंने 3 क्लास में स्कूल में ही कॉपी के पीछे वाले पन्ने पर लिखना शुरू किया। उसमें मैंने बस इतना लिखा था, “पापा मेरे लिए बॉल और एक खाली कॉपी ला देना।”

कॉपी के पीछे साथ के साथ एक छोटा सा बच्चा बना दिया और एक आदमी, जो मेरे लिए एक पुत्र और पिता की छवि के साक्षात प्रमाण थे।

टीचर ने दिखाई जीवन की राह

बहरहाल, मेरी टीचर ने यह सब देख लिया और मुझे सलाह देते हुए कहा, “इमरान मैं तुम्हें कल एक डायरी लाकर दूंगी, उस पर तुम सब कुछ लिखना, जो भी तुम्हारे मन में आए।”

बस यहीं से वह डायरी मेरी ज़िंदगी में मेरी सबसे बड़ी दोस्त बन गई। आज ये सारी बातें बताने का मेरा सिर्फ एक ही मकसद है और वो यह कि लिखना कितना ज़रूरी होता है।

धीरे-धीरे लेखन मेरे अंदर घर कर गया और मैं इस कला का प्रेमी बन गया। इसने मेरे जीवन में क्रांति ला दी। आज भी वह डायरी मौजूद है, कुछ खास नहीं बदला मगर हां मेरे अंदर का वह इंसान ज़रूर बदल गया जो किसी दूसरे में अपनी खुशियां ढूंढना चाहता था।

आज कई संस्थाओं के लिए लेख लिखता हूं

अब मेरी खुशियां सिर्फ कागज़ और पेन में हैं। आज भी कई संस्थाओं के लिए लिखते वक्त अपने लेख को किसी लैपटॉप या मोबाइल पर नहीं, बल्कि कॉपी और पेन पर ही लिखता हूं। उसके बाद संस्था की साइट पर जाकर टाइप करता हूं। हां, काम दोगुना ज़रूर हो जाता है मगर दिल की खुशी और आत्मसंतुष्टि के लिए यह बात भी मुझे गवारा है।

तकनीकी ज़माने में लोग बस लैपटॉप, कंप्यूटर, और मोबाइल तक ही सीमित रह गए हैं, जो वास्तव में कहीं ना कहीं किसी भी विषय के लिए नकारात्मक साबित होते हैं। मैं कागज़ और पेन को अपना सबसे अच्छा दोस्त मानता हूं।

लेखन की कला से मन की व्यथा को सुना पाना संभव है

लेखन की कला ने मुझे और मेरी आवाज़ को बहुत दूर दूर तक फैलाया है। मैं उन संस्थाओं का शुक्रगुज़ार हूं, जो मेरी आवाज़ बने। मुझे खुसी मिलती है कि कई प्लेटफार्म हमारी आवाज़ों को बुलंद करने के लिए आगे आए हैं।

लेखन की कला से मन की व्यथा को सुना पाना संभव है। इससे खुद को भी संतुष्टि मिलती है। लेखन कला ही है, जो पूरे विश्व में भाषाओं का संचार करने में सक्षम है। लेखों के ज़रिये ना सिर्फ बहुत कुछ बताना आसान हो जाता है, बल्कि समाज में बदलाव और क्राति लाने के लिए भी यह एक अमह हथियार है।

इतिहास के संदर्भ में देख सकते हैं कि राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए लेखन कार्य ने कितना बड़ा योगदान दिया था। मुद्रण प्रणाली के ज़रिये लोगों में राष्ट्रवाद की भावना उतपन्न हुई थी और हम आज़ाद हुए थे। तो बस अंत में यही संदेश देना चाहूंगा कि आप लिखें चाहे आपको पसंद हो या ना हो। एक बार लिखने की कोशिश करें आपको अपने जीवन में चमत्कार ज़रूर नज़र आएगा।

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